Hindi Kavita Dard Ne : Dard Poem in Hindi
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दर्द ने.....
दर्द ने कैसे-कैसे रिश्ते जोड़े
कहूँ तो क्या कहूँ? कितना कहूँ?
सहूँ तो इतना कि सहती ही रहूँ
भाव-नदिया में बहती ही रहूँ।
मानवता का दरिया भी बहता देखा
आत्मीयता की गंध से सजता देखा
मृत्यु-जीवन का, अनोखा संगम देखा
देवों से भी पलभर, हाथ मिलाकर देखा।
अपनों का आकर्षण, माटी की खुशबू
आँख खुली ज्योंहि, जीवन-आनन्द देखा,
आंसू भीगा, सपनों-सजा, कुछ रूठा-रूठा
भावों से मनाया तो आंखों को नम देखा।
कुछ-कुछ कह पायी, कुछ नहीं कही
कुछ गलत-सलत, तो कुछ सही-सही
एक बात पक्की है, कुछ भी समझ लीजै
बात की लाज लेकिन सदा बनी रही।
दर्द अपना देखा
उसे उतरते, सबकी आँखों में देखा
कुछ समझी, कुछ कहा, कुछ कह न सकी
दर्द को शब्दों में परिभाषित कर न सकी।
जानती हूँ यह और मानती भी हूँ
जीवन-मृत्यु के रहस्य की रेखा को
मिटते भी देखा है, बनते भी देखा।
दर्द से जुड़ते कल के अजनबी रिश्तों में,
आज बहुत-बहुत अपनापन देखा,
सूने बियाबानों में, अजीब भीगापन देखा।
दर्द ने ऐसे-ऐसे रिश्ते जोड़े,
कहाँ तक नाम गिनांऊ, तुम्हें बताऊं,
कैसे-कैसे ये रिश्ते जोड़े।
- सौ. कांति लौधी
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