Rajendra Verma Ki Hasya Vyanga Geet aur Ghazal in Hindi
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व्यंग्य गीत हिंदी में विष्णुपियारी! वर दे : Rajendra Verma Ke Geet in Hindi
विष्णुपियारी! वर दे
विष्णुपियारी ! मुझको वर दे,
रिद्धि-सिद्धि से झोली भर दे!
दे-दे ब्लेक मनी का निर्झर,
झर-झर झरता रहे निरन्तर;
मुझको ही धनवान बना दे ,
और सभी को निर्धन कर दे!
डॉलर हो मेरी अंटी में,
ताक़त हो मेरी संटी में;
दुनिया जिसमें आन समाए,
उतना भारी-भरकम घर दे!
शेख-अमीर पड़ें पैरों पर,
बिरुदावलि गायें जीवन-भर;
तेल-कूप प्रच्छन्न जहाँ हों,
ढूँढ-ढूँढ कर वह सागर दे!
ऐसा समीकरण बनवा दे,
एक-एक ग्यारह करवा दे;
भरूँ उड़ान कि दुनिया देखे,
चीलगाडि़यों वाले पर दे!
सभी विरोधी मुँह की खायें,
हार मान मेरे गुन गायें,
चुटकी में सब काम कर सकूँ,
पैरों से भी लम्बे कर दे।
तीनों लोकों में छा जाऊँ,
सब पर अपनी मुहर लगाऊँ,
मेरे गुन गाने में तत्पर
एक नवल जगती-अम्बर दे!
Hasya Vyanga Ghazal in Hindi : Rajendra Verma Ghazals in Hindi
एक हास्य-व्यंग्य ग़ज़ल
आओ, कर लो हाथापाई,
साथ हमारे मुन्नाभाई।
कट्टा कटि से संलग्न हुआ,
चाकू लेता है अँगड़ाई।
संसद ने जब से दुत्कारा,
घर-घर पहुँची है महँगाई।
उनकी ख़ातिर स्वर्ण-भस्म है,
मेरी ख़ातिर भूजा-लाई!
वे भी संन्यासी हो जाते,
आड़े आती है तरुणाई।
जब खेल बिगड़ जाता है तो,
पर्बत भी हो जाता राई।
ताऊ जी ने खटिया पकड़ी,
ता-ता थैया करती ताई।
नेता के मन लड्डू फूटे,
गुत्थम-गुत्थे भाई-भाई।
पिछलग्गूजी! आँखें खोलो,
बढ़ती जाती है नित खाई।
पढ़ना-लिखना बेकार हुआ,
सीखे न अगर आखर ढाई।
- राजेन्द्र वर्मा
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