Maun Kavita : Silent Poem in Hindi - Ritu Verma Poetry
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मौन
मैं मौन सी रहती हूँ पर
मेरे शब्द बोलते रहते है।
मेरे खामोशी को पढ़कर
ये उनकी जुबा बया कर देते है।
न जाने ये शब्द कैसे ?
मेरा मन पढ़ लेते है..
कितना मौन रख लू चेहरे पर
ये शब्द मन को भाँप लेते है।
अगर बना लू मैं...
बनावटी मुस्कान चेहरे पर भी तो
ये उन फासलो को भी पल में
तय कर जाते हैं।
फिर न जाने ये कैसे जानकर
बातें मन की शब्दों में
बया कर जाते हैं।
कभी नहीं मैं इनसे कुछ कहती
फिर भी ये कैसे समझ से जाते हैं?
शायद हम-दोनों कुछ बातों में
दोनों एक-जैसे है..
जैसे मानों एक खामोश समंदर
लहरों से उठते रहते है,
कभी मौन से रहते है तो
कभी खुद में खोए से रहते हैं...
इसलिए शायद हम एक-दूजे को
बखूबी समझ से जाते है।
मैं मौन रहकर भी शब्दों से
खूब सारी बातें कर लेती हूं।
शब्द मुझे समझ लेते है..
और हमेशा हौसला अफजाई करते रहते हैं।
मेरे मौन मेरे शब्दों से हरपल परिचित से रहते है ..
एक दूसरे के साथ पाकर वो खुद को पूर्ण समझते हैं।
रितु वर्मा
नई दिल्ली
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