पर्यावरण को समर्पित उत्कृष्ट बाल कथाएँ : पेड़ और बादल

Dr. Mulla Adam Ali
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Bal Kathayen : Ped aur Badal by Govind Sharma

Ped aur Badal by Govind Sharma

बच्चों और किशोरों के लिए लिखी गई पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित बाल कथाएँ : पेड़ और बादल

पुस्तक का नाम : पेड़ और बादल
लेखक : गोविन्द शर्मा
प्रकाशक : साहित्यागार (Sahityagar Publisher's)
ISBN - 978-81-7932-111-9
मूल्य : ₹ 200, Available on Amazon

पर्यावरण को समर्पित उत्कृष्ट बाल कथाएँ : पेड़ और बादल

आज जब विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंता व्याप्त है तब इसके प्रति बच्चों और किशोरों में चेतना जागृत करने का काम किसी यज्ञ में आहुति देने से कम नहीं है बल्कि यह अपनी जड़ों को सींचने जैसा है। वरिष्ठ बाल साहित्यकार गोविन्द शर्मा ने कुछ ऐसा ही काम 'पेड़ और बादल' जैसी कृति के माध्यम से किया है। यह कृति उन्होंने बच्चों और किशोरों के लिए लिखी है जो पूर्णतया पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित है। आँकड़ों पर नज़र डालें वे तो पर्यावरण की भयावह स्थिति का संकेत देते हैं। विश्व में 1.10 अरब लोग स्वच्छ पानी से वंचित हैं और 1600 जलीय प्रजातियाँ मानवीय गतिविधियों के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं। पचास फ़ीसदी से अधिक दुनिया की बड़ी नदियाँ बेहद प्रदूषित हो चुकी हैं।

गोविन्द शर्मा ऐसे अनुभवी बाल साहित्य रचनाकार हैं जो बाल मनोविज्ञान की गहरी और गूढ़ समझ रखते हैं। इसलिए उनकी रचनाएँ बच्चों के मन पर गहरा प्रभाव डालती रही हैं। अमूमन बच्चों के लिए लिखा जाने वाला साहित्य बच्चों के सर के ऊपर से गुजर जाता है और उन तक संप्रेषित नहीं हो पाता। यह सुखद है कि गोविन्द शर्मा एक उच्चकोटि के व्यंग्यकार होने और बड़ों के लिए लेखन में माहिर होने के बावजूद वे जब बच्चों के लिए रचनाएँ लिखते हैं तो उनमें और बच्चों की सोच में कहीं कोई अंतर नज़र नहीं आता । गोविन्द जी के लेखन की यह विशेषता है कि वे जब कोई कहानी या कविता लिखते हैं तो स्वयं बालमन में गहरे तक उतर जाते हैं और इस तरह वे एक सफल बाल साहित्य रचनाकार की श्रेणी में खड़े हो जाते हैं। अकेले बाल साहित्य पर उनकी 35 कृतियाँ हैं जो उनके बाल रचना कर्म के प्रति उनकी गहरी पैठ की साक्षी हैं।

गोविन्द जी की एक और खूबी है कि वे ऐसे विषयों का चयन करते हैं जिनमें बच्चों मन में सदैव उत्सुकता बनी रहती है। वे अपनी रचनाओं के माध्यम से उसका उत्तर भी बाल सुलभ अंदाज में देते हैं। इनकी रचनाओं के शीर्षक भी बच्चों को प्रिय लगते हैं और पढ़ने की उत्सुकता को बढ़ाते हैं । लेखक गोविन्द शर्मा अपनी रचनाओं में कथात्मक और संवाद शैली दोनों का समान रूप से प्रयोग करते हैं। दोनों में ही आपको अच्छी महारत हासिल है।

सद्यः कृति 'पेड़ और बादल' में लेखक ने अपने सृजनात्मक कौशल का भरपूर परिचय दिया है। कहना होगा कि उनकी इन रचनाओं में सृष्टि के सृजन से लेकर वर्तमान पर्यावरणीय परिस्थितियों तक और भावी चुनौतियों का जिस प्रकार वर्णन मिलता है वैसा शायद अन्य लेखकों के पास संभव नहीं है। वे अपनी रचनाओं में बच्चों को कोई उपदेश नहीं देते बल्कि सामान्य जीवन में बरते जाने वाले उपायों को रोचक कथा या संवाद के माध्यम से परिचित कराते जाते हैं और इतिहास का ज्ञान भी करा देते हैं। इन्हें पढ़ते हुए बाल-पाठक कहीं बोरियत अनुभव नहीं करते। मैं समझता हूँ यह उनका एक अतिरिक्त गुण है। मुझे यह कहने में भी कोई हिचक नहीं कि यदि बच्चों के साथ वे अभिभावक भी इन रचनाओं से बड़े सबक ले सकते हैं, जो अनजाने में ही पर्यावरण को लेकर उदासीन रहते हैं। बाल कथाओं की भाषा सरल, सुगम और बोधगम्य है।

किसी को अपने जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ या अपने प्रियजन की बरसी पर सीधे- सीधे पेड़ लगाने को कहा जाये तो शायद उसका उतना असर नहीं हो सकता जितना भीषण गर्मी में छायादार पेड़ के अभाव में अपने को झुलसते हुए अनुभव होता है या पीने के पानी के अभाव में छटपटाहट का अनुभव होता है । गोविन्द जी की कहानियाँ कुछ इसी रंग की हैं, जो भीतर तक गहरा प्रभाव डालती हैं। संग्रह की पहली कहानी 'पेड़ और बादल' एक ऐसी बालिका की कहानी है जिसके पिता चंद पैसों के लिए पेड़ काट देते हैं और बादल उसके घर की तलाश में विफल रहने पर कहीं और बरस कर लौट जाते हैं। कहानी में बादल और बालिका का संवाद झकझोर देने वाला है।

कहा जाता है कि अगला विश्वयुद्ध जल के लिए होगा। हालात को देखते हुए यह सही भी प्रतीत होता है। विश्व में बढ़ते जल संकट के प्रति मानव जाति यदि अभी भी नहीं चेती तो विस्फोटक स्थितियाँ पैदा होंगी। भविष्य की इस चिंता को लेखक ने 'जल कंजूस' कहानी में विद्यार्थियों और शिक्षक संवाद के माध्यम से बखूबी उकेरने का सफल प्रयास किया है। बच्चों में जल चेतना का बीजारोपण इस कहानी के जरिये जितना गहरा हो सकता है उतना असर जल बचत को लेकर दिए जाने वाले नारों का नहीं हो सकता। इसी तरह 'नीम का बीज' कहानी आज के भौतिक युग में नित नए अनुसन्धान करने वाले वैज्ञानिकों के सामने एक चुनौती खड़ी करती है। हम विनाश के हथियारों के निर्माण के लिए नित नूतन प्रयोग करते जा रहे हैं। एक पेड़ को काटने के लिए आरी का प्रयोग कर चुके हैं, लेकिन क्या किसी वृक्ष के बीज से उतनी ही देर में कोई पेड़ खड़ा कर सकते हैं, जितनी देर में उसे हम तबाह कर देते हैं ? कदापि नहीं । ऐसे यक्ष प्रश्न इस कहानी में हैं जो बच्चों के मन पर गहरा प्रभाव डालते हैं और पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पण का भाव उत्पन्न करते हैं। कुछ ऐसी ही अन्य कहानियाँ 'जल चोर', 'हमें हमारा घर दो', 'पत्ते नहीं कान', 'बच गए कुआँ और पेड़', 'पेड़ और पत्थर', 'पेड़ बच गया' आदि हैं, जो बच्चों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता का भाव पैदा करती हैं और भावी नस्लों को बचाने की जुगत में सहायक सिद्ध हो सकती हैं।

संग्रह की अंतिम कहानी 'अमृता देवी ने बचाए वृक्ष' में लेखक ने विश्व के पहले चिपको आन्दोलन के इतिहास का वर्णन किया है। यह राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र की जीवंत और प्रेरणादायक कथा है। इसमें पर्यावरण प्रेमी विश्नोई समाज की एक साहसी महिला अमृता देवी सहित 363 स्त्री-पुरुषों ने लगभग 300 वर्ष पहले अपने प्राणों की आहुति देकर पेड़ों की रक्षा कर पर्यावरण संरक्षण का एक नया इतिहास रचा था । विश्नोई समाज के लोग गुरु जाम्भोजी के अनुयायी हैं, जो यह मानते हैं कि 'सिर सांटे रूँख बचे तो ई सस्तो जांण' यानी एक सिर के बदले यदि एक पेड़ बचता है तो भी यह सस्ता है। इस समय तो देश के कोने-कोने में पेड़ बचाने के लिए अभियान चल रहे हैं। यदि समाज इसकी समय रहते चिंता करता तो ग्लोबल वार्मिग का संकट ना होता।

ऋतुचक्र के बदलते-बिगड़ते मिजाज के कारण नित नई जानलेवा बीमारियों से दो चार न होना पड़ता। स्वच्छ जल की 70 फीसदी आपूर्ति हमें ग्लेशियर्स से होती है और ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर के पिघलने से भविष्य में दुनिया में जल संकट उत्पन्न होने की वैज्ञानिक चेतावनी दे चुके हैं। अगर हम प्रकृति के प्रति जरा भी संवेदनशील होते तो रियो जैसे अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलनों की आवश्यकता ही नहीं होती । दुःखद स्थिति तो यह है कि आज भी हम तात्कालिक लाभ के लिए हमारी अपनी अगली पीढ़ियों के जीवन को दांव पर लगाने से नहीं चूक रहे। भयावह पर्यावरण संकट के प्रति उदासीनता मनुष्य और जीव-मात्र विरोधी है। गोविन्द शर्मा की ये कहानियाँ सिर्फ कहानियाँ नहीं बल्कि चेतावनी भरे स्वर हैं जो बच्चों के माध्यम से नई आशा का संचार करती हैं।

'पेड़ और बादल' कृति में केवल 10 बाल कथाएँ हैं और सभी पर्यावरण चेतना की कहानियाँ है । सभी एक से बढ़कर एक हैं। ये सब घर- बार की कहानियाँ हैं, जो हमारे आसपास एक खजाने की तरह बिखरी पड़ीं हैं। दुर्भाग्यवश हम जिनकी कद्र नहीं करते और भौतिकता की अंधी दौड़ के शिकार हो रहे हैं। यह कहानियाँ हमें अपनी समृद्ध भारतीय संस्कृति से एक बार फिर से जोड़ने का काम करती हैं और हमारी भावी पीढ़ी को भटकने से रोकती हैं। बच्चे यदि इन कहानियों में छुपे मर्म को अनुभूत कर लें तो भावी जीवन में होने वाले संकट से उबरने में भी सहायक सिद्ध होंगी। देश के प्रतिष्ठित बाल साहित्य रचयिता गोविंदजी ने हमें और हमारे बच्चों को इस कहानी संग्रह के रूप में सुरक्षित जीवन के लिए एक अनमोल तोहफा दिया है। कोटिशः बधाई और शुभकामनाएँ।

- फारूक आफरीदी

बी - 70 / 102, प्रगतिपथ,

बजाज नगर, जयपुर - 302015

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