फर्क : Short Story Fark | Hindi Top Kahaniya | Laghukatha

Dr. Mulla Adam Ali
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Laghukatha Fark : Hindi Short Story

Laghukatha Fark

लघुकथा : फर्क

शादी की चौथी सालगिरह बड़ी धूम-धाम से मनायी जा रही थी, घर-आंगन में यदि कोई कमी थी तो, वह थी शालनी की सूनी गोद?

दूसरी और काम वाली बाई ने इन बीते हुए चार वर्षो में तीन लड़कियों को जन्म दे चुकी थी, और चौथा. .... पेट में।

शशिकांत और शालनी का छोटा सा परिवार खुश था, बाकी के परिजन "मम्मी- पापा, भाई-बहिन" पैतृक गाँव में ही जीवन बसर कर रहे थे। हालांकि काम वाली बाई "बलदेई"जब-जब पेट से होती शालनी की चिन्ता बढ़ने लगती, शशिकांत के प्यार में भी तो कोई कमी नहीं है, यही सोच कर हर पल को यादगार बनाने की कोशिश करती, किन्तु सूनी गोद खुशियों में यदा-कदा ग्रहण लगा ही देती? मालकिन- मालकिन, जरा सम्भल कर, बलदेई अपनी बात पूरी कर पाती कि शालनी धम से नीचे गिर ही गयी, उधर शशिकांत ने दौड़ कर शालनी को उठाया, तुरन्त ही चिकित्सक की व्यवस्था की गयी, चिकित्सक ने 'शालनी का, चेकअप करते हुए कहा "खुशियों की दस्तक", है? मैं समझा नहीं, शशिकांत ने चिकित्सक की और इशारा करते हुए कहा । आप 'बाप बनने वाले हो, शालनी का अधिक ध्यान रखे। शालनी की तीमार दारी में शशिकांत ने एक अन्य काम वाली का इन्तजाम कर लिया सुने घर में हर घड़ी हर पल खुशियों का इन्तजार था, उस पल के आने का जो अपने साथ घर के चिराग को जलाए रखने जा रहा था। उधर काम वाली आज सातवें दिन काम पर लौटी थी, चौथी कन्या को गोद में लिए, चेहरे पर वही औज, वही मुस्कान व खिल खिलाता चेहरा। शशिकांत और शालनी ने एक साथ बलदेई से पूछ ही लिया, अरी ठीक तो है बेटी तेरी क्या करेगी इन चार-चार बेटियों का? बाबू जी हमारे बस में थोडे ही है कि लड़का ही पैदा करे? समय ने करवट ली और शालनी की सुनी गोद बेटी ने भर दी।

शशिकांत के चेहरे पर मायूसी साफ झलक रही थी, वहीं शालनी भी बेटी के आगमन से खुश न थी, अरे कल तक तो मालकिन और बाबू जी 'बेटी' की ही माँग करते थे. फिर आज क्या हो गया काम वाली बाई आपस में बतियां रही थी। अरे बेटे या बेटी में फर्क कैसा, बेटियां जहां दो परिवारों को एक सूत्र मे पिरोती है वही बेटा एक परिवार में भी विघटन करने से नहीं चुकता, क्या इसी लिये 'बेटी' को हेय की दृष्टि से देख जाता है, आखिर ये फर्क क्यों?

- एम. आर. शिवा सहारनपुर

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