Suno Samay Ko Book by Jay Chakrawarty
दोहा-संकलनों के क्रम में,
एक और समकालीन दोहों का संकलन : सुनो समय को
- राजेन्द्र वर्मा
हाल ही में समकालीन दोहों का संकलन आया है, ‘सुनो समय को’ जिसका संपादन किया है प्रखर और समर्थ दोहाकार जय चक्रवर्ती ने। संपादक की हिंदी छंदोबद्ध कविता में सफल कवि के रूप में पहचान है। वे नवगीत, दोहे और ग़ज़लों में आधुनिक बोध और साहसिक अभिव्यक्ति के लिए जाने जाते हैं। संकलन के दोहों के बारे में यों तो शीर्षक ही अपेक्षित संकेत करता है, लेकिन आभार प्रदर्शन करते हुए संपादक की टिप्पणी भी गौरतलब है— “संकलन में उपस्थित उन सभी रचनाकारों का विनम्र आभार जिन्होंने जागी आँखों से अपने हिस्से के समय को देखा और निडर होकर उसे शब्दों में उतारने का जोखिम उठाया।”
संकलन में वर्तमान दोहाकारों के दोहों से पूर्व ‘विरासत’ और ‘हमारी पसंद’ खंड में कुछ दोहे रखे गए हैं, जिनका उल्लेख करना यहाँ ज़रूरी लगता है, क्योंकि यह कार्य न केवल अपने पूर्वज कवियों को स्मृति-पुष्प चढ़ाता है, बल्कि दोहे की विकास-यात्रा को भी दर्शाता है। इसके लिए संपादक बधाई के पात्र हैं।
'विरासत' दो भागों में है। एक में प्रारंभिक काल के दोहाकारों का एक-एक दोहा है, जिनमें— सरहपा, बाबा फ़रीद, गुरु नानक, अमीर खुसुरो, सूरदास, कबीर, रसलीन, आलम और शेख, चंदबरदाई, दरिया साहेब, रसखान और संत मीता हैं, तो दूसरे में भक्तकालीन कवियों के साथ आधुनिक काल के दो कवियों का एक-एक दोहा है। इस भाग में बिहारी, रहीम, जायसी, मलूकदास, तुसलीदास, वृन्द, रज्जब, कमाल कवि, भारतेंदु हरिश्चंद्र और निराला शामिल हैं।
‘हमारी पसंद’ के दो खंडों के अंतर्गत आधुनिक काल से लेकर वर्तमान काल के दिवंगत दोहाकारों के एक-एक दोहे को लिया गया है। पहले खंड में— नागार्जुन, मानबहादुर सिंह, नीरज, निदा फ़ाज़ली, देवेंद्र शर्मा इंद्र, बेकल उत्साही, माणिक वर्मा, इसाक अश्क, श्रीकृष्ण शर्मा, भगवानदास एजाज़, उर्मिलेश, कुमार रवींद्र, शिवबहादुर सिंह भदौरिया, जगतप्रकाश चतुर्वेदी हैं, तो दूसरे खंड में— सरदार आसिफ़, गंगाप्रसाद शर्मा, शंकर सक्सेना, सिब्बन बैजी, उमाश्री, हुल्लड़ मुरादाबादी और अमन चाँदपुरी हैं।
वर्तमान काल में जो कवि दोहे लिख रहे हैं, उनमें से 41 चुने हुए दोहाकारों के चुनिंदा दोहों को शामिल किया गया है। दोहाकारों के नाम हैं— दिनेश शुक्ल, भगवत दुबे, दीनानाथ सुमित्र, नचिकेता, महेश अग्रवाल, रमेश गौतम, रामबाबू रस्तोगी, कुँ. उदय सिंह अनुज, ज़हीर क़ुरेशी, हरेराम समीप, योगेंद्रदत्त शर्मा, रवि खंडेलवाल, यादराम शर्मा, ब्रजनाथ श्रीवास्तव, लक्ष्मीशंकर बाजपेयी, राजेन्द्र वर्मा, प्रभु त्रिवेदी, संध्या सिंह, राजमूर्ति सिंह सौरभ, जय चक्रवर्ती, कृष्णकुमार नाज़, अमलदार नीहार, यश मालवीय, पंकज परिमल, विनय मिश्र, अशोक अंजुम, रघुविन्द्र यादव, राजेश जैन राही, योगेंद्र वर्मा व्योम, रामनाथ बेख़बर, ज्ञानप्रकाश पांडेय, महेश मनमीत, सुवेश यादव, अवनीश त्रिपाठी, शैलेश गुप्त वीर, नज़्म सुभाष, गरिमा सक्सेना, राहुल शिवाय, शुभम श्रीवास्तव ओम, हँसमुख आर्यावर्ती और सत्यशीलराम त्रिपाठी।
संकलन के दोहों के बारे में संपादक का कथन उल्लेखनीय है -
“हमने कोशिश की है कि संकलन में भाषा, कथ्य और शिल्प के निकष पर दोहे की समकालीनता अपने तेवर और स्वर के साथ दिखाई और सुनाई पड़े। हमने जान-बूझकर फूहड़ और नारेबाजी करनेवाले दोहों से इस कृति को मुक्त रखा है। उपदेशात्मक दोहों से भी हमने हरसंभव का प्रयास किया है, क्योंकि मेरा मानना है कि हमारे पूर्वज कवि पहले ही अपने दोहों में नैतिकता के इतने ज़्यादा उपदेश सँजो कर गए हैं कि यदि उन उपदेशों को ही जीवन में उतार लिया जाए तो आदमी सचमुच आदमी बन जाए। मुझे लगता है कि उन उपदेशों के आगे कुछ और कहना-लिखना बेमानी होगा। इसलिए हमने नीतिपरक अथवा उपदेशात्मक दोहों के स्थान पर उन दोहों को शामिल किया है जिनमें ‘आम आदमी’ को केंद्र में रखते हुए अलग-अलग संदर्भों में अपनी बात रखी गई है। इन दोहों में आपको हमारे समय की प्रतिध्वनि सुनाई देगी, मानवीय मूल्यों और सम्बंधों को बचाए रखने की ललक और ज़िंदगी के तमाम दुखों, संघर्षों, अभावों के बावज़ूद जिजीविषा की ललक को सँजोकर रखने की ज़िद दिखाई देगी, साथ-ही सियासी षड्यंत्रों को परत-दर-परत उधेड़ने और इनसे बचे रहने के लिए हमें आगाह करते स्वर भी सुनाई पड़ेंगे।”
संपादक ने प्रयास किया है कि युगबोध के ही दोहे रहें और उपदेशात्मक दोहों से बचा जाए, पर कहीं-कहीं उनमें उदबोधन के स्वर आ गए हैं। संतोष की बात यह है कि इन दोहों में अधिकांशतः उदाहरण अलंकार उपस्थित है, अतः कला की दृष्टि से उनका महत्त्व बना हुआ है। अधिकांश दोहे उक्त निकष पर खरे उतरते हैं। कुछ दोहे जो मेरे जेह्न में बस गए, उनका जायज़ा लीजिए—
कितने दुख ईश्वर रचे, तूने यहाँ अनाम।
भूख, ग़रीबी, मुश्किलें, सौ रोटी के नाम॥ (दिनेश शुक्ल)
मानव को करते विवश, रोटी, भूख, अकाल।
कोई किडनी बेचकर, भरे काल के गाल॥ (भगवत दुबे)
श्रमजीवी की देह से, खींच-खींच कर चाम।
पूँजीपतियों के लिए, बैंक हुए नीलाम॥ (नचिकेता)
आत्मदाह करती मिली, बीच सड़क पर आह।
खड़े तमाशा देखते, नेता-नौकरशाह॥ (रमेश गौतम)
आप प्रजा के साथ हैं, या राजा के साथ।
तय करिए फिर सोचिए, परिवर्तन की बात॥ (हरेराम समीप)
ऋण की लकुटी टेकता, लोकतंत्र लाचार।
आन-बान के अश्व पर, बैठा भ्रष्टाचार॥ (राजेन्द्र वर्मा)
दिन को हमने दिन कहा, कहा रात को रात।
शब्दों से हरगिज़ नहीं, किया घात-प्रतिघात॥ (जय चक्रवर्ती)
दौलत उसके पास है, मेरे पास ज़मीर।
वक़्त करेगा फ़ैसला, असली कौन अमीर॥ (रघुविंदर यादव)
जैसे तपती रेत पर, बूँद पड़े दो-चार।
रोज़गार को बाँटती, वैसे ही सरकार॥ (राहुल शिवाय)
नई सदी के इस क़दर, बदल गए किरदार।
आँखे बेपानी हुईं, छाले पानीदार॥ (शुभम श्रीवास्तव ओम)
रंगीन कवर वाले पेपरबैक संस्करण में उपलब्ध इस 184 पृष्ठीय पुस्तक की क़ीमत है केवल 199 रुपए है। यदि आप समकालीन दोहे पढ़ना चाहते हैं, तो प्रकाशक, श्वेतवर्णा प्रकाशन, नई दिल्ली से सम्पर्क कर सकते हैं। उनका मोबाइल नं. 84475 40078.