विधाता की महिमा : Vidhata Ki Mahima | Best Khaniya Hindi Me

Dr. Mulla Adam Ali
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Vidhata Ki Mahima : Best Khaniya Hindi Me - Kahani in Hindi

Vidhata Ki Mahima

विधाता की महिमा हिंदी कहानी : जिसके सिर पर भगवान का कर व आशीर्वाद हो वही पाता है। अंतरिक्ष के कदमों में धन उछल कर आया इसे कहते हैं विधाता की महिमा इसी विषय पर आधारित हिंदी कहानी "विधाता की महिमा", ईश्वर पर विश्वास की कहानी विधाता की महिमा। हिन्दी कहानियां विधाता की महिमा पर विशेष। Best Hindi Story, Hindi Kahani Vidhata Ki Mahima...

विधाता की महिमा

रत्नागिरी गाँव का एक मध्यम श्रेणी का परिवार था। उस परिवार में कुल सात व्यक्ति थे माता-पिता, दो भाई दो बहनें। मुखिया की दो पत्नी थीं रागिनी व कामिनी रागिनी व कामिनी दोनों ही की एक लड़की व एक लड़का था। बड़ी एक गाँव के कस्बे में रहती। उनकी दो बीघा जमीन थी। वह अपना भरण पोषण ठीक से कर लेते थे। दूसरी पत्नी नौकरी करती थीं व बच्चों का गुजर बसर कर लेती थी। बच्चों को पढ़ाना, लिखाना व उनका जीवन बनाने की उसकी बहुत इच्छा थी। लेकिन आमदनी कम व खर्च ज्यादा होने के कारण चाहते हुए भी वह बेटी को अधिक न पढ़ा सकी। बेटे को पढ़ाने के लिए बहुत उत्सुक थी, उसे बाहर शहर में पढ़ने को भेजा। रागिनी का लड़का खेती करने में विश्वास रखता था, लगन से खेती कर वह अच्छा कमा लेता था। छोटे भाई की बड़ी क्लास की पढ़ाई (उच्च शिक्षण की वजह से ) छोटे भाई को बड़े भाई ने पूर्ण आर्थिक सहायता की। उसका एम.टेक. का आखिरी वर्ष था, अंतिम वर्ष होने से कॉलेज के सभी मित्र हॉलीडे मनाने हिल स्टेशन जा रहे थे। अंतरिक्ष ने अपने भाई से आग्रह कर पैसे देने को कहा, उन्होंने स्वीकृत दी, फिर वह घूमने गया, समयाभाव के कारण वे दो रोज घूम कर आ गए। परीक्षाओं की समाप्ति के पश्चात वह अपने घर लौटा। उसे प्रभु पर आस्था बहुत थी, एक दिन उसे साक्षात ईश्वर के दर्शन हुए और ऐसा महसूस हुआ मानो, बिजुरी चमक कर लुप्त हो गई हो। कुछ समय के अंतराल से उसके जीवन में मोड़ आया, खेत के मध्य दरार पड़ी उसे मानो कोई कह रहा हो उसके अंदर रखा कुबेर उछल जाएगा वह सब तेरा है, तेरी बहनों की जिम्मेदारी का ध्यान रखना, एकाएक स्वर्ण से पूरित घट ऊपर आया उसके ज्येष्ठ भ्राता हतप्रभ रह गए, उसने यह सब पहले ही अपने भाई को बताया, वह मजाक समझ बैठे। जमीन फटने से भाई को परेशानी आई, वे घबरा गए, हताश हुए अब क्या होगा, लेकिन उस नक्काशी भरे घट की चकाचौंध भाई को भी नजर आई, लेकिन आगे बढ़ छूने की हिम्मत न हुई, वह अनजाना बन नजर अंदाज कर देखता रहा। अंतरिक्ष स्वयं आगे बढ़ा, उसके कंठ में गूँज हुई आवाज आई, मुझे निकालो देर न करो अन्यथा कुछ न पाओगे, उसने प्रयास किया निकाला, जैसे ही छुआ स्वर्ण सिक्के घट से दूर उछल गए, उसने एकत्रित कर घर जा अपनी माँ को बतलाया भाई के खेत में दरार हुई व मुझे घट से सिक्के मिले।

पुराने जमाने में बुजुर्ग स्वयं सुख से नहीं रहते, वे सारा धन बचाकर जमीन व दीवार में रख ऊपर से लेपन व फूल बनाकर रख देते थे। उसका आनंद सुख दूसरों को मिलता और वे समृद्ध हो जाते। यह कहावत चरितार्थ होती है। कुबेर हर किसी के भाग्य में नहीं होता, जिसके सिर पर विधाता का कर व आशीर्वाद हो वही पाता है। अंतरिक्ष के कदमों में धन उछल कर आया इसे कहते हैं विधाता की महिमा।

- श्रीमती आशा टण्डन, उज्जैन

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