Hindi Bal Sahitya : Dasha aur Disha
हिन्दी बाल साहित्य : दशा और दिशा
आज का बालक कल के समाज का विधाता है। बालक प्रकृति की अनमोल देन है। बाल साहित्य जहाँ के रूचि की संतुष्टि करता है, वहाँ उनमें जिज्ञासा शांत करने की क्षमता भी होनी चाहिए। बेताल पच्चीसी, सिंहासन बत्तीसी, ईसप आदि कहानियाँ बाल साहित्य के नाम पर हमारे यहाँ बहुत पहले से उपलब्ध है। इन कहानियाँ में बड़ों का आदर करना, गुरू की सेवा करना, करना आदि का वर्णन हुआ है। ज्ञानार्जन करना आदि का वर्णन हुआ है।
गत कुछ दशकों से बच्चों के लिए हिन्दी के साथ- साथ बंगला, उड़िया, मराठी, कन्नड, तेलुगु, तमिल, मलियालम, गुजराती, पंजाबी आदि अनेक भाषाओं में बाल पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रही है। डॉ. अमरसिंह वधान के अनुसार - "आज देश में पत्रकारिता प्रशिक्षण के संस्थान है। विज्ञान, विधि, खेल आदि विषयों को पढ़ाया जाता है। लेकिन बच्चों के पृष्ठ के लिए कही भी न कोई विशेष संवाददाता या उपसंपादक होते है। स्पष्ट है कि जब पाठयक्रमों में बाल पत्रकारिता का विशिष्ट प्रशिक्षण दिया ही नहीं जाता तो लोग मिलेंगे कहाँ से? यह भी सही है कि केवल योग्य एवं सक्षम संपादक ही बच्चों के उपयुक्त सामग्री को प्रस्तुत कर सकते हैं। गहराई से देखा जाय तो आज बाल पत्रकारिता की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। बच्चों के लिए, भिन्न है। इसके अनुरूप विषय प्रस्तुतीकरण निर्धारित किया जाता है।"¹
हिन्दी में पर्याप्त बाल साहित्य का निर्माण हुआ है। आज कल नगरों में उच्च कोटि की पत्रिकाएँ भी निकल रही है। बाल कहानी और नाटक भी लिखे जा रहे हैं। बाल गीतों के क्षेत्र में कुछ उत्कृष्ट रचनाएँ आई है।
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' अमृतलाल नागर, पं. श्रीधर पाठक, प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों ने हिन्दी बाल साहित्य को दिशा देने में अहम भूमिका निभाई है। निरंकार देव सेवक, पं. सोहनलाल द्विवेदी, द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी, भवानी भाख त्रिपाठी 'दिव्य' आदि ने अपना जीवन ही बाल साहित्य को समृद्ध करने का प्रयास किया है। इसके अतिरिक्त सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सुभद्रा कुमारी चौहान, सुमित्रा कुमारी सिन्हा, श्रीनाथ सिंह, आरती प्रसाद सिंह, कामिनी कौशल, डॉ. विद्या भूषण विभू, शकुंतला सिराहिया आदि साहित्यकारों ने इतिहास पुरुष बाल साहित्य की नींव रखने का महत्त्वपूर्ण काम किया है। किसी भी रचना को बच्चों की दृष्टि से देखना अनिवार्य है। बच्चों की रचनाओं के सर्वश्रेष्ठ निर्णायक बच्चे ही होते है।
मंजुल भगत एक संवेदनशील कथाकार है। इनकी कहानियों में उच्च वर्ग हो चाहे निम्न वर्ग छिनते बचपन की अभिव्यक्ति मिलती है। मंजुल भगत की 'शैतान बाजा' और 'काली लडकी का करतब' कहानियाँ कुछ ऐसी ही कहानियाँ है। काली लडकी भूख से जूझते - जूझते मौत को गले लगाती है। लेखिका के शब्दो में 'मरगयी.... मर गयी बिचारी....। भूख से जूझते... जूझते मौत को गले लगाती है। भूख, करतब, पैसा, इसके अतिरिक्त और कुछ भी नहीं।"² भूख से एवं पौष्टिक भोजन के अभाव से बच्चे कुपोषण के शिकार हो जाते है। ‘खट्टी मीठी गोलियाँ' कहानी में नन्हीं सी उम्र में उसे घर के झाडू एवं कपडे रगड़ने में लगा दिया जाता है। जहाँ उनकी उम्र पढ़ने खेलने की है वहाँ उस पर सभी भाई बहिनों के भरण पोषण का बोझ डाल दिया जाता है। जिससे वह स्वयं को असहाय एवं कुंठित महसूस करती है, शीशे के सामने खड़ी होकर कहती है- “अरे! मेरा चेहरा तो बासी-सूखी रोटी सा कड़ा और रुखा है और बेबी दीदी का तो चुपड़ी हुई सोंधी सोंधी रोटी जैसा।"³
आज कम उम्र बच्चों का शारीरिक एवं मानसिक शोषण हो रहा है। मंजुल भगत ने अपनी रचना 'काली लड़की का करतब', 'शैतान बाजा', 'पाव रोटी, 'कटलेट्स' व खट्टी मीठी गोलियाँ आदि में नन्हें मासूमों बच्चों को श्रमरत दिखाया है। 'काली लड़की का करतब ' में मंजुल भगत जी ने नन्ही बच्ची 'मनुवा' की दारूणिक स्थिति को उजागर किया है। मुँहबोला चाचा नन्हीं अबोधबालिका मनुवा के साथ अश्लील व्यवहार करता है। जिससे बच्ची डरी-सहमी त्रस्त मनः स्थिति में स्वयं को असुरक्षित महसूस करती है। आज हमारे समाज में न जाने कितने 'मनुवा' है। 'बावन पत्ते एक जोकर' कथा में नन्ही बालिका सोनू अपनी माँ के सन्निध्य में न रहकर अपने आपको असहाय महसूस करती है। वह गुमसुम एवं- तनावग्रस्त रहती है।
मन्नु भंडारी का ‘आपका बंटी' उपन्यास में एक बच्चे की मन:स्थिति का अत्यंत विस्तृत फलक पर चित्रांकन है। पत्नी शकुन और पति अजय के बीच अलगाव की स्थितियाँ उनके बच्चे बंटी के जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। वह भीतर ही भीतर घुटने लगता है। कभी विद्रोह, कभी उदासी कभी अकेलापन उसे संत्रस्त बनाए रखता है। लेखिका ने एक नन्हें बालक की मनः स्थिति की यथार्थ एवं मर्मस्पर्शी चित्रण किया है।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि हिन्दीके बाल साहित्य की स्थिति अभावग्रस्त है फिर भी वह निराशाजनक नहीं हैं। आज बाल साहित्य का निर्माण हो रहा है। आज-कल उच्च कोटि की बाल पत्रिकाएँ भी निकल रही है।
संदर्भ ग्रंथ;
1. विवरण पत्रिका अप्रैल, 2005 सं. धोडीराव जाधव, पृ. 9
2. मंजुल भगत: समग्र साहित्य सं. कमल किशोर गोयनका, पृ. 450
3 मंजल भगत: समग्र साहित्य सं. कमल किशोर गोयनका पृ. 143
- प्रा. डॉ. पंडित बन्ने
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