वह चेहरा : कविता - बी. एल. आच्छा

Dr. Mulla Adam Ali
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Vah Chehra Poem By B. L. Achha

Vah Chehra Poem By B. L. Achha

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B. L. Achha Ji Poetry in Hindi

वह चेहरा


पार्लर में 

रुपहले रसायनों से निखरा 

तुम्हारा चेहरा

कैमरे को भी कैद कर लेता है 

झूलते कर्ण- फूलों के साथ।


त्वचा के चंपई रंग 

कानों से बात करती

नुकीली कज्जल आँखें 

बालों के रेशमी शिल्प से 

चेहरे पर खिंची आती लटें

हो जाएँ कैद कैमरे के फ्लैश में।


शायद तुम्हारा चेहरा ही

कैमरे को फ्लैश करता हो

या कि कैमरा फ्लैश करता है

तुम्हारे चेहरे को।


यूँ देखते भी हैं लोग

कनखियों से

देख मैं भी रहा हूँ

उसी चितवन से।


पर पता नहीं क्या

ढूँढ़ रहा हूँ

तुम्हारे मंडित चेहरे पर

शायद छुपा हो 

रुपहले रंगो के पीछे;

जिसे कभी देखा था

पहली चितवन में 

और थिरकता रहता है 

अब भी मेरी चितवन में।


स्मृतियों की तहों में

लजीली रंगत को

छुपा दिया है

इन सजीले रसायनों ने 

सौंदर्य के सजल विग्रह को।


मुझे डर है 

करूँ तारीफ इस प्रसाधन की

तो कहीं दरक न जाएँ

ये रसायन पार्लर के।

थिरक न जाए माधुर्य 

नमित न हो जाएँ नयन 

पैरों की अंगुलियाँ

कुरेदने न लग जाएँ मिट्टी को 

सज्जा के सारे रसायनों को चीर कर 

प्रकृति कन्या की तरह।


मिली थी चितवन 

तुम्हारी चितवन से 

पहली बार

कितनी झुकी सी थीं

उठने को बेकरार आँखें 

कितने थिरके थे कपोल 

सकुचते से लाल लाल 

कैमरा ही बन गई थी मेरी आँखें।


पर आज

तुम्हारा पार्लर चेहरा

कैमरे में है कैद 

और तुम्हारा वह चेहरा 

बिन कैमरे के बसा है

हृदय कीआँखों में।


सभ्यता के आवरण में

चेहरे की संस्कृति

झिलमिला रही है

वर्तमान से स्मृतियों तक।


खोज रहा हूँ 

चेहरे की मंडित तहों के नीचे 

वह चेहरा 

जो पहली बार देखा था।

- बी. एल. आच्छा

फ्लैटनं-701 टॉवर-27
स्टीफेंशन रोड (बिन्नी मिल्स)
पेरंबूर, चेन्नई (तमिलनाडु)
पिन-600012
मो-9425083335

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