Kitne Pakistan by Kamleshwar
कमलेश्वर के उपन्यास कितने पाकिस्तान में वर्णित विभिन्न समस्याएँ
कमलेश्वर का उपन्यास 'कितने पाकिस्तान' एक प्रतीकात्मक शब्द है, जो कि धार्मिक उन्माद के वशीभूत समूह द्वारा की जा रही एक माँग को व्यंजित करता है, इसीलिए आगे के सन्दर्भों में पाकिस्तान को इस प्रतीकात्मक रुप में स्थान-स्थान पर व्यवहत किया गया है। किसी भी देश में, सम्प्रदाय में, धर्म में, पाकिस्तान का निर्माण अचानक नहीं हो जाता, वरन् इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे युद्ध, साम्प्रदायिकता, पृथकतावाद, आतंकवाद, जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, रंग भेद, आदि। ये सब समस्याएँ आज विश्व के सम्मुख मुँह फैलाये अजगर के समान खडी है। यह अजगर मायावी दानव की तरह मानवता के अस्तित्व को निगल लेना चाहता है। आज समूचा मानव समुदाय इस विष के विषैले प्रभाव के कारण तड़प-तड़प कर मृत्यु की ओर बढ़ रहा है, जिसके कारण मानव का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।
1) युद्ध की विभीषिका :
युद्ध अलगाव का सबसे भीषणतम एवं हिंसात्मक रुप है। यह मानव समाज को पूरी तरह तोड़ देता है। यह मृत्यु का नंगा नाच है। अपने भयंकर रुप में यह व्यावहारिक प्रतिमानों, नैतिक मान्यताओं, आध्यात्मिक आस्थाओं, सांस्कृतिक विश्वासों और मानव द्वारा स्थापित उपलब्धियों का पूर्ण रुपेण विनाश कर देता है। युद्ध के कारण नरसंहार, रक्तपात अधिकाधिक बढ़ जाते हैं। मानव सभ्यताएँ, संस्कृतियाँ और देशों की आर्थिक स्थिति नष्ट हो जाती है। व्यक्ति अपने आप को असहाय और कमजोर महसूस करने लगता है। युद्ध एक सामाजिक रोग है, जो अनादिकाल से मानव सभ्यता को दीमक की तरह चाट रहा है। युद्ध का अस्तित्व हमें इतिहास में मानव की उत्पति के समानान्तर ही दिखाई पड़ता है। युद्ध के काले बादल मानव सभ्यता पर मँडरा कर सदैव ही रक्त की वर्षा करते हैं। इतना ही नहीं तो अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों, मान्यताओं, नियमों को तोड़ देता है। विशेष तौर पर आधुनिक युग में तकनीकी युद्ध परमाणु शक्ति तक वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा हो रहे हैं।
2) धार्मिक कट्टरता :
धार्मिक कट्टरता के दर्शन हमें उस समाज में दिखाई पड़ते हैं जहाँ धर्म का अस्तित्व है, क्योंकि जहाँ धर्म समाज को कुछ अच्छाइयाँ सिखाता है, वहीं कुछ बुराइयाँ भी वह समाज को स्वाभाविक रुप से प्रदान करता है। विश्व के सभी मतावलम्बियों में यह कट्टरता समान रुप से पायी जाती है कि केवल उनका धर्म ही श्रेष्ठ है और दूसरे धर्मों को वह हेय दृष्टि से देखते हैं। धार्मिक कट्टरता के कारण मानव की विचारधारा सही है। कमलेश्वर ने अपने उपन्यास में इस समस्या को प्रमुखता से उठाया है। उदाहरण देखिए-
जामा मस्जिद के अब्दुल्ला बुखारी ने दस्तक दी और बोले-"अगर बाबरी मस्जिद ढहाई जायेगी तो खून की नदियाँ बहा दी जायेंगी। इस शाही इमाम का यह एलान है।"
3) सत्ता की राजनीति :
इतिहास गवाह है मनुष्य ने सदा से धर्म को राजनीति का मोहरा बनाकर सत्ता प्राप्ति के लिए एक हथियार के रुप में इस्तेमाल किया है, चाहे मुगल शासक हो या फिर अंग्रेज। हमेशा सत्ता प्राप्ति के लिए घृणित चालें चलते रहे, जो आज भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था में देश स्वतन्त्र हो जाने के बाद भी जारी है।
लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काकर सत्ता के उच्च पायदान तक पहुँचने के अनेक उदाहरण कमलेश्वर ने अपने उपन्यास में दिए हैं। औरंगजेब ने अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के लिए सत्ता के उत्तराधिकार युद्ध को अपनी कुटिल चालों द्वारा किस प्रकार धार्मिक रुप दे दिया। उसने अपने बडे भाई दाराशिकोह, जो शाहजहाँ का उत्तराधिकारी था और कुछ मुलायम तबियत का आदमी था, उसके खिलाफ काफिर और अनेकेश्वरवादी होने का आरोप लगाकर उलेमाओं से उसके लिए मौत का फतवा जारी करते हुए उसे मौत के घाट उतरवा दिया। मुगलिया सल्तनत का ताज हासिल करने की इस हवस को धर्माज्ञा का आवरण पहना दिया गया है।
4) जातीयता :
भारत में जातिवाद का इतिहास बहुत पुराना है। मनु द्वारा लिखित मनुस्मृति को इसका आधार माना गया है। भारत में जाति को धर्म से भी उँचा स्थान दिया गया है। अपनी इसी कमजोरी के कारण भारत को बार-बार बाह्य आक्रमणों का शिकार होना पड़ा तथा उसे गुलामी की त्रासदी भी झेलनी पड़ी।
दिनकर के शब्दों में- 'धार्मिक विश्वासों की विकृति के साथ हिन्दुओं की दूसरी कमजोरी उनकी जातपाँत में बँटा रहना था। विपत्ति में यदि वैश है तो राजपूत उसकी मदद नहीं करेंगे और विपत्ति में यदि एक गोत्र का ब्राम्हण, राजपूत, कायस्थ, कुर्मी या कहार समझा जाता हो, जिस देश के लोग अपनी भक्ति और प्रेम पर पहला अधिकार अपनी जाति वालों का समझते हों, जिस देश की एक जाति के लोग दूसरी जाति के विद्वान को मूर्ख, दानी को कृपण, बली को दुर्बल, सच्चरित्र को दुश्चरित्र और अपनी जाति के मूर्ख को विद्वान और पापी पुण्यात्मा समझते हों, जहाँ आदमी की जाति बात-बात में चली जाती हो।' आलोच्य उपन्यास में कमलेश्वर ने जातीयता की इस समस्या को प्रमुखता से उठाया है।
5) आतंकवाद :
वर्तमान युग की सबसे बडी समस्या है आतंकवाद, जो बीसवीं शताब्दी की देन है, जिसने विश्व के अधिकांश देशों को भीतर तक खोखला कर दिया है। भारत ने पिछले दो दशकों में आतंकवाद के कारण जितनी हानि उठायी है, शायद ही विश्व के किसी अन्य देश ने झेली हो। लाखों लाशें, हजारों अनाथ बच्चे, अरबों की सम्पति, लोगों में समायी दहशत, बेशकीमती विश्वास सभी को आतंकवाद निगल गया है।
आतंकवादी हमलों का शिकार अभी तक विश्व के छोटे देश होते थे, शक्तिशाली देश बजाय संवेदना प्रकट करने और समस्या को समझने के स्थान पर उनका उपहास उड़ाते थे लेकिन वर्तमान में आतंकवाद की भेंट चढने से विश्व का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका भी नहीं बच पाया है। इसका उदाहरण वहाँ 11 सितम्बर 2000 को हुए विध्वंसकारी हमले है, उसके बाद ही वहाँ के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश और विदेश मन्त्री कॉलेन पावेल ने विश्व-व्यापी आम सहमति बनाने के प्रयास किये और और आतंकवाद के विरुद्ध ठोस कदम उठाये।
11 सितम्बर 2000 को विश्व के खूंखार कट्टरतावादी गिरोह द्वारा अमरीका पर विनाशकारी हमले ने एक तरह से पूरी दुनिया को दहशत में डाल दिया। इस प्रकार आज आतंकवाद से भारत के कई हिस्से पीड़ित हैं। कमलेश्वर ने इसी समस्या की ओर भी लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास अपने उपन्यास में किया है।
6) एकता का अभाव :
एकता में बड़ी शक्ति होती है यह कहावत प्राचीनकाल से चली आ रही है। मनुष्य जहाँ अपने को संगठित करके बड़ी से बड़ी लढ़ाई को जीत सकता है। वहीं एकता का अभाव उसे मोर्चे पर कमजोर सिद्ध करता है। इसका सबसे बडा उदाहरण मुगलों और अंग्रेजों का भारत आगमन था, जो भारतीयों में एकता का अभाव होने का परिणाम है। वहीं जब भारतीय संगठित हुए तो उन्होंने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में विशाल अंग्रेज साम्राज्य को उखाड़ फेंका, जिसने आधे से ज्यादा विश्व पर अपना अधिकार जमा रखा था। भारतीय फिर कमजोर न हों और आपस में बँटें न, इसलिए कमलेश्वर ने अपने उपन्यास कितने पाकिस्तान में जगह-जगह एकता के अभाव के कारण होने वाली समस्याओं की ओर संकेत किया है। उपन्यास में अदीब की अदालत में आकर बाबर कहता है मैंने हिन्दुस्तान पर कई बार हमले किए, लेकिन जीत नहीं पाया, आखिरी बार जब मैं जीता तो सच्चाई यह है कि हिन्द पर हमला करने और इसे जीतने के लिए मुझे सुल्तान इब्राहिम लोदी के चाचा, पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ और रणथम्भौर के हिन्दू राजपूत राणा साँगा ने बुलाया था।
7) मानव की स्वार्थी व साम्राज्यवादी नीति :
जब से मानव की उत्पत्ति का वर्णन हमें ग्रन्थों में मिलता है, तभी से उसमें स्वार्थ की प्रवृत्ति के कारण परिवार से लेकर राष्ट्र तक की इकाई को विघटित होते हुए देखा जा सकता है। रामायण से लेकर महाभारत, मध्य काल से लेकर आधुनिक काल तक अनेक उदाहरण मानव की स्वार्थी प्रवृत्ति के मिलते हैं। इतना ही नहीं तो वैदिक काल में होने वाले अश्वमेध यज्ञ मनुष्य की साम्राज्यवादी इच्छा के परिणाम थे। कमलेश्वर ने इसे प्रमुख समस्या माना है, उनका मानना है कि बड़े-बड़े शहंशाह या राजा ही स्वार्थ के गुलाम नहीं रहे, अपितु भाड़े के सैनिक जिनका वर्णन आज भी हम समाचार-पत्रों में देखते हैं कि अफगानिस्तान में इतने भाड़े के सैनिक भेजे गये। ये भाड़े के सैनिक मध्यकाल में भी होते थे।
8) उदात्त मानव मूल्यों का हास :
मानव मूल्यों के हास के कारण 1947 में भारतीय उपमहाद्वीप को भारत-पाक विभाजन की त्रासदी झेलनी पड़ी, यह बँटवारा केवल राजनीतिक या भौगोलिक नहीं था, अपितु इसने लोगों के दिलों को भी बाँटकर रख दिया था। सीमाओं के दायरे सीमित होते ही प्रिय लोग अपरिचित हो गये थे। विभाजन से पहले विभाजन के समय व विभाजन के बाद जो हिन्दू, मुस्लिम, साम्प्रदायिक दंगे हुए, उसमें लूटमार, आगजनी, बलात्कार हत्याएँ आदि रोंगटे खड़े कर देने वाले कृत्य किए गये थे। उन चोटों के निशान आज भी दिल से मिटे नहीं है।
इस सम्बन्ध में नरेन्द्र मोहन का कहना है- 'एक ही संस्कृति में पले, बढे, समान भाषाएँ बोलने वाले एक से भावों से बँधी जातियों का देशान्तरण हिन्दुओं, मुसलमानों और सिक्खों का साम्प्रदायिक आग की लपटों में झुलसते हुए स्वदेश त्याग विश्व इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना है। इस तरह की ट्रेजडी इतने बड़े पैमानेपर में पहले कभी घटित नहीं हुई।
9) बढते कंक्रीट के जंगल की समस्या :
वर्तमान युग जनसंख्या विस्फोट का युग है, विशेष तौर पर भारत में मृत्यु दर घटी और जन्म-दर बढी है। आज भारत जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे स्थान पर है। इस बढती जनसंख्या की सुविधाओं के लिए सरकार जितने संसाधन जुटाती है, यह उन संसाधनों के मुकाबले तेजी से बढ़ जाते हैं, इस जंगलों का कटान निरन्तर जारी है, जिसका प्रभाव प्रकृति के साथ-साथ मनुष्य के जीवन पर भी पड़ रहा है। महानगरों में तो स्थिति और भी ज्यादा भयावह हो गई है। दूर-दूर तक नजर दौड़ने पर इमारतें ही इमारतें दिखाई देती है। हरियाली दिन- प्रतिदिन कम होती जा रही है। मनुष्य आज अपने जीवित रहने के लिए आवश्यक स्वच्छ वायु के लिए भी तरस रहा है।
10) परमाणु परीक्षणों का धरती पर प्रभाव :
विश्व के सभी राष्ट्रों में स्वयं को शक्तिशाली सिद्ध करने की होड़ लगी हुई है। एक देश यदि विनाश की ओर एक कदम रखता है तो दूसरा दो कदम, तब पहला तीन कदम आगे बढने का प्रयास करता है। इसी प्रतिद्वन्दिता के कारण आज मानव के अस्तित्व को बचाने के स्थान पर उसे उजाड़ने के प्रयास अधिक किए जा रहे हैं। आज के राष्ट्र यह कब समझेंगे, जिस सृष्टि को आज के विकसित रुप में पहुँचने में करोडों वर्ष लगे, उसे उजाड़ने के लिए एक मिनट पर्याप्त होगा। तब न वह रहेगा और न ही उसका शत्रु। हिरोशिमा पर जब बम गिरा, तब उसकी वहाँ क्या प्रतिक्रिया हुई। उदाहरण देखिए-
एकाएक जबरदस्त धमाका हुआ। पृथ्वी काँप उठी, जैसे कोई विशाल उल्का पिण्ड धरती से टकराया हो। धूल, धुआँ, हाहाकार, अग्नि की लपटें, जलती हवा। सूर्य के तापमान से स्पर्श करता तापमान । विषैले विकीरणीय वृत्त में फैलता रेडियोधर्मी पारावार। धरती की फूटी धमनियों से निकलती रक्त की नदियाँ।
इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि ये परमाणु परीक्षण या विस्फोट किसी भी देश ने किये हों, नाश धरती और मानवता का ही हुआ है।
- डॉ. रावसाहेब जाधव
संदर्भ ग्रंथ;
1. कितने पाकिस्तान - कमलेश्वर
2. कमलेश्वर आपनी निगाह में - कमलेश्वर
3. सामाजिक विघटन - डॉ. सत्येन्द्र त्रिपाठी
4. राष्ट्रीय एकता, वर्तमान समस्याएँ - डॉ. कैलास नारायण तिवारी
5. नयी सदी के उपन्यास - डॉ. नवीन चन्द्र लोहनी
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