Poem on Women's Emotions by Ritu Verma : Hindi Kavita Stree Ki Manodasha
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स्त्री की मनोदशा
पुरुषों को न जाने क्यों?
हर बात बतानी पड़ती हैं।
स्त्री को चाहिए सिर्फ प्रिय स्नेह
और सम्मान उसे
हर बार जतानी पड़ती हैं।
बहुत सी ख्वाहिश होती स्त्री के
पर हर ख्वाब दबाए चलती है।
तलाशती रहती उन नजरों को
जो उन्हें बखूबी न सही
पर थोड़ा जो समझती हो।
आती है जब अपने पीहर से
बचपना को पीछे छोड़
अपने घर वो समझदार बन
पिया के घर वो चलती है।
बस अपने उस पिय से उम्मीद लगाए
अपनी राह वो चलती है।
ज्यादा चाह नहीं रखती वो
बस अपने लोगों से प्रेम वो चाहती हैं।
कहती तो वो कुछ नहीं हर पल बस
अपने चेहरे पर मुस्कान की चादर ओढ़े ये फिरती है,
कभी ध्यान से देख लो
उसका चेहरा तो
उस मुस्कान के पीछे वह
एक मायूस सा चेहरा छुपाती हैं।
रोज ही उम्मीद लगाती
कि कोई समझे
पर हताश हुए चली जाती हैं।
सब से नाउम्मीदी कि चादर ओढ़े
खुद से उम्मीद लगाती हैं।
- रितु वर्मा
नई दिल्ली
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