National Hindi Day : राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग की आवश्यकता

Dr. Mulla Adam Ali
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 National Hindi Day : Rajbhasha Hindi

Rajbhasha Hindi

राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग की आवश्यकता

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राजभाषा के रूप में हिंदी

भारत सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की स्थापना हिंदी के प्रयोग को लागू करने की दृष्टि से की गई है और इसके द्वारा वार्षिक कार्यक्रम में मंत्रालयों के लिए दिशा निर्देश तैयार किये जाते है। केंद्रीय हिंदी समिति का गठन किया गया है, जिसमें केंद्रीय मंत्री तथा हिंदी विद्वानों, सांसद एवं राज्य सभा सदस्य को मनोनीत किया जाता है। इसका कार्यकाल तीन वर्ष का है। इसी प्रकार मंत्रालयों की हिंदी सलाहकार समिति का गठन तीन वर्षों के लिए किया जाता है, जिसकी अध्यक्षता संबंधित मंत्री करते है, इसमें सांसद, राज्यसभा सदस्य तथा हिंदी विद्वानों को सदस्य के रूप में मनोनीत किया जाता है। इसका कार्यकाल तीन वर्ष का है। मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले साधनों के उपकरण में हिंदी को लागू करने तथा हिंदी में प्राप्त पत्रों को उनके उत्तर हिंदी में देने का प्रयास किया जाता है। मंत्रालय में मुख्य तौर पर हिंदी सलाहकार समिति द्वारा हिंदी शब्दों के लिए शब्दावली का भी निर्माण किया जाता है। हिंदी में कार्य करने वाले गैर हिंदी भाषी कर्मचारियों को प्रोत्साहित किया जाता है तथा हिंदी में पुस्तकों का प्रकाशन कर उन्हें प्रस्तुत किया जाता हैं।

हिंदी को संविधान में राजभाषा का दर्जा प्राप्त नही हो सका है, 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया था। 7 जून 1955 को 25 सदस्यों की राजभाषा आयोग का गठन कर सम्मिलित किया गया था। जिसने अपनी रिर्पोट में माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में हिंदी को माध्यम बनाये जाने की सिफारिश की थी। राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा के 20 सदस्य तथा राज्यसभा के 10 सदस्यों की एक संसदीय राजभाषा समिति गठित की थी। सन् 1960 में केंद्रीय हिंदी निर्देशालय, नई दिल्ली की स्थापना की गई। हिंदी भाषा के शिक्षण एवं प्रशिक्षण हेतु सन् 1961 में केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा में स्थापित किया गया है। सन् 1961 में वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, नई दिल्ली का गठन किया गया है, जिसमें अंग्रेजी के 4 लाख से अधिक शब्दों का हिंदी में रूपांतर किया है। सन् 1963 में राजभाषा अधिनियम बनाया गया और सरकारी काम काज में हिंदी के प्रयोग में वृद्धि हेतु यह समय-समय पर नियम बनाता है।

सन् 1985 में जामिया मिलिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में एम.एड. की परीक्षा में हिंदी तथा उर्दू को मान्यता दी गई है। सन् 1987 में आर्युविज्ञान विषय में शोध प्रबंध को हिंदी में मान्यता दी गई है। सन् 1989 में अभियंत्रिकी, परीक्षाओं में हिंदी को मान्यता मिली। सन् 1990 में दंतचिकित्सा, विधि स्नातक, परीक्षा सन 1991, तथा संघ लोक सेवा आयोग की सभी परीक्षाओं में भारतीय भाषाओं के माध्यम से हिंदी को सम्मिलित करने की मान्यता मिली। कंपनी सचिव संस्थान में भी सचिव की परीक्षाओं में हिंदी माध्यम की अनुमति दी गई है। भारत सरकार के समस्त मंत्रालय, कार्यालयों, शिक्षण संस्थाओं के कार्य-व -कलाप तथा केंद्रीय प्रवेश परीक्षाओं, मूल्यांकन पद्धतियों, प्रतियोगी परीक्षाओं में अंग्रेजी के साथ हिंदी के प्रयोग की अनिवार्यता कर दी गई है।

हिंदी को अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रसारित तथा संयुक्त राष्ट्रसंघ की अधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाने हेतु 10 जनवरी 1975 को नागपुर को प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसके अध्यक्ष मारीशस के तत्कालीन प्रधान मंत्री सर शिवसागर राम गुलाम थे। संयुक्त राष्ट्रसंघ के अधिवेशन में भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्व. श्री पी. वी. नरसिंहराव तथा विदेश मंत्री के रूप में श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी में भाषण दिया था। अभी तक 12 विश्व हिंदी सम्मेलन विभिन्न देशों में आयोजित हो चुके है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के सभा भवन में विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए, महासचिव माननीय बान की मून ने कहा था कि हिंदी भारत की एक सुंदर भाषा है, यह दुनियाभर की संस्कृतियों के बीच पुल का कार्य कर रही है। विश्व के विभिन्न देशों में हिंदी भाषा के अध्ययन के प्रति रुचि पाये जाने लगे है तथा शोध कार्य हिंदी में किये जा रहे है। हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा, नागरी प्रचारणी सभा, वाराणसी एवं केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद्, दिल्ली के द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर सेमिनार तथा अधिवेशन कर हिंदी में कार्य कर रहे है। भारत के गैर हिंदी प्रांतों में भी हिंदी संस्थाऐं तथा विश्वविद्यालय में हिंदी के अध्यापन कार्य एवं शोध कार्य कराये जा रहे है। केंद्रीय हिंदी निर्देशालय तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा हिंदी को पूर्ण रूप से लागू करने की दशा में कार्य किये जा रहे है। अब आवश्यकता इस बात की है कि केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग द्वारा देश के सभी विश्वविद्यालयों में हिंदी को लागू करने की दशा में अध्यापन एवं शोध कार्य हिंदी में कराये जाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए योजना तैयार करे, ताकि हिंदी को आगे बढ़ने का मौका मिल सके।

- प्रो. डॉ. वीरेन्द्र कुमार दुबे

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