Poem on War in Hindi : Jung Par Kavita
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युद्ध
अब उजड़ती वादियाँ सब, एक सी दोनो तरफ।
रक्त रंजित घाटियाँ सब, एक सी दोनो तरफ।
हर धमाके में छिपी आतंक औ हैवानियत,
मौत की परछाइयाँ सब, एक सी दोनों तरफ।
धड़कने खामोश आँखों में अधूरी लालसा,
टूटते दम हिचकियाँ सब, एक सी दोनो तरफ।
टूटती उम्मीद माँ की, रक्त अब बहते हुए,
नैन नम वीरानियाँ सब, एक सी दोनो तरफ।
टूटते दिल घर घरौंदे भूख की बढ़ती तपन,
सिसकियाँ मजबूरियाँ सब, एक सी दोनो तरफ।
युद्ध के उन्माद में बंधुत्व को भूला जहां,
बढ़ रही दिल दूरियाँ सब, एक सी दोनो तरफ।
पथ अहिंसा चल 'कुमुद' अब ले शरण तू बुद्ध की,
युद्ध हिंसा वहशियाँ सब, एक सी दोनो तरफ।
- अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"
राजरूपपुर, प्रयागराज
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