Desire Of Mother Hindi Poem : Maa Ki Abhilasha
Maa Ki Abhilasha Hindi Kavita : कविता कोश में प्रस्तुत है मानवेन्द्र सुबोध झा की हिंदी कविता "माँ की अभिलाषा", पढ़े और शेयर करें।
माँ की अभिलाषा
हे, आर्य! पुत्र बड़े चलो,
हे, शिवांश तुम बड़े चलो।
दूर कितना लक्ष्य है,
यह आकलन करते रहो।
तुम निडर निर्भीक भी,
तुम जानते नेत्रत्व भी।
सही दिशा का है भान तुम्हे,
नाम को सार्थक करो।
हे, आर्य! पुत्र बड़े चलो।
हे, शिवांश तुम बड़े चलो।
शैल कभी झुकता नहीं,
पवन कभी रुकता नहीं।
नदियाँ न पूंछे राह को,
धरा कभी थकती नहीं।
विरह मिलन की अनुभूतियाँ,
सुख दुःख का संगम यहीं।
परिवर्तन प्रकृति की रीति है,
हो तुमको इसका ज्ञान भी।
हे, आर्य! पुत्र बड़े चलो।
हे, शिवांश तुम बड़े चलो।
अम्बर की भीषण गर्जना,
डरा नहीं सकती तुम्हे।
शत्रुओं की प्रवंचना,
हरा नहीं सकती तुम्हे।
देश का गौरव बड़े,
ऐसे नित्य काम करो।
निज देश के उत्थान में
सदैव तत्पर तुम रहो।
हे, आर्य! पुत्र बड़े चलो।
हे, शिवांश तुम बड़े चलो।
- मानवेन्द्र सुबोध झा
शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश
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