Jhanda Ooncha Rahe Hamara
झंडा ऊँचा रहे हमारा
- बी. एल. आच्छा
यह गीत आजादी के दीवानों का लोकप्रिय गीत मात्र नहीं था, जो श्यामलाल गुप्त पार्षद ने रचा। यह भारत के जन-जन की स्वर- लिपि है। और खासकर हमारे 2047के शताब्दी विजन के स्वप्न की सांस्कृतिक आत्मा।
मैं जब उदयपुर विश्वविद्यालय के महाराणा भूपाल कॉलेज में पढ़ता था ,तब की बात है। तब के विख्यात अर्थशास्त्री दंडवते जी का व्याख्यान सुन रहा था। बात जीडीपी की हुई। कृषि उत्पादनों की हुई। रक्षा उपकरणों की हुई। आर्थिक विषमताओं और खाइयों वाले भारतीय समाज की हुई। नेतृत्व की सबलता और विफलता की हुई। पर जो खाका उन्होंने खींचा, वह भविष्य के विजन का था। तभी उनसे पूछ लिया कि हमारे देश में जो लालफीताशाही है, भ्रष्टाचार की पटवार व्यवस्था से लेकर शिखर नेतृत्व तक की लंबी रेन्ज है, न्याय व्यवस्था का लंबा कालमान है, उसके रहते उनका यह यूटोपिया (दिवास्वप्न) कैसे हकीकत बनेगा? उनका उत्तर न आर्थिक था, न सामाजिक। बोले- एक ही आधार है, चाहे जनता हो, कार्यपालिका हो, विधायिका हो,पत्रकारिता हो या न्याय व्यवस्था; हमे "झंडा ऊंचा रहे हमारा'' को विजन और क्रिया में जीना होगा।
सचमुच में आज वही ध्येयवाक्य याद आ रहा है। 2047 में अभी पच्चीसवर्ष हैं, पर शताब्दी स्वप्न के सोच, लक्ष्य और क्रियान्वयन के लिए इस गीत को जीना तो होगा ही। यह गर्व की बात है कि चन्द्रमाँ पर तिरंगा पहुँचा। ब्रह्मोस मिसाइल ने दुनिया में अपना डंका बजाया। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के साथ शस्त्रों के निर्यात की सफल दिशाएँ बनीं। कृषि उत्पादन के लिए पूरा विश्व भारत की ओर देखने लगा। रेलों ने स्पीड बढ़ाई। राजमार्गों की लंबाई बढ़ी।इसरो ने प्रतिमान के साथ विश्वस्तर पर कमाई के झंडे गाड़े। चिकित्सा क्षेत्र में भारत हब बना। आईआईटी ने पहली बार विदेश में अपना कैंपस बनाया। सिलिकॉन वेली मे भारत की साइबर दुनिया ने जलवा दिखाया। सीमावर्ती चौकसी को सुदृढ़ किया।बता भी दिया कि भारत से लड़ना आसान नहीं है।
और यह कोई दो तीन दशकों की उपलब्धि नहीं। भाखरा नांगल डेम और कोरबा जैसे स्टील प्लांटों और आईआई टी जैसी तकनीकी संस्थाओं के साथ इसरो, डी .आर.डी. ओ. आदि ने खूब काम किया। पर आज "विजन 2047" की बात चल रही है, तो डिजिटल और फिजिकल दोनों ही बात करनी होगी। आज भारत का यूपीए अंतरराष्ट्रीय बन रहा है। साइबर तकनीक, बैटरी चालित वाहन, भुगतान प्रणाली, संचार सुविधाएँ इलेक्ट्रानिक की प्रविधियाँ बढ़ रही हैं। सरकार की विभिन्न योजनाओं के लाभ के लिए मोबाइल आधार बन गया है। पर उभी जन मानस इसे फिजिकल के साथ देखना चाहता है। इसलिए भी कि आखिर मतदाता विषमता की खाई को जीता है और हमारी चुनावी प्रक्रिया में लोकलुभावन वादे मतदाता को प्रभावित करते हैं। इस बात का विरोध नहीं कि धान को गोदामों में सड़ने देने के बजाय गरीबों के घर तक जाना चाहिए। पर यदि वह वोट बटोरू बनता जाए तो यह शब्द राजनैतिक दलों के लिए भले ही फायदेमन्द हो, पर जन-स्वाभिमान के साथ दीर्घकालीन योजनाओं के लिए घातक ही होगा।
हमारी मुश्किल यह भी है कि चुनावी शतरंज में हम जगह- जगह अपने -अपने डोकलाम खड़े कर लेते हैं। चलो, चीनी सीमा के डोकलाम पर तो जीत पाई। पर जातियों- उपजातियों का चुनावी गणित नये डोकलाम रचकर आगजनी और हिंसा में बदल जाते हैं। क्षेत्रीयता केवल प्रदेश विशेष की बात नहीं रह जाती। प्रदेश मे भी अपना क्षेत्र देखकर आंदोलन होते हैं। भ्रष्टाचार को लेकर न्यायिक प्रक्रिया इतनी लंबी चलती है कि दंड विधान का डर ही नहीं रहता। यही नहीं तब संस्कृति, धर्म, भाषा, लिंग और पहचान के मुद्दे नये-नये डोकलाम बनकर आर्थिक मजबूती और विकास की राहों को जाम कर देते हैं।
यदि विजन 2047 को विश्वशक्ति का प्रतिमान बनना है, तो वे तभी बनेंगे जब नागरिकों के मनोबल मे 'झंडा ऊँचा रहे हमारा' भावनात्मक क्रियावाद बनेगा। तब हर घर अपने आगे एक पेड़ देखेगा। पशुधन को चरणोई की हरी घास और तालाब का पानी मिलेगा। किसान पटवारी की पगवाट की ओर नहीं झाँकेगा। नौकरशाहीको दंडविधान का डर होगा। रेलों और परिवहन के साधनों को स्वच्छ रखने का नागरिक बोध होगा। राजनेताओं के भ्रष्टाचार को अधिकतम दो वर्षों में निपटाने की त्वरित न्याय व्यवस्था होगी। दलीय स्वार्थ के पहले जनहित और देशहित होगा। पार्टियों के पिछलग्गू चैनलों के बजाय वास्तविकताओं के निरपेक्ष संचार माध्यम होंगे।और निरंतर तकनीकी विकास को हर क्षेत्र में नये पंख मिलेंगे।
पर वैश्विक दृष्टि से आज भारत की जो छवि बनी है, वह सेटेलाइट से बनी है। मिसाइलों से बनी है। संचार से बनी है। कृषि उत्पादनों से बनी है। मेडिकल हब से बनी है। उत्कृष्ट शिक्षा संस्थानों से बनी है। आयातित तैल के विकल्पों से बन रही है। सौर ऊर्जा से बनी है। कूटनीतिक पेंचों से बनी है। गरीब देशी की सहायता और उनके आर्थिक विकास में सहभागिता से बनी है। संचार प्रणालियों में फाईव जी से बनी है। रक्षा सौदों से बनी है। इससे भी आगे जी-ट्वेन्टी, ब्रिक्स जैसे संगठनों में केन्द्रीयता से बनी है। इसलिए तकनीकी प्रगति में नये दृश्य रचने होंगे, जो विकास और खेतिहर उत्पादनों से विश्व को भी आश्वस्त कर सके।
यह महत्वपूर्ण बात है कि विदेशों में बसे भारतीयों ने उन देशों में जो कीर्तिमान और राजनैतिक सहभागिता कायम की है, वह भारत के विकास के साथ विश्व की कूटनीतिक पहचान में अपना रंग दिखाएगी। तब विश्व भर मे फैले भारतीयों और हमारे देश के जन जन में यही स्वर तरंगायित होगा - "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।"
- बी. एल. आच्छा
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