विश्व भाषा के रूप में हिंदी : Hindi Vishwa Bhasha Ke Roop Mein
हिन्दी भाषा की अंतरराष्ट्रीय स्थिति
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हिन्दी भाषा की अंतरराष्ट्रीय स्थिति
जिस साधन के द्वारा मनुष्य अपने भावों और विचारों को बोलकर या लिखकर अभिव्यक्त करता है। उसे भाषा कहते है। भाषा केवल विचार अव्यिक्ति का ही साधन नहीं बल्कि राष्ट्र विकास तथा आर्थिक विकास का भी उपकरण है। देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली हिन्दी का स्थान सभी भारतीय भाषाओं में सर्वोपरि है। हिन्दी महान, उदार व सहिष्णु भाषा के रूप में गौरवान्वित है। अपनी सरलता सहजता एवं उदारता के कारण आज हिन्दी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर द्रष्टिगोचर होती है।
लगभग 2000 वर्ष पूर्व हमारे देश की भाषा' संस्कृत थी। हिन्दी भाषा का जन्म संस्कृत से हुआ है। हिन्दी भाषा का आरंभ मुख्यतः 12 वीं शताब्दी से माना जाता है। उस समय हिन्दीपर प्राकृत तथा अपभ्रंश का प्रभाव था। सोलहवीं शताब्दी में उस पर से यह प्रभाव हट गया तथा ब्रज और अवधी के रूप में यह एक स्वतंत्र भाषा के रूप में स्थापित हुई। तत्पश्चात 19वीं शताब्दी में खड़ी बोली को भारतेंदु हरिश्चंद्र ने विकसित किया तथा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इसे संस्कारित किया। यही खड़ी बोली हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की भाषा रही। जो आज हिन्दी के रूप में जानी जाती है।
आरंभ के 600 वर्षों तक हिन्दी पर अरबी, फारसी का प्रभाव रहा, उसके उपरांत लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजी, फ्रांसीसी, पुर्तगाली तथा डच भाषाओं से हिन्दी प्रभावित रही है। विश्व की 3000 भाषाओं को मुख्यतः बारह परिवारों में विभाजित किया गया है, जिनमें भारोपीय एवम् द्रविड परिवार प्रमुख है। तमिल, तेलुगु, कन्नड और मलयालम आदि दक्षिण भारतीय भाषाएँ द्रविड़ परिवार की भाषाएँ है, जो मूल भारतीय भाषाओं के काफी निकट की मानी जाती है। भारोपीय परिवार की प्राचीनतम भाषा वैदिक संस्कृत है। जिससे हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं का विकास हुआ। हमारे वेदों की रचना वैदिक संस्कृत भाषा में हुई इसके उपरांत लौकिक संस्कृत का आगमन हुआ जिसमें रामायण एवम् महाभारत जैसे काव्य ग्रंथों की रचना हुई। बाद में लौकिक संस्कृत के परिवर्तित रूप में पालि प्रचलन में आयी जिसमें बौद्ध साहित्य का निर्माण हुआ। पालि के पश्चात प्राकृत का अविर्भाव हुआ। प्राकृत का ही परिवर्तित रूप अपभ्रंश है। इसी अपभ्रंश से हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाएँ विकसित हुई।
भारतीय आर्य भाषा परिवार की प्रमुख भाषा हिन्दी है, जिसकी प्रमुख पांच उपभाषाएँ हैं। पूर्वी हिन्दी, पश्चिमी हिन्दी, राजस्थानी, पहाड़ी तथा बिहारी, अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी। पूर्वी हिन्दी की बोलियाँ ब्रज, खड़ीबोली, हरियाणवी, बुंदेली और कन्नोजी। यह पाँच बोलियाँ पश्चिमी हिन्दी के अंतर्गत आती है। राजस्थानी हिन्दी की छह उपबोलियाँ है- जयपुरी, मेवाडी, मालवी, मारवाडी, मेवाती और भीली कुल्लई, गढ़वाली एवम् कुमाऊनी ये तीनों पहाड़ी हिन्दी की बोलियाँ मानी जाती है तथा मगही, मैथिली एवम् भोजपुरी, बिहारी हिन्दी की बोलियाँ है।
हिन्दी न किसी जाति विशेष की बोली है न किसी व्यक्ति विशेष की मातृभाषा है। अपितु हिन्दी राष्ट्रीय एकता का दर्पण है। अहिंदी भाषा प्रदेशों के मनीषियों और संतों का हिन्दी के प्रचार-प्रसार में विशेष योगदान रहा है। राष्ट्र की एकता अखंडता और बंधुता को बनाए रखने में हिन्दी की अहम् भूमिका रही है। हिन्दी देश की सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय भाषा है। हिन्दी प्रेम की भाषा है। हृदय की भाषा है। यही उसकी शक्ति है। हिन्दी भारत की आत्माभिव्यक्ति की वाणी है, इसका उन्नयन लोकाश्रय में हुआ।
देश में सर्वाधिक बोली और समझी जानेवाली भाषा होने के कारण हिन्दी को 14 सितम्बर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित किया गया है। तभी से प्रतिवर्ष 14 सितम्बर हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। पिछले 50-60 वर्षों में हिन्दी की अपार शब्द संपदा का जितना विस्तार हुआ है। उतना विश्व की शायद ही किसी भाषा में हुआ हो।
संयुक्त राष्ट्र के सर्वेक्षण 1999 के आंकडों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी जानने वाले सर्वाधिक 1022 मिलियन है जबकि चीनी भाषा के संदर्भ में संख्या 900 मिलियन है। भाषा विशेषज्ञों के आंकडों के अनुसार भारत में हिन्दी के प्रयोगकर्ता 70 फीसदी से अधिक है, जब कि अंग्रेजी भाषा बोलने वालों की संख्या मात्र 0.58 फीसदी है। हिन्दी की शब्द संपदा 2,50,000 से अधिक शब्दों की है। विश्व के 73 राष्ट्रों के 150 विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पठन-पाठन एवं अनुसंधान की सुविधा उपलब्ध है। मॉरीशस एवं फीजी में तो 70 फीसदी जनता हिन्दी का ही प्रयोग करती है। सूरीनाम, त्रिनिदाद, टोबेगो, गुयाना आदि देशों में भी 50 फीसदी लोग हिन्दी का प्रयोग करते है, श्रीलंका के तीनों विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है। इंडोनेशिया की भाषा में 18 फीसदी शब्द संस्कृत के है, थाईलॉन्ड में लाखों लोग हिन्दी जानते है। चीन, जपान, यूरोप और अमेरिका में हिन्दी का प्रचार एवं पठन-पाठन जोरों पर है। चीन में आकाशवाणी पर तथा ब्रिटेन में बी.बी.सी पर हिन्दी का वर्चस्व है और वहाँ के करोडों लोग इसके दीवाने है। फ्रांस, इटली, स्वीडन, ऑस्ट्रिया, नार्वे, डेन्मार्क, स्वीटज़रलॉड, पोलैण्ड, चेक गणराज्य, जर्मन, रोमानिया, बुलगारिया, हंगरी, तुर्की, इराक, मिस्र, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, दुबई व पाकिस्तान आदि में हिन्दी ने अपना स्थान बना लिया है। अंतर्राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के संबंध में उपरोक्त द्रष्टव्य देने का कारण मात्र ही है कि "हिन्दी आज भी विश्व की सर्वाधिक सशक्त भाषा है। हिन्दी भारत के जन-जन को प्रिय है। आज हिन्दी विश्व के संपर्क भाषा के रूप में विकसित हो रही है।"
यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि सत्ता में बने रहने अथवा जनता से जुड़ने के लिए कुछ राजनेताओं ने हिन्दी सीखी जिनमें श्री एच.डी. देवेगौडा (पूर्व प्रधान मंत्री), डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (पूर्व राष्ट्रपति महोदय) एवं कॉंग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी प्रमुख है जिन्होंने अहिन्दी भाषी क्षेत्रों से होकर भी हिन्दी सीखकर जनता से सीधे जुड़ने का प्रयास किया। इस सम्बन्ध में डॉ. सुरैया शेख कहती है कि “हिन्दी के लिए आने वाला कल संयुक्त राष्ट्रसंघ तथा अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनने की ओर संकेत करता है।"
आज जब हिन्दी संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषा बनने की ओर तेजी से बढ़ रही है तब हमारा कर्तव्य है कि हम इसे अपने देश में भी सशक्त बनाने पर ध्यान दें। हिन्दी के उत्थान के लिए सभी विद्यालयों में हिन्दी प्रथम भाषा के रूप में पढ़ाई जाए। विज्ञान, चिकित्सा एवं ब्रम्हांड पर आधारित शास्त्रों के अनुसार शिक्षा का प्रारंभ किया जाए। हिन्दी के पत्र-पत्रिकाओं पर विशेष आर्थिक सुविधा प्रदान की जाए। हिन्दी का प्रयोग न्यायपालिका एवं विधायिका में अनिवार्य बना दिया जाए। अगर कहीं थोड़ी बहुत समस्या हो तो यह सम्मान स्थानीय भाषा को दिया जाए। आज भारत अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बाजार है।
भारत जैसे विकासशील देश में जहाँ तीव्र गति से औद्योगिक विकास हो रहा है, उत्पादकों के लिए कच्चे माल से लेकर उपभोक्ता तक हर चीज सहजता से और सुलभता से प्राप्त हो सकती है जहाँ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस मुक्त व्यापार की बात की जाती है उसके लिए भारत अत्यंत लायक देश है। उद्योग के लिए जिस ज्ञान-विज्ञान की आवश्यकता होती है उसके संप्रेषण के माध्यम के रूप में हिन्दी अत्यंत सक्षम भाषा है।
साथ ही हिन्दी की प्रकृति अत्यंत लचीली होने के कारण अनेक देशज एवं विदेशी शब्दों की स्वीकृति एवं प्रयोग अबाध गति से होते आया है। भारत संसार का बड़ा बाजार होने के कारण विकसित देशों की दृष्टि इस महाउपनिवेश पर टिकी हुई है। स्वाभाविकता से भारत की राजभाषा एवं साधारण जनों द्वारा बोलने और व्यवहार में लायी जाने वाली हिन्दी में बहुराष्ट्रीय कंपनी आकर्षित हो गई। इसके पीछे उनका अपना स्वार्थ ही क्यों न हों, पर हिन्दी पर प्रचार-प्रसार के लिए यह अत्यंत फायदेमंद साबित हुआ। इस तरह हिन्दी का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। अमेरिका जैसे विकसित देश में हिन्दी का अध्ययन- अध्यापन इस बात को प्रमाणित करता है। प्रो. आलफन के मुताबिक अमेरिका में हिन्दी की पढाई 1960 के दशक में ही शुरु हो गयी थी। आज वहाँ के सौ विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढाई जाती है। इसका कारण यही है कि केवल भारत ही नहीं बल्कि अन्य राष्ट्रों में भी हिन्दी का प्रयोग प्रचलित है। डॉ. शेरसिंह विष्ट ने लिखा है कि अंतर्राष्ट्रीयकरण के संदर्भ में जहाँ तक हिन्दी भाषा का संबंध है, "हिन्दी न केवल भारत की राजभाषा एवं संपर्क भाषा है वरन् विश्व में बोली जाने वाली दूसरी सबसे बड़ी भाषा है जिसका प्रयोग लगभग 22 देशों में 80 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा किया जाता है। अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए विज्ञापनों, होर्डिंगों तथा प्रचार, प्रसार सामग्री में हिन्दी को सर्वाधिक स्थान दे रही है।"
औद्योगिक उत्पादन को उपभोक्ताओं तब या बाजार तक पहुँचाने की जो प्रक्रिया है उसमें अपने उत्पादन को बेचने के लिए उत्पादन का विज्ञापन करना सबसे महत्वपूर्ण है। विज्ञापन को लोगों तक पहुँचाने के लिए मीडिया का सहारा लेना पड़ता है। फिर चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट मीडिया द्वारा प्रसारित विज्ञापनों का लोगों पर अधिक प्रभाव बनता है। विज्ञापन में सबसे जरुरी तत्व होता है। विज्ञापन की भाषा जानकारियों, सूचनाओं तथा विज्ञापनों की बदकारियों में हिन्दी की अनिवार्यता का लोहा सभी ने मान लिया है, चाहे साबुन बेचना हो या तेल, चाहे शेयर बेचना हो या वस्त्र, चाहे कार बेचना हो या सब्जी। विविध शिल्प- कौशल्य-विशेषज्ञों ने हिन्दी के समक्ष घुटने टेक दिये। हिन्दी फिल्मों का बाजार और बाजार की हिन्दी फिल्मों का करोड़िया - मुनाफा सिर्फ हिन्दी के कारण ही संभव हो सका है। विज्ञापन चाहे किसी भी उत्पाद का हो उसका माध्यम हिन्दी ही लोगों के दिलों पर छा जाता है। पर हमें इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए मीडिया की हिन्दी या फिर उससे आगे चलकर विज्ञापनों की हिन्दी परिनिष्टित या मानक हिन्दी नहीं है।
उसे अपने स्वरूप में बदलाव करना पड़ा। जैसे दिल मांगे मोर, ठंडा मतलब कोकाकोला है। समय की बदलती मांग को पहचानकर हिन्दी ने अपना स्वरूप बदल लिया है। यह देखकर कदाचित विस्मय हो सकता है कि सिर्फ डेढ सौ बरस की सीमित कालावधि में हिन्दी का बाजार और बाजार की हिन्दी का कारोबार प्रकारांतर से इतना व्यापक, इतना विस्तृत और इतना महत्वपूर्ण कैसे बन गया? हिन्दी को जीवन संग्राम की भाषा बनाने में बाजार का उतना ही बड़ा योगदान है, जितना की विचार का? हिन्दी ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति की पुस्तकें हो, हिन्दी समाचार पत्र हो या हिन्दी टी.वी. चैनल्स या फिर हिन्दी फिल्में बाजार में हमेशा उन्होंने अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है।
आज का युग तीव्र गति, स्टोरेज की सुविधा और विश्वसनीयता कम्प्युटर की विशेषताएँ है। इसलिए आज कम्प्युटर ने हर घर में अपना स्थान बना लिया है। इस क्षेत्र में भी हिन्दी ने अपना जादू दिखा दिया है। न्यूयार्क स्थित ऑन लाईन रिसर्च कंपनी ज्युपीटर रिसर्च के अनुसार 2012 तक चीन और अमेरिका के बाद ऑनलाईन भारतीय उपभोक्ताओं की संख्या विश्व में सबसे ज्यादा हो जाएगी। कम्प्यूटर के क्षेत्र में आयेदिन नये-नये अनुसंधान होते जा रहे है। भविष्य में हिन्दी अपनी उच्चारण वैज्ञानिकता के कारण कम्प्यूटर के क्षेत्र में मास्टर भाषा बनने जा रही है। अब तो हिन्दी भविष्य के कम्प्युटर की भाषा है, जब कम्प्युटर कीबोर्ड पर टाईप करने की बजाय माईक के रिसीवर पर बोलकर भी लिखा जा सकता है। फिलिप्स कंपनी द्वारा इस प्रकार का प्रयोग दूरदर्शन पर प्रस्तुत भी किया जा चुका है। नासा के प्रसिद्ध वैज्ञानिक आर. ब्रिग्स ने हिन्दी को भविष्य के कम्प्युटर की भाषा कहा है। यह बात तो तय है कि हिन्दी में वह सारे गुण एवं विशेषताएँ है, जो उसे आंतर्राष्ट्रीय स्तर की सबसे प्रचलित भाषा बना देंगे।
“ऐसी समृद्ध हिन्दी का भाषा आओ गौरव गान करें सब विश्व पटल पर इसको लाकर, भारत का सम्मान करें सब"
- प्रा. शेख मुखत्यार शेख वहाब
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