Motivational stories in Hindi for success : Parishram Ka Mahatva Story in Hindi
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The Best Stories in hindi : Hindi Story Parishram - कहानी परिश्रम
परिश्रम
विद्या भगवान की देन है। हम शिक्षा को ईश्वरीय कृपा समझते हैं। विद्यार्जन के साथ विनय या नम्रता आती है। विद्याहीन व्यक्ति बिना पूंछ का जानवर कहा जाता है। आधुनिक समय में विद्या या शिक्षा कहिए, एक सामाजिक ज़रूरत बनी है। इस विश्व में, पहले भगवान की और उसके बाद अपने माता-पिता के समान हम गुरु को पूजते हैं।
लगन और प्रयास- इन दोनों के रहते हम इस विश्व में कोई भी उपलब्धि हासिल कर सकते हैं। बुजुर्गों का कहना है कृषितो नास्ति दुर्भिक्षम्। परिश्रम करने पर इस दुनिया में कोई चीज़ असंभव नहीं। हमारे छात्रों का ध्योय शिक्षा प्राप्त करना ही है। जो लोग बढ़े हुए हैं, उसके पीछे उनके प्रयास और परिश्रमशीलता पर हमें ध्यान देकर न केवल उनका अनुसरण करना है बल्कि उनसे भी महान् बनने का प्रयास करना चाहिए। यह सत्य कई बार उजागर हुआ कि जहाँ प्रयास और लगन हों, वहाँ सफलता खुद आकर हमारे चरण छूती है। इस सत्य को हम निम्नलिखित उदाहरण द्वारा मालूम कर सकेंगे।
कहानी रामापुरम की है। उसमें राम नाम का एक बालक। उसके माता-पिता एक गरीब किसान परिवार से हैं। माता-पिता सारा दिन मेहतन - मजदूरी करते, फिर भी दो जून का खाना नसीब नहीं । रामू अब पाँच वर्ष का हुआ। माता-पिता खेत में जाते समय रामू को साथ ले जाते। खेत में जाने का रास्ता एक स्कूल के सामने से गुज़रता था। उसमें पढ़नेवाले बच्चे स्लेट और पेंसिल लेकर प्रति दिन आते, बाहर खड़ी सीखते, फिर खेलने में मस्त होते। रोज़ रामू यह सारा दृश्य देखता जाता था। उसके मन में वांछा जगी कि मैं भी स्कूल जाकर पढूँगा। पढ़ाई का महत्व क्या होता है, उसके माता-पिता अच्छी तरह जानते थे । वे दोनों उसको पढ़ाने पर सहमत हुए भले ही उसके लिए कितना ही परिश्रम क्यों न करना पड़े। रामू स्कूल में भर्ती हुआ। रामू होनहार और बुद्धिशाली था। अध्यापक कक्षा में जो भी पढ़ाते, मन लगाकर सुनता था।
वर्ष बीतते गये। रामू अब दसवीं कक्षा में पढ़ रहा है। दिन को दिन रात को न रात समझकर उसने पढ़ाई की और पूरे जिले में सर्व प्रथम स्थान प्राप्त किया। रामू को उत्तम छात्र के रूप में पुरस्कार मिला। रामू के माँ-बाप फूले नहीं समाये। न केवल उसके अध्यापक बल्कि सभी ग्रामवासियों ने उसकी प्रशंसा की। रामू दूसरे बालकों के लिए एक प्रेरणा बना। वे भी अपने बच्चों को भर्ती कराकर पढ़ाने लगे। स्कूल में भर्ती कराकर पढ़ाने लगा।
रामू पढ़ाई आगे जारी रखना चाहता था। उसने माँ-बाप के सामने इंटर पढ़ने की इच्छा प्रकट की। माता-पिता ने उसे पढ़ाना स्वीकार किया। विधि का विधान कुछ और था। रामू को कॉलेज में दाखिल हुए ज़्यादा दिन नहीं बीते कि उसका पिता बीमार हुआ। खाट पर से उठा नहीं जाता था और माँ बेबस थी। पढ़ाई जारी रखने में धन का अभाव बाधक बना। कुछ न कुछ परिश्रम करके वह माँ-बाप का सहारा बनने के लिए तैयार था, लेकिन माँ-बाप रामू की बात नहीं मानी। वे रामू से कह - तू तो हमारे घर का उजाला है, हमारी सारी आशाएँ तुझ पर टिकी हैं। किसी भी तरह पढ़ाकर तुझे बड़ा बनाना हमारे जीवन का आशय है। इसके लिए हम कुछ भी कुर्बानी करने के लिए तैयार हैं। रामू की माँ खेतीबाड़ी का काम करने के अलावा मज़दूरी भी करने लगी। एक जून का भोजन जुटाना कठिन हो रहा था, ऐसी स्थिति में भला किताबें कैसे खरीदूँ उसके मन को यही चिंता घेरे रहती। अध्यापकों की मदद से पुस्तकालय से अपनी ज़रूरत की पुस्तकें उधार में लाता और लौटा देता। पढ़ने के लिए उसके घर में छोटा-सा दीप भी नहीं था। वह बाज़ार के लैंप के प्रकाश में पढ़ता था।
एक दिन की घटना है। वह पढ़ते पढ़ते नींद में सो गया। वह खुले में था और वहाँ धुंध थी। सुबह जब उसने जागकर देखा तो उसकी सभी पुस्तकें भीग चुकी थी। ऐसी हालत में यदि मास्टर जी ने देख लिया तो क्या क्या डांट पिलाएंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसके मास्टर उससे नाराज़ नहीं हुए क्योंकि रामू का सारा हाल उनसे छिपा नहीं था। उसकी गरीबी, फिर भी शिक्षा के प्रति उसकी श्रद्धा और लगन। उनके मन में रामू के लिए विशेष स्थान है। उनका विश्वास बलवती था कि रामू कभी न कभी ऊँचे स्तर पर यकीनन पहुँचेगा। जो बालक परिश्रमी है उसकी सहायता करनी चाहिए। जलती दुपहर में ठंडी छाँव देता है वृक्ष । मास्टर जी का दिल करुणा से भरा था। उनके जीवन का लक्ष्य था कि छात्रों को धीरज बँधाकर उत्तम नागरिक बनाना है। ऐसी स्थिति में, वे न केवल रामू को डिग्री करने की सलाह देंगे, बल्कि ज़रूरत पढ़ने पर उसके लिए आवश्यक धन भी जुटायेंगे। रामू ने डिग्री कक्षा में दाखिला लिया। प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुआ । मास्टरजी से आई.ए.एस. के बारे में जानकारी लेगा, दिन रात परिश्रम करके वह आई. ए. एस. परीक्षा उत्तीर्ण करके कलेक्टर बनेगा। यही हुआ। उसके परिवार के जैसे दूसरे गरीब बच्चों को भी पढ़ना है, इस उद्देश्य से उसने गाँव में एक पाठशाला बनवाई। उसके पास धन नहीं होने के कारण वह अपने बीमार बाप का इलाज नहीं करवा सका। उसके पिता की तरह दूसरे लोग तकलीफ न उठायें, यह सोचकर उसने एक अस्पताल का निर्माण करवाया। उसके ये सभी भले काम देखकर सारे ग्रामवासी उसकी बढ़ाई करने लगे।
रामू को पढ़ाने के लिए उसके माता-पिता ने कठिन परिश्रम किये। अध्यापकों ने उसको बढ़ावा दिया। उसकी कठिनाई के दिनों में उसके ग्रामवासी आगे आये। इसी कारण से रामू के गाँव ने विकास कर लिया। समाज की उन्नति हुई।
रामू की तरह यदि हर कोई परिश्रम और प्रयास करें तो न केवल हमारा ग्राम, हमारा राज्य बल्कि हमारा पूरा देश खुशहाली के मार्ग पर बेशक आगे बढेगा -
कृषितो नास्ति दुर्भिक्षं
- तेलुगु मूल : कु. शिरीषा
हिंदी अनुवाद : कु. रेणुका देवी
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