Manodasha Kavita in Hindi : Ritu Verma Poetry
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मनोदशा
जीवन में अनगिनत संघर्षों का मेला हैं।
कभी सुख के छाव तो
कभी दुःख के धूप का मेला है।
इस धूप-छाँव के मेले में
हर इंसान अकेला है,
मिथ्या के इस जगत में हर चेहरे पर एक चेहरा है।
समझ लिया वह चेहरा जिसने
वो इंसान खिला-खिला सा रहता है .....
और जो न पढ़ पाए वह चेहरा
वह शख्स मुरझाया सा रहता हैं।
मुश्किल है वो चेहरे ढूंढना
जो सादगी से लिपटा रहता है।
जहाँ न कोई छल-कपट है
बस मासूमियत ही बसता है।
आज के इस आधुनिक दौर मे
हर चेहरे पर दो चेहरा है...
समझ ले जो इस चेहरे को
वह शख्स भावनाओं से मजबूत बनता जाता है।
लाख ठगना चाहें उसे जमाना पर
वह बच के निकलता है।
आसान नहीं है इसे समझाना
पर बेहद ये जरूरी है..
खेल न सके कोई हमारी भावनाओं से
इसलिए ये कदम भी जरूरी हैं।
- रितु वर्मा
नई दिल्ली
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