Dr. Girirajsharan Agarwal Poetry in Hindi : Bachpan Mera Kavita Hindi
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Bachpan Mera Kavita in Hindi
बचपन मेरा
कहाँ गया वह बचपन मेरा
उछल-कूद करते थे मिलकर
धमाचौकड़ी हम करते थे
छुट्टी की तो बात निराली
नहीं किसी से हम डरते थे
अब तो दफ्तर की खिच खिच ने
छीन लिया है सुबह सवेरा
लेकर अपनी कलम किताबें
सुबह-सुबह पढ़ने जाते थे
इंटरवल में बैठ बेंच पर
मिलकर हम खाना खाते थे
छूटे सारे दोस्त हमारे
जगह-जगह पर किया बसेरा
नई कहानी हमें सुनातीं
रोज रात को मम्मी दादी
अब तो केवल भाग-दौड़ है
नहीं बैठने की आजादी
अब तो पता नहीं चलता है
रात हुई या हुआ सवेरा
- डॉ. गिरिराजशरण अग्रवाल
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