Hindi Language : बदलते परिदृश्य में हिन्दी भाषा की स्वीकार्यता
बदलते परिवेश में हिन्दी भाषा की भूमिका
यों तो हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार की प्रक्रिया उन्नीसवीं शती में ही प्रारंभ हो चुकी थी, लेकिन 20वीं शती तक आते-आते जन साधारण में राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार की बात पूरी तरह घर कर गयी। उस समय हिन्दी भाषा को लेकर जो बहस छिड़ी, उसमें जनसाधारण के अतिरिक्त पत्रकार शिक्षाविद्, वैज्ञानिक एवं राजनेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण मानी गयी। साथ ही 'सरस्वती' पत्रिका की भूमिका भी सराहनीय रही, जिसके माध्यम से महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी भाषा के परिमार्जन एवं परिष्कार का बीड़ा उठाया था। इस तरह एक ओर जहाँ भारतीय जन मानस में राष्ट्र को स्वतंत्र कराने की भावना जाग्रत हो चुकी थी, तो दूसरी ओर हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रस्तुत किया गया। क्योंकि इस बात को सभी भली-भाँति जानते थे कि भाषा के अभाव में हम स्वाधीनता संग्राम में विजयी नहीं हो सकते। इस प्रकार हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में तेज़ी आयी। राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत सभी राष्ट्र भक्त प्रांतीय भावना से ऊपर उठकर हिन्दी भाषा की समृद्धि हेतु समर्पित भाव से एक जुट हो गये। इसके फलस्वरूप हिन्दी भाषा ने शनैः शनैः समूचे राष्ट्र को भाषाई एकता के सूत्र में पिरो दिया। इस तरह हिन्दी ने स्वाधीनता आन्दोलन में अपना जो योगदान दिया इसके लिए समूचा राष्ट्र उसका सदैव ऋणी रहेगा।
बीसवीं शती के मध्य का समय भारत के इतिहास में इस दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है कि पंद्रह अगस्त 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिली, तो दूसरी ओर राष्ट्रीय एकता और भावात्मक एकता की कड़ी हिन्दी भाषा को 14 सितम्बर 1949 को राजभाषा बनने का गौरव प्राप्त हुआ। हिन्दी भाषा को राजभाषा का गौरव तो प्रदान कर दिया, लेकिन इससे संबंधित नीति निर्धारण कर उसे पन्द्रह वर्ष का वनवास भी दे दिया। इसके परिणाम स्वरूप हिन्दी भाषा कई दशकों तक राजनीति के कुचक्रों में फंसी रही, लेकिन तब भी वह मरी नहीं। क्योंकि उसका जन्म ही ऐसी ही परिस्थितियों में हुआ था। इसलिए मरने का प्रश्न ही नहीं उठता। अनेक झंझावातों ने हिन्दी भाषा के अस्तित्व को मिटाना चाहा, लेकिन फिर भी वह आज नाना रूपों को धारण कर जीवित है। इसके संदर्भ में डॉ. श्रीनिवास द्विवेदी का मत है कि "हिन्दी किसी भी परिस्थिति में मर नहीं सकती, कारण यह है कि वह गड़ी जीवन्त और 'प्राणवान भाषा' है। जिस भाषा में 'प्राण' है वह भला मर कैसे सकती है। हाँ, उसका रूप समय-समय पर बदलता रहेगा। मरता तो शरीर है, प्राण तो कभी मर नहीं सकता। हिन्दी का एक यही पक्ष सबसे प्रबल है। प्रारंभ से ही हिन्दी अपनी कलेवर समयानुसार परिवर्तित करती हुई, विशाल जनमानस का रंजन करती रही है और भविष्य में भी करती रहेगी। विगत पांच दशकों में राजभाषा संबंधी गलत नीति निर्धारण के बाद भी हिन्दी की प्रगति संतोषजनक मानी जाती है। क्योंकि हिन्दी का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। इसके उपरान्त भी आज हिन्दी समूचे राष्ट्र की अभिव्यक्ति का माध्यम बन चुकी है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पूर्व विदेश मंत्री वर्तमान प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशनों को हिन्दी में संबोधित कर समूचे विश्व के समक्ष यह स्पष्ट कर कहा कि हमारी भी एक सशक्त भाषा है, जो कि किसी भी विश्व की भाषा से क्षमता में कम नहीं है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत हिन्दी भाषा को विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित करने हेतु प्रयासरत है। भारत सरकार ने हिन्दी के सत्य को स्वीकार कर, उसे अधिकारिक भाषा बनाने की चर्चा भी प्रारंभ की, जिसका परिणाम यह हुआ कि यूनेस्को ने हिन्दी को मान्यता प्रदान कर दी। यह हिन्दी भाषा के लिए गौरव का विषय है।
बदलते परिवेश में हिन्दी भाषा की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होगी, यह तो समय ही निर्धारित करेगा। लेकिन आज जब हमने नयी शती में प्रवेश किया तो इस क्षेत्र में बड़े परिवर्तनों के संकेत मिलने लगे हैं। मीडिया के क्षेत्र में लगातार बढ़ता हिन्दी का प्रयोग होने वाले परिवर्तनों का सूचक है। क्योंकि आज सूचना प्रौद्योगिकी का युग है। इस युग में निश्चित रूप से यह हमारे संपूर्ण सामाजिक व्यवहार, सोच और संस्कारों के साथ-साथ साहित्य को भी प्रभावित करेगा। इस तरह आज व्यापक स्तर पर कम्प्यूटरीकरण तथा सूचना प्रौद्योगिकी व नवीन साधनों माध्यमों का उपयोग करने पर ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है। साथ ही ज्यादातर कार्य कम्प्यूटरों पर ही आधारित होते जा रहे हैं। व्यवहारिक क्षेत्रों में भी इसकी उपयोगिता निरंतर बढ़ती जा रही है। इसलिए आज हिन्दी सॉफ्टवेयर एवं उपयुक्त पद्धतियों के निर्माण को प्राथमिकता दी जा रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि देश में बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपनी जड़ें जमाने हेतु भारतीय जनमानस को लुभाने में प्रयासरत हैं। इन्हीं प्रयासों की सफलता हेतु हिन्दी भाषा को व्यवसाय की भाषा बनाना, विशेषकर इन्टरनेट जैसी सेवाओं में भी हिन्दी को अपनाना नितान्त आवश्यक होता जा रहा है। ऐसी कम्पनियाँ अपने विज्ञापनों को इन्टरनेट पर हिन्दी में प्रसारित करा रही हैं। इस क्षेत्र में हिन्दी की संभावना निरंतर बढ़ रही है। कारण, अधिकांश भारतीय हिन्दी जानते हैं। जबकि आंग्ल भाषा जानने वाले भारत में न के बराबर हैं।
आज सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस युग में हम घर बैठे इन्टरनेट पर वेबसाइट 'दुनियाँ डाट कॉम' जो कि विश्व का पहला हिन्दी पोर्टल साइट है के माध्यम से बहुत सी जानकारियाँ हिन्दी में प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा इसलिए संभव हुआ है क्योंकि हिन्दी अभिव्यक्ति-क्षमता में अचूक है, साथ ही मर्मस्पर्शी भाषा है। शिक्षा का संपूर्ण माध्यम बनने की इसमें क्षमता है, प्रत्येक क्षेत्र में उपयोग हेतु हिन्दी का पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है। इस प्रकार हिन्दी भाषा की विकास यात्रा के बढ़ते चरणों को देखकर ऐसा लगता है कि यह 21वीं शती के मध्य तक वटवृक्ष का रूप धारण कर लेगी।
- डॉ. यदुवीर सिंह खिरवार
ये भी पढ़ें; वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारतीय समाज और हिन्दी भाषा