भीष्म साहनी के उपन्यास तमस पर एक नजर : तमस की वस्तुगत प्रासंगिकता

Dr. Mulla Adam Ali
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Tamas by Bhisham Sahni - भीष्म साहनी का उपन्यास तमस की आलोचना

भीष्म साहनी के उपन्यास तमस पर एक नजर

भीष्म साहनी के उपन्यास तमस पर एक नजर : तमस की वस्तुगत प्रासंगिकता

देश-विभाजन की पृष्ठभूमि एवं सांप्रदायिकता लिखा गया तमस भीष्म साहनी का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। तमस उपन्यास का प्रकाशन 1973 में हुआ था और 1975 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। साम्प्रदायिकता का दर्द और विभाजन की त्रासदी के सच को आंखों के सामने प्रस्तुत करने वाला भीष्म साहनी का उपन्यास तमस है।

तमस भीष्म साहनी का तीसरा उपन्यास है। इसमें देश विभाजन की समस्या से जुडे हुए पक्षों को मार्मिक अभिव्यक्ति दी गयी है। देश विभाजन के नेपथ्य में घटी अमानवीय घटनाओं का सजीव चित्रांकन करने में भीष्म साहनी सफल हुए हैं। धार्मिक मूल्यों की पतनावस्था, राजनीतिक क्षेत्र में दिशा-निर्देशन का अभाव और सामाजिक प्रगति में अवरोधक सिद्ध होनेवाली विडम्बनापूर्ण आर्थिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण इसमें किया गया है। तत्कालीन समाज में प्रचलित अमानवीय वृत्तियों का भी चित्रण पाया जाता साम्प्रदायिक एकता की मांग इस उपन्यास का प्रधान स्वर है।

'तमस' उपन्यास का कथानक देश - विभाजन की 4 पृष्ठभूमि एवं साम्प्रदायिक दंगों पर आधारित हैं उपन्यास का प्रारंभ नत्थू चमार के द्वारा सुअर को मारने की प्रक्रिया से होता है। मुराद अली नाम का एक व्यक्ति नत्यू को पाँच रुपये का नोट देकर कहता है कि "हमारे सलोतरी साहब को एक मरा हुआ सुअर चाहिए। इधर पिघरी के सुअर बहुत घूमते हैं। एक सुअर को उधर कोठरी के अंदर कर लो और उसे काट डालो" (तमस - पृष्ठ संख्या 8) बाद में वही सुअर एक मस्जिद के द्वार पर फिंकवा दिया जाता है। यह कार्य किसके द्वारा संपन्न होता है इसका उद्घाटन बाद में होता है। मस्जिद के सामने सुअर का शव देखकर मुसलमान उत्तेजित हो जाते है, जिससे हिन्दू-भड़क उठते हैं। संदेह, अविश्वास और असुरक्षा के भाव जोर पकड़ लेते हैं। तनाव की यह स्थिति शहर, कस्बे और गाँवों तक महामारी की तरह फैल जाती है। यही दंगा एक बीभस्त रूप में बदल जाता है।

वर्तमान युग में भी इन्ही संकीर्ण विचारों एवं वृत्तियों का सामना समाज को करना पडता है। साम्प्रदायिक घटनाएँ हमें आज भी जैसी की तेसी लगती है कि यह विष आज भी समाज में फैला हुआ है। स्वयं भीष्म साहनी ने ऐसी भयानक परिस्थितियाँ अपनी आँखों से देखी हैं। हिन्दु और मुसलमानों को भडकाने के पीछे अंग्रेज राजनीति भी सक्रिय है, क्योंकि अंग्रेजों ने "फूट डालो और राज करो' नीति अपनायी थी, इसी वजह से उन्होंने 200 वर्षों तक भारत पर राज किया।

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धर्मांधता कितनी अमानवीय और खतरनाक होती है। इसकी प्रामाणिकता हमें तमस उपन्यास में दिखाई देती है, इसमें धर्मांधता की वजह से ही लोग एक दूसरे के ऊपर पूरी तरह से हमला करने के लिए तैयार हो जाते हैं। लेकिन ऐसी बात नहीं थी कि इसको रोकने के लिए प्रयास नहीं किये गये। देवदत्त, सोहनसिंह, मीरदाद जैसे कम्युनिस्ट कार्यकर्ता इस ओर प्रयास करते है कि सामाजिक एकता कायम हो सके। इसी प्रयास की विफलता से बख्शी जी कहते हैं- "फ़िसाद करानेवाला भी अंग्रेज, फिसाद रोकनेवाला भी अंग्रेज, भूखों मारनेवाला भी अंग्रेज, रोटी देनेवाला भी अंग्रेज, घर से बेघर करनेवाला भी अंग्रेज, घर में बसानेवाला भी अंग्रेज, फिर बाजी ले गया अंग्रेज।" यह सब अंग्रेजों की चाल है जो पहले विवाद को जन्म देते हैं फिर शांति का बहाना बनाते हैं। विश्व के समक्ष यह बात सिद्ध करने में लेखक ने सफलता पाई है कि हिन्दुस्तान की जनता की, स्वयं को एक सूत्र में बांध रखने की अपार क्षमता है। रिचर्ड ही मुराद अली नाम के कारिदे को सुअर मरवाकर मस्जिद में फिकवाने के लिए तैयार करता है। नरसंहार के बीज बोकर स्वयं परदे के पीछे हो जाता है। जब उसकी मंशा पूरी हो जाती हैं तो वह शांतिदूत बनकर पुनः उभरकर सामने आ जाता है।

भीष्म साहनी ने तमस लिखकर यह सिद्ध कर दिया है कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत अंधेरे में जी रहा है। भारतीय जन मानस के मस्तिष्क पर अभी भी साम्प्रदायिकता का जहर छाया हुआ है। भीष्म साहनी ने इस समस्या का बडी सूक्ष्म दृष्टि से निरीक्षण किया है। उन्होंने साम्प्रदायिकता को एक ऐसा विकार माना है जिसके लग जाने का अर्थ ही होता है पूरे शरीर को विनष्ट कर देना । यह साम्प्रदायिकता भारतीय परिप्रेक्ष्य में या विश्व के परिप्रेक्ष्म में, मानव जाति के लिए बहुत ही घातक होता है। साम्प्रदायिकता हमारे इतिहास एवं वर्तमान जीवन का त्रासदी है, देश की स्वतंत्रता के 61 वर्ष बाद भी भारत के नागरिक साम्प्रदायिकता को खत्म नहीं कर सके हैं। आज भी देश के भीतर साम्प्रदायिक ताकतों की ख़तरनाक भूमिका चल रही है। जनता मानवीय दृष्टिकोण की अपेक्षा मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों तक ही अपना ध्यान सीमित रखती है। जिससे भारत की एकता विभाजित होती जा रही है। धर्म के नाम पर लोग आपस में झगड़ते हैं। आज हमारे देश में राष्ट्रीयता को परिपुष्ट बनाने की आवश्यकता है। विभिन्न सम्प्रदायों के बीच सदभावना की आवश्यकता है। धर्म और राजनीति को एक दूसरे से अलग करने की जरूरत है।

मानवीयता समाज के आदर्श जीवन के लिए आवश्यक हैं तमस एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें इन्हीं बातों का जिक्र भीष्म साहनी ने किया है। इस दृष्टि से तमस भीष्म साहनी का श्रेष्ठ उपन्यास है। उनके सभी उपन्यासों में सर्वाधिक पुरस्कार, सफलता और ख्याति 'तमस' को प्राप्त हुई है, जो पाठक को समाज से जोडने का प्रयास कर जीवन के सच्चे अनुभव का एहसास कराता है।

- वै. पुष्पवती

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