Ashok Srivastava 'Kumud' Poetry in Hindi
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आवाहन
(गीतिका छंद पर आधारित, नवीन काव्य संग्रह 'तरंगिणी' से)
जाग जा अब सो रहा क्यों, भोर का रसपान कर।
कर्म डोरी खींच कर तू, कुछ नया संधान कर।।
कुछ रचो नूतन अनोखा, जो यहाँ पहले नहीं।
सोच की हद से परे वो, स्वप्न भी आए नहीं।
कर असंभव को हकीकत, तू बना जग इस तरह;
देवता को रश्क होए, स्वर्ग आ जाए यहीं।
जाग जा अब सो रहा क्यों, भोर का रसपान कर।
कर्म डोरी खींच कर तू, कुछ नया संधान कर।।
अधर सूखे नैन नम सब, तुम नयी मुस्कान दो।
चेहरे मुरझाए हुए सब, फूंक उनमें जान दो।
दिग्भ्रमित सी हर दिशाएं, ढूंढती रहबर नया;
बन तुम्ही रहबर नवेले, जग सँवारो ज्ञान दो।।
जाग जा अब सो रहा क्यों, भोर का रसपान कर।
कर्म डोरी खींच कर तू, कुछ नया संधान कर।।
कर्मयोगी युगपुरुष बन, कर्म का अध्याय बन।
कृष्ण शंकर राम शिक्षा, मर्म का संस्त्याय बन।
तू भरत का वीर वंशज, गर्व निज पहचान कर;
खींच कर अपनी लकीरें, पूर्णता पर्याय बन।।
जाग जा अब सो रहा क्यों, भोर का रसपान कर।
कर्म डोरी खींच कर तू, कुछ नया संधान कर।।
- अशोक श्रीवास्तव "कुमुद"
राजरूपपुर, प्रयागराज
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