Hindi Vyangya : रंग बदलते बादलों की आवाजाही - बी.एल. आच्छा

Dr. Mulla Adam Ali
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Hindi Vyangya by B. L. Achha : Hindi Satire

Hindi Vyangya by B. L. Achha

रंग बदलते बादलों की आवाजाही

बी. एल. आच्छा

         बरगद को पक्का विश्वास था कि उसे कोई उखड़ नहीं सकता। न उम्र, न हवा, न कमान, न हाई कमान। पर टिकट मिल गया गुलमोहर को। मैंने अपने साथी से पूछा- "यार ये क्या हो गया?'' वह बोला- "लोग कहते हैं कि पुराने चेहरे के रंग फीके हो जाते हैं। नया गुलमोहर ईवीएम पर छा जाएगा। "मैंने कहा-" पर बरसों का समर्पण। निष्ठा और त्याग- तपस्या के सर्टिफिकेट का क्या होगा?"

वह बोला - "यार, यह मौसम ही अलग है। जमेहुओं के उखड़ने का। उखड़ेहुओं के जमने का। कुछ उखड़ने का, कुछ उखाड़ने का। कुछ की बुवाई ,तो कुछ की खुदाई का। यहाँ इस मौसम में न देवउठनी होती है। न देव-शयनी।" 

           मैंने कहा- "अरे तुम तो कविताई मूड में आ गये हो!" वह बोला- "तुम जमीन के साथ आकाश की रंगत भी देखो। चुनावी आकाश में इन्द्रधनुष तनते हैं। कभी नामांकन के पहले ही घने बादलों में खो जाते हैं। कभी बादल घने हो जाते हैं, उसमें से कोई नया नवेला सूरज की किरण से चमक जाता है। बादल भी किनोरों में चांदी- सी चमकती फ्रेम में मढ़ जाते हैं। जैसे हाईकमान से पुराने को सरकाते हुए हाईकमान से टिकट मिल गया हो।" मैंने कहा-"क्या खूब रंगों का कोलाज खींच दिया है, चुनावी आकाश में!" वह बोला-" नव नामांकित बादल गर्जना करता है, तो चहेतों के जुलूस में प्रतिध्वनि गूंज उठती है। पर तभी पुराना बादल परिक्रमा की रंगोली से फिर टिकट हथिया लेता है। तो नया नवेला बादल ऐसा हो जाता है ,जैसे बरसते ही घने काले से रुई सा फुस्स सफेद हो गया हो।"

        मैंने कहा - "क्या रंग जमा रहा है भाई तू भी।" वह बोला- "बात रंगों के जमने की भी है और रंगों के उड़ जाने की भी। देखो जरा आकाश में। जिस नये की रैली आकाश में पंछियों की तरह पंख मार कर जय जयकार कर रही थी, वहाँ सन्नाटा पसर गया है। और जो पुराना बादल उदास था, वह फिर से टिकट पाकर घनघोर गर्जना कर रहा है। बिजलियों की तड़तड़ाहट में संगी बादल डीजे बजा रहे हैं।"

        मैंने कहा - "यह तो भिड़न्त का आकाश है।" वह बोला - "उधर देखो। नीलमेघ झंडे लहराते जलसे में तैर रहे हैं, एक टुकड़ा उसमें से फूट लिया। बदले की आग में सोच लिया कि जब छिन गयी है जमीन ,तो ठहरने से क्या मतलब? खेलेंगे या खेल बिगाड़ेंगे।नीलमेघ अब पीलमेघ के पास जा रहे हैं। उधर स्वागत में सामने की पीली झंडियां जोर- जोर से हिल रही हैं। नीलमेघ के गले में पीलमेघ का दुपट्टा पड़ गया।"

       मैंने कहा- यह तो रंग-बदल है।"वह बोला- यह बदल नहीं, बदला है। अकसर ऐसे बादल की सतह के नीचे भूकंपीय तरंगों को हाईकमान रिक्टर स्केल पर नाप नहीं पाता । जो पत्थर की तरह जमा था, उसे पानी की तरह बहा ले जाता है। उपेक्षा की आग में चुनाव-बबूला हो जाता है।" मैंने कहा- ''तो क्या नये बादलों को नहीं खिलना चाहिए ?" वह बोला- "ये पंगे हमारे नहीं।तुम तो उधर बादलों की आवाजाही को देखो।"मैंने कहा- "बादलों की यह आवाजाही तो आकाश का लोकतंत्र है।" वह बोला -"हाँ, जब सारे ले-दे के उपचार थक गये हों तो एक उम्मीद बनी रहती है। देखो न बिन रंगों के अपना रंग जमाता निर्दलीय बादल। परचम लहरा भी गया तो समय आने पर उसे फिर से पीलमेघ से नीलमेघ में ले आएंगे। "मैंने पूछा -"ये नील और पील के बीच- बीच में कैसे रंग झलक रहे हैं?"वह बोला -"लगता है भीतरघात अब चुपचाप ऊपरघात की भनक दे रही है।"मैंने पूछा -"ये अलग-अलग रंग। के निकट-दूर छितराये बादल कैसे हैं?"वह बोला-"एक बार और जाल फेंक रे चुनैले, जाने किस बादल में बंधन की चाह हो।"

- बी. एल .आच्छा

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