Poem on Sparrow in Hindi : Chidiya Par Kavita in Hindi
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Chidiya Kavita by Ritu Verma
चिड़िया
एक छोटी चिड़िया रहती थी
अपने घोंसले के अन्दर ही...
फुदकते रहती थी वो दिनभर
अपने ही घोसले में पर
उड़ना तो उसने थोड़ा सीखा था..
पर उसकी माँ को लगता था
उसने बिल्कुल सीखा ही नहीं।
छुपा के रखती थी उसकी माँ
अपने आचल के साये में।
उड़ान भरना चाहती थी वह चिड़िया
पर उड़ने का मौका उसकी
माँ ने कभी दिया ही नहीं।
कहती थी माँ! तू उड़ न सकेगी ....
इस ऊँचे से आसमान में।
चिड़िया बड़ी मायूस हो जाती..
बैठी रहती थी वह इस सोच में
ऐसा क्या है इस आसमाँ में ?
जो मेरी माँ मुझको मना करती है,
बिना मेरी उड़ान देखें ही वह
कैसे मुझे तुलना करती हैं?
माना की मैं उड़ने से पहले
बहुत बार डगमगा रहीं थी...
पर इसका मतलब ये तो नहीं कि
मैंने उड़ान गलत भरी थी।
फडफडा जाते है कभी-कभी
उन परिन्दों के पंख भी जो
हमेशा से ऊँची उड़ा भरा करते है।
पर इसका मतलब ये तो नहीं
कि वो उड़ना नहीं जानते।
कभी-कभी तो ऐसा हो जाता कि
वो चिड़िया फॅस सी जाती है ....
और पंछियों की बातों के भंवर जाल में।
खो देती है वो अपना आत्मविश्वास
औरों के बातों में आकर
भूल जाती है वो अपनी क्षमता।
जब की वो भी सबसे ऊँची उड़ान
भर सकती हैं अपने इस मनोबल से।
- रितु वर्मा
नई दिल्ली
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