Vijay Abhiyan Kavita in Hindi : Hindi Kavita Kosh
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विजय-अभियान
अमृत पुत्रों! अमृत का वरदान लिए जीना है।
भारतवासी ! भारत की पहचान लिए जीना है।।
भिन्न भले ही प्रांत-चेतना
भिन्न भले भाषा हो।
एक देश हो, एक राष्ट्र हो
एक चेतना की आशा हो।।
नव-संस्कृति का हमें, यही अवदान लिए जीना है।
भारतवासी ! भारत की पहचान लिए जीना है।।
सिंधू-सभ्यता के हम साक्षी
गंगा-यमुना के कछार है।
विश्व-सभ्यता संपोषक
मानवता के सिंह-द्वार है।।
पातोंमुख हों नहीं, हमें उत्थान लिए जीना है।
भारतवासी! भारत की पहचान लिए जीना है।
जाति-धर्म से बाहर आओ
नव-विहान की रचो रंगोली।
कंधों पर ढोनी है तुमको
भाग्यवती दुल्हन की डोली।।
हृदय-हृदय में यही एक, अरमान लिए जीना है।
भारतवासी! भारत का पहचान लिए जीना है।।
रक्त-धार में क्राति-घोष हो हो,
अमोघ संकल्प प्राण का।
स्वाभिमान संपूरित कर दो।
मान बढ़ाओ राष्ट्र-गान का।।
हमें पराजय नहीं, विजय-अभियान लिए जीना है।
भारतवासी ! भारत की पहचान लिए जीना है।।
- ज्योति नारायण
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