Babu Ji Hindi Kavita : Nidhi Mansingh Poetry
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बाबू जी
वो, मेरे ससुर है लेकिन मुझे
पापा से बड़के प्यार करते हैं।
बहू तो कभी समझा ही नही
बेटी से भी ज्यादा समझते हैं।
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सुबह - शाम वो सैर को जाते
पंछियों को दाना खिलाते।
अखबार पढे आंगन मे बैठ
एकदम कड़क चाय बनवाते।
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जब मै! उनको बाबू जी कहती
सुनकर खुश हो जाते हैं।
लक्ष्मी है तू घर की मेरी
कहकर आशीर्वाद लुटाते है।
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कर्मोंवाली हूँ मै! जो मैने
ऐसे बाबू जी जी पाये।
वो है पालनहार हमारे
हम बच्चे तो उनके साये।
- निधि 'मानसिंह'
कैथल हरियाणा
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