Stuti Rai Ki Kavitayen : December Ki Ye Aakhiri Shaam
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दिसम्बर की ये आखिरी शाम
दिसम्बर की आखिरी शाम
तुमसे लिपट कर
ये महसूस हुआ कि
तुम्हारा स्पर्श ठंडा नहीं बल्कि
गर्माहट भरा है, जैसे
उन के गोले से स्वेटर बुनकर
किसी ने पहना दिया हो
जैसे, साल भर की बीती बातें और यादें
अचानक से आकर लिपट गई हों,
जैसे उसकी याद ने एक सिहरन पैदा कर
दी हों, या फिर किसी के जाने का दुःख
जो हम दिखा नहीं सकते लेकिन
महसूस हर पल होता है
किसी के आने की खुशी
किसी के स्पर्श का एहसास,
दिसम्बर की आखिरी शाम
तुमसे लिपट कर मुझे
बीते हर महीने की
हर सप्ताह और दिन की बातें याद
आ गई, याद आ गए वो लम्हें जो
खुबसूरत होते हुए भी
अब गलतियां लगते हैं
जिन्हें दिल अच्छा और दिमाग
ग़लत समझता है
खुद की नादानियां और दुसरो की
समझदारी दोनों के बीच में
खड़ी मैं, लेकिन
दिसम्बर अब सब कुछ बीत रहा है
तुम भी जा रहें हों ,
सच कहूं तो दिसम्बर
तुम मुझे हमेशा याद रहोगे
ठीक वैसे ही जैसे
किसी का मिलना
रहना और फिर चलें जाना
लेकिन कोई जाकर भी कहां जा पाता है
वो यहीं कहीं दिल और दिमाग के बीच फंसा
रह जाता है, दिसम्बर तुम भी
जाकर भी न जा पाओगे
कैलेंडर के पन्नों में
डायरी की तारीखों में
प्रेम में दिए गए किताब पर लिखें नाम में
या कि इतिहास के पन्नों में
छूट जाओगे।
- स्तुति राय
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