Depiction of folk songs in Maitreyi Pushpa's stories
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों में लोकगीतों का चित्रण
लोक साहित्य के वास्तविक स्वरुप से परिचित होने के लिए पहले लोक शब्द के वास्तविक अर्थ से परिचित होना आवश्यक है 'लोक' शब्द की उपर्युक्त विशेष स्थिति को ध्यान में रखकर समकालीन विद्वानों ने कुछ और पारिभाषिक शब्द गढ़े हैं जिनका प्रयोग लोकवार्त्ता के संदर्भ में देखना आवश्यक है। ये शब्द है 'लोक समाज का अध्ययन', 'लोक जीवन का अनुसंधान' और 'लोक संस्कृति' । लोक साहित्य के अंतर्गत मुख्य रुप से समाविष्ट हैं। लोकगीत, लोक गाथाएँ, कथागीत, धर्मगाथाएँ, अवदान, लोक कथाएँ, लोकनाटक आदि।
'लोक' शब्द अपना स्थिर रुप धारण कर अधिक प्रचलित है। यथा-लोक संस्कृति, लोक- साहित्य, लोकविश्वास, लोकमानस आदि। ऐसी स्थिति लोकसाहित्य में गीत-प्रधान अंग है। लोक गीत लोकमानस की अभिव्यक्ति के साथ लोक जीवन की सांस्कृतिक प्रक्रिया है। उसमें शुभकामनाएँ और संदेश निहित होते हैं। लोकगीतों में प्रमोद-चिन्ता, प्रसन्नता- विषाद का वास होता है। यह सहज ही कंठ से उतरता हुआ अपनी परंपरा स्थापित करता है। इसकी परम्परा मौखिक एवं क्षेत्र अत्यंत व्यापक होता है। व्यक्ति के हृदय में चेतन-अचेतन रूप में जो भावनाएँ गीतबद्ध होकर अभिव्यक्त होती रही उसे लोकगीत कहा गया।
मानव जीवन के मूल भावों को सरलता रूप में अभिव्यक्त करने की शक्ति लोक गीतों में दिखाई देती है। बिना लय व संगीत के लोकगीत अधूरा होता है। यह मानवीय रिश्तों, व्यवहारों में समरसता को जागृत करता है। लोक गीतों के प्रवाह में जातीय स्मृति का अन्तर्भाव होता है। "लोक गीत मानवीय कृतित्वों की वह सामान्य धरोहर है जो विश्व-मानव की भूमि पर हुई है।"¹
सम्पूर्ण लोक का सुख-दुःख, संवेदना, आशा और निराशा, आस्था, अंधविश्वास, रीति-रिवाज़ तीज-त्यौहार आदि बिना किसी भेद-भाव के यहाँ अपनी यथार्थ अभिव्यक्ति पाते है उसका विकास मौलिक परंपरा से जुड़ा हुआ है।
मानव के हृदय में चाहे वह अदिम हो या विकसित स्वानुभूति को अभिव्यक्त करने की इच्छा और क्षमता अवश्य रहती है और जब उसकी रागात्मक प्रवृत्ति लयबद्ध होकर निकलती है तब यह गीत का रूप धारण कर लेती है। रचनाकारों ने अपनी रचनाओं में स्वर को प्रधानता दी है। अतः यह कहा जा सकता है कि जहाँ आवेग की पूर्णता नज़र आती है वहाँ स्वर की प्रधानता दृष्टिगत होती है।
महिला लेखिका मैत्रेयी पुष्पा की कहानियों में सभ्यता और संस्कृति के विशिष्ट प्रभाव द्वारा आवेग व अर्थ, स्वर तथा शब्द गूंथे गये हैं। इनकी कहानियों में मानव जीवन की उल्लास, उमंग, करुणा, रुदन एवं समस्त सुख-दुःख निहित है।
मैत्रेयी पुष्पा की कहानी 'रास' में लोक गीतों की छवि बड़ी मोहक बन पड़ी है। लोकगीत सुख- दुःख की अनुभूतियों को चित्रित करता है। 'रास' कहानी में मनसुखा महाराज और जैमन्ती के माध्यम से प्रेम को दर्शाया है। अपने प्रिय की झलक पाने को लालायित रहता है और अपने सम्मुख देख गुनगुनाने लगता है। नायक और नायिका लय में गुनगुनाते हैं। लय वास्तव में लोकगीतों का मोहक गुण है।
जैमंती-"मेरे घर अइयोरे, अरे कायक्ष के लाल, मेरे घर आइयो रे, मेरी कमरि उठी है पीर, मेरे घर आइयों रेडडए।"²
मनसुखा महाराज-"मैं कैसे ऑऊरी अरी मेरी राजदुलारी, मैं कैसे आऊँरी, मेरे द्वार खड़े ड्योढीमान मैं कैसे आऊँ रीडडई।"
हमारी संस्कृति में लोकगीत, प्रेम, संयोग- वियोग, प्रकृति एवं पारिवारिक दुःख-दर्द को उजागर करते हैं लोक गीत हमारी संस्कृति का बड़ा अहम् हिस्सा है जिसमें संस्कृति कूट-कूट कर भरी पड़ी है। गीत किसी तिथि, त्यौहार, पर्व, मास, ऋतु, उत्सव आदि से संबंधित होते हैं जैसे जन्म उत्सव।
भारतीय संस्कृति में पारिवारिक उत्सव का बड़ा महत्व होता है। उत्सव और त्यौहारों को धूमधाम से मनाया जाता है। जैसे बच्चे के जन्म पर परिवार में वंश की वृद्धि मनाते हुए खुशी को एक दूसरे के साथ बाँटते हैं। मैत्रेयी पुष्पा की कहानी 'गोमा हँसती है' में 'किड्डा सिंह' के घर जन्म का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। गाँव की औरतें मंगल गीत गा रही है।
"ऐसे फूले सालिगराम डोले, हाथ लिए रमपइया,
ए लाला के बाबा, आज बधाई बधाई बाजी त्यारे।
ऐसे फूले किड्डू सिंह डोले, हाथ लिए रमपइंया,
ए लाला के बाबुल आज बधाई बाजी त्यारे।"³
गाँवों में स्त्रियाँ आपस में मिल जुल कर गीत गुनगुनातीं हैं। प्राचीन संस्कृति की जड़ें गाँव में अधिक दिखाई देते हैं। ग्रामीण जन-जीवन में उत्सव हर्ष उल्लास द्वारा मनाया जाता है। जन्म उत्सव हो या विवाह उत्सव आपस में खुशी और उपहार लिए दिये जाते हैं।
लोकगीतों में निजीपन की भावना होती है। किन्तु उनमें साधारण एवं सामान्यता का भाव परिलक्षित होता है। इसमें शैली सहज है। सामान्य लोकजीवन में अनायास ही फूट पड़ने वाले मनोभावों की लयबद्धता को रचनाओं में देखा गया है।
संदर्भ ग्रंथ सूची :
1. डॉ. चन्द्रशेखर भट्ट हाड़ौती लोकगीत- प्राक्कथन लेखक डा. सत्येन्द्र पृ. 1
2. मैत्रेयी पुष्पा : गोमा हँसती है, पृ. 125
3. मैत्रेयी पुष्पा : गोमा हँसती है, पृ. 168
- डॉ. शारदा
ये भी पढ़ें; जीवन का अरण्यबोध के विशेष संदर्भ में प्रेम कहानियाँ