Yugpurush Swami Vivekanand : National Youth Day
राष्ट्रीय युवा दिवस 2024 : स्वामी विवेकानन्द की जयंती 12 जनवरी, 2024 पर विशेष आलेख युगपुरुष स्वामी विवेकानंद, स्वामी विवेकानन्द जन्मदिन पर विशेष, National Youth Day Special 2024, Swami Vivekananda Birthday 12 January 2024 National Youth Day, Swami Vivekananda Birth Anniversary 12 January National Youth Day, Rashtriya Yuva Diwas 2024, राष्ट्रीय युवा दिवस 12 जनवरी स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष।
युगपुरुष स्वामी विवेकानंद
अपनी तेज और ओजस्वी वाणी की बदौलत दुनियाभर में भारतीय अध्यात्म का डंका बजाने वाले प्रेरणादाता और मार्गदर्शक स्वामी विवेकानंद एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे। युवाओं के लिए विवेकानंद साक्षात् भगवान थे। उनकी शिक्षा पर जो कुछ कदम भी चलेगा उसे सफलता जरुर मिलेगी। अपनी वाणी और तेज से उन्होंने पूरी दुनिया को चकित किया था।
स्वामी विवेकानंद जी ने भारत को व भारतीयता को कितना आत्मसात कर लिया था यह कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर के इस कथन से समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने कहा था कि - "यदि आप भारत को समझना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद को संपूर्णतः पढ़ लीजिये।"
सच तो यह है कि उनके जीवन के लगभग सभी पहलू आज भी प्रासंगिक और सार्थक प्रतीत होते हैं। बहुत-सी बातों में तो वे अपने समय से बहुत आगे थे और एक युगद्रष्टा की तरह उन्होंने आने वाली चुनौतियों की ओर स्पष्ट संकेत कर दिया था। उन्होंने जो सोचा, कहा और किया उससे कई पीढ़ियाँ दिशा प्राप्त करती रही हैं। आज की पीढ़ी की समस्याओं व चुनौतियों पर नज़र डालते हैं तो विवेकानन्द का जीवन और दर्शन और भी अधिक उपयोगी प्रतीत होता है।
आज मानवता भौतिकवाद की अंधी दौड़, स्वार्थपरता, और विद्वेष के चौराहे पर खड़ी है और शांति व उदात्त जीवन जीने के लिए किसी मार्गदर्शक की तलाश में है। विश्व समाज एक तरह से विचार- हीनता तथा आदर्शशून्यता के भंवरों में डूब रहा है। आतंकवाद समूची दुनिया में नया दैत्य बनकर लोगों के सुख-चैन को लौल रहा है। हमारा देश भी इस अभिशाप का शिकार है और अनेक नवयुवक इस विनाशकारी रास्ते पर चल रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में विवेकानन्द के विचारों की आवश्यकता और अधिक महसूस होने लगी है। आज की पीढ़ी के लिए समाज सुधारक और देशभक्त संत स्वामी विवेकानन्द के जीवन के कौन से पक्ष अधिक सार्थक व प्रासंगिक हैं, इसका विवेचन करना समीचीन होगा।
स्वामी विवेकानंद ने अपनी ओजपूर्ण वाणी से हमेशा भारतीय युवाओं को उत्साहित किया। उनके उपदेश आज भी संपूर्ण मानव जाति में शक्ति का संचार करते हैं। उनके अनुसार, किसी भी इंसान को असफलताओं को धूल के समान झटक कर फेंक देना चाहिए, तभी सफलता उनके करीब आती है। स्वामी जी के शब्दों में 'हमें किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए।'
कुछ महापुरुषों ने उनके प्रति उद्गार प्रकट किया है कि जब-जब मानवता निराश एवं हताश होगी, तब-तब स्वामी विवेकानंद के उत्साही, ओजस्वी एवं अनंत ऊर्जा से भरपूर विचार जन-जन को प्रेरणा देते रहेंगे और कहते रहेंगे-'उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व मत रूको।'
स्वामीजी के जीवन ने अनेक महापुरुषों के जीवन को प्रभावित किया। आज भी उनका साहित्य किसी अग्निमन्त्र की भाँति पढ़नेवाले के मन में भाव जगाता है। किसी ने ठीक ही कहा है-यदि आप स्वामीजी की पुस्तक को लेटकर पढ़ोगे तो सहज ही उठकर बैठ जाओगे। बैठकर पढ़ोगे तो उठ खड़े हो जाओगे और जो खड़े होकर पढ़ेगा वो सहज ही कर्म में लग जायेगा। अपने ध्येयमार्ग पर चल पड़ेगा। यह स्वामी विवेकानन्द के सजीव संदेश का प्रभाव है। जो भी उनके प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्पर्क में आया उसका जीवन ही बदल गया। वर्तमान समय में युवाओं के सम्मुख अनेक चुनौतियाँ हैं।
स्वामी विवेकानंद की ओजस्वी वाणी भारत में तब उम्मीद की किरण लेकर आई जब भारत पराधीन था और भारत के लोग अंग्रेजों के जुल्म सह रहे थे। हर तरफ सिर्फ दुख और निराशा के बादल छाए हुए थे। उन्होंने भारत के सोये हुए समाज को जगाया और उनमें नई ऊर्जा-उमंग का प्रसार किया।
आज हमारा देश स्वतंत्र होने के बावजूद अनगिणत समस्याओं से जूझ रहा है। बेकारी, गरीब, शिक्षा, प्रदूषण एवं अन्न-जल तथा मँहगाई की समस्या से देश की जनता प्रभावित है। ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी स्वामी विवेकानंद जी को विश्वास था कि, हमारा देश उठेगा, ऊपर उठेगा और इसी जनता के बीच में से ऊपर उठेगा। स्वामी जी प्रबल राष्ट्रभक्त थे। वे देश की स्वाधीनता के कट्टर समर्थक थे। उन्हें कायरता से नफरत थी, उनका कहना था कायरता छोड़ो निद्रा त्यागो। स्वाधीनता शक्ति द्वारा प्राप्त करो। वे राष्ट्र उत्थान के प्रबल समर्थक थे। उनके जीवन का मुख्य उद्देश्य था भारत का विकास। स्वामी जी कहते थे कि, ये जननी जन्म भूमि भारत माता ही हमारी मातृभूमि है। हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। स्वामी जी के संदेश युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं, उन्होंने युवाओं को संदेश दिया कि,
"हे भाग्यशाली युवा, अपने महान कर्तव्य को पहचानो। इस अद्भुत सौभाग्य को महसूस करो। इस रोमांच को स्वीकार करो। ईश्वर तुम्हें कृपादृष्टि के साथ देखता है। और वह तुम्हारी सहायता और मार्गदर्शन के लिए सदैव तत्पर है। मैं तुम्हारे महान बनने की कामना करता हूँ। विश्व ने अपना विश्वास तुम्हारे ऊपर जताया है। तुम्हारे बड़े तुमसे उम्मीद रखते हैं। तो युवा का अर्थ है स्वयं में दृढ़ विश्वास रखना, अपने आशावादी निश्चय तथा संकल्प का अभ्यास करना और स्वसंस्कृति के इस सुंदर कार्य में अच्छे इरादों की इच्छा रखना। यह न केवल तुम्हें बल्कि तुमसे जुड़े सभी लोगों को संतुष्टि और पूर्णता देगा।"
स्वामी जी को युवाओं से बड़ी उम्मीदें थीं। उन्होंने युवाओं की अहं की भावना को खत्म करने के उद्देश्य से कहा है 'यदि तुम स्वयं ही नेता के रुप में खड़े हो जाओगे, तो तुम्हें सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढ़ेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो। उन्होंने युवाओं को धैर्य, व्यवाहरों में शुद्धता रखने, आपस में न लड़ने, पक्षपात न करने और हमेशा संघर्षरत् रहने का संदेश दिया।
आज भी स्वामी विवेकानंद को उनके विचारों और आदर्शों के कारण जाना जाता है। आज भी वे कई युवाओं के लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने हुए हैं। विश्वभर में जब भारत को निम्न दृष्टि से देखा जाता था, ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर, 1883 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म पर प्रभावी भाषण देकर दुनियाभर में भारतीय आध्यात्म का डंका बजाया। उन्हें प्रमुख रुप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिए जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
देशवासी स्वामी विवेकानंद के जीवन और उनके विचारों से प्रेरणा लें।
स्वामी विवेकानंद जी कठोपनिषद् का एक मंत्र कहते थेः
"उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।"
उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अपने लक्ष्य तक ना पहुँच जाओ।
स्वामी विवेकानंद के मन में समता के लिए वर्तमान समाजवाद की अवधारणा से भी अधिक आग्रह था। उन्होंने कहा था- "समता का विचार सभी सभाओं का आदर्श रहा है। संपूर्ण मानव जाति के विरुद्ध जन्म, जाति, लिंग भेद अथवा किसी भी आधार पर समता के विरुद्ध उठाया गया कोई भी कदम एक भयानक भूल है, और ऐसी किसी भी जाति, राष्ट्र या समाज का अस्तित्व कायम नहीं रह सकता, जो इसके आदर्शों को स्वीकार नहीं कर लेता। स्वामी विवेकानंद ने आर्तनाद भरे स्वर में कहा था कि-"अज्ञान विषमता और आकांक्षा ही वे तीन बुराइयाँ हैं, जो मानवता के दुःखों की कारक हैं इनमें से हर एक बुराई दूसरे की घनिष्ठ मित्र है।"
स्वामी विवेकानन्द दार्शनिक तथा युगदृष्टा के साथ-साथ समाज के उत्थान के प्रति समर्पित कर्मयोगी और समाजसेवी संत थे। उनका जीवन केवल आज की पीढ़ी ही नहीं, आनेवाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत बना रहेगा स्वामी जी सच्चे युवा सन्यासी, समाज चिंतक तथा राष्ट्र सेवक थे, जिनका जीवन आज की पीढ़ी को दिशा देने में सहायक हो सकता है।
- चेन्नाकेशव रेड्डी
ये भी पढ़ें; National Youth Day 2024: राष्ट्रीय युवा दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?