Hindi Sahitya Ka Itihas
हिन्दी साहित्येतिहास ग्रंथ परम्परा : एक समीक्षात्मक सर्वेक्षण
हिन्दी साहित्य के इतिहास-लेखन का आरम्भ कब से हुआ ? इस बात पर प्रायः मतैक्य का अभाव है। डॉ. मोहन अवस्थी कहते हैं, "हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने का प्रयास वस्तुतः उन्नीसवीं शताब्दी में प्रारम्भ हुआ।"¹ हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहासकार हिन्दीतर भाषी फ्रांसीसी लेखक गार्सा द तासी को माना जाता है। यहाँ हिन्दी साहित्य के प्रमुख इतिहास ग्रंथों का संक्षिप्त समीक्षात्मक सर्वेक्षण करने का प्रयास किया जा रहा है।
"इस्तवार द ल लेतरात्यूर ऐन्दुई ए ऐन्दुस्तानी" : गार्सा द तासी ने फ्रेंच भाषा में लिखित यह पुस्तक दो भागों में सन् 1839 तथा सन 1847 में ग्रेट ब्रिटेन तथा आयरलैंन्ड की ओरियण्टल ट्रांसलेशन कमेटी से प्रकाशित हुई। इस पुस्तक का दूसरा संस्करण परिवर्धित एवं संशोधित रूप में प्रकाशित हुआ । डॉ. लक्ष्मीसागर वाष्र्णेय ने प्रथम एवं द्वितीय दोनों संस्करणों के आधार पर हिन्दुई साहित्य का इतिहास नामसे हिन्दी में अनुवाद किया, जो हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद से सन् 1853 में प्रकाशित हुआ। इसमें 358 कवियों एवं लेखकों का उल्लेख है। डॉ. मोहन अवस्थी के मतानुसार "इस इतिहास में ऐतिहासिकता पर लेखक ने ध्यान ही नहीं दिया है। लेखकने वर्णानुक्रम में कविवृन्त प्रस्तुत करने का कारण भी दिया है।"² यद्यपि शुरु में विचार काल क्रम ग्रहण करने का था और यह बात छिपाना नहीं चाहता कि यह क्रम अधिक अच्छा रहता या कम से कम जो शीर्षक मैंने अपने ग्रंथ को दिया है उसके अधिक उपयुक्त होता, किन्तु मेरे पास अपूर्ण सूचनाएँ होने के कारण उसे ग्रहण करना कठिन था। आगे वे लिखते हैं अपना कार्य सरल और पाठक की सहूलियत दोनों ही दृष्टियों से मुझे यह पद्धति छोड़ने को बाध्य होना पडा।
गार्सा द तासी ने काल विभाजन इस प्रकार किया हैं।
1. नवीं शताब्दी - सब में पहले हिन्दू कवि हैं।
2 . बारहवीं शताब्दी - चंद, पीपा।
3. तेरहवीं शताब्दी - बैजू बावरा।
4 . चौदहवी शताब्दी - खुसरो।
5. पन्द्रहवी शताब्दी भक्ति पद्धति की सब की रचनाएँ कबीर, नानक आदि।
6. सोलहवीं शताब्दी - नामदेव, वल्लभदास, बिहारी आदि की रचनाएँ।
7. सत्रहवीं शताब्दी - सूरदास, तुलसीदास, केशवदास ।
8. अटदाराहवीं शताब्दी - गंगापति, रामचरण आदि ।
9. उन्नीसवीं शताब्दी - बख्तावर, दूल्हाराम, छत्रसाल आदि।
गार्सा द तासी हिन्दी साहित्य का प्रारंभ बारहवी शताब्दी से मानते हैं। हिन्दुई के लेखकों की परम्परा बारहवीं शताब्दी से प्रारम्भ होकर हम लोगों के समय तक आती है और हिन्दी में पद्यात्मक रचनाओं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिलता।
कुल मिलाकर हम यह कह सकतें हैं कि, तासी के ग्रंथ का ऐतिहासिक महत्व हैं। हिन्दी साहित्येतिहास लेखन की परम्परा प्रारम्भ करने का श्रेय तासी को हैं। श्री नलिन विलोचन शर्मा के मतानुसार, "हिन्दी साहित्य का पहला इतिहास लेखक गार्सा द तासी था, यह निर्विवाद हैं।"³
शिवसिंह सरोज - ठाकुर शिवसिंह सेगर ने अप्रैल सन 1878 में मुंशी नवल किशोर प्रेस, लखनऊ में शिवसिंह सरोज का प्रकाशन कराया। इस बृहद् ग्रंथ में 1003 कवियों का जीवनवृत्त दिया गया हैं। तथा 839 कवियों की कविताओं का कविवर्णानुक्रम में संकलन किया गया है। श्री नलिन विलोचन शर्मा, डॉ. किशोरीलाल गुप्त तथा डॉ. मोहन अवस्थी शिवसिंह सरोज को साहित्य का इतिहास मानने के पक्ष में नहीं है। जब कि, मिश्र बंधु डॉ. धीरेंन्द्र वर्मा तथा डॉ. रामकुमार वर्मा इसे हिन्दी में लिखा हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास मानते हैं।
श्री शिवसिंह सेंगर ने हिन्दी के प्रथम कवि की खोज का प्रयास किया है। उन्होंने उज्जैनवासी पुण्ड कवि (सं. 770 वि.) को हिन्दी का प्रथम कवि सिद्ध किया है। उनका कथन है हमको भाषा काव्य की जड यही कवि से मालूम होता है, क्योंकि इस के पहले के किसी भाषा कवि और काव्य का नाम मालूम नहीं होता।
द मार्डन वर्नाक्युलर लिट्ररेचर ऑफ हिन्दुस्तान- डॉ. जार्ज ग्रियर्सन का यह ग्रंथ सन 1889 में प्रकाशित हुआ। डॉ. धीरेन्द्र वर्मा इसे "अंग्रेजी में लिखित हिन्दी साहित्य के इतिहास का पहला ग्रंथ मानते हैं।"⁴ डॉ. ग्रियर्सन ने सरोज को ही आधार माना है। इस ग्रंथ में 952 कवियों के परिचय तथा उनकी रचनाओं के उदाहरण दिए हैं। उनके द्वारा किया गया काल विभाजन इस प्रकार है।
1. चारण काल (700-1300 ई.)
2. पन्द्रहवीं शताब्दी का धार्मिक पुनरुत्थान।
3. मलिक मुहम्मद की कविता (1540 ई.)
4. ब्रज का कृष्ण सम्प्रदाय (1500-1600 ई.)
5. मुगल दरबार
6. तुलसीदास
7. रीतिकाव्य (1580-1692 ई.)
8. तुलसीदास के अन्य परवर्ती कवि (1600-1700 ई.)
9. अठारहवीं शताब्दी
10. कम्पनी के शासन में हिन्दुस्तान (1800-1857 ई.)
11. महारानी के शासन में हिन्दुस्तान (1857-1887 ई.)
निश्चय ही काल विभाजन की दृष्टिसे इस ग्रंथ का ऐतिहासिक महत्व है, 700 ई. से हिन्दी साहित्य का आरम्भ तथा चारण काल, रीतिकाल आदि का नामकरण परवर्ती साहित्येतिहास, लेखकों के लिए प्रेरणाप्रद रहा है। डॉ. ग्रियर्सन के इस ग्रंथ के महत्व को स्थापित करते हुए डॉ. किशोरी लाल गुप्त ने लिखा है, "यह ग्रंथ हिन्दी साहित्य के इतिहास की नींव का वह पत्थर है, जिस पर आचार्य शुक्ल ने अपने सुप्रसिद्ध इतिहास का भव्य भवन निर्मित किया।"⁵
मिश्रबन्धु विनोद :- मिश्रबन्धु विनोद का एक विस्तृत ग्रंथ है, इसमें 3757 कवियों एवं लेखकों का विवरण है। इसका प्रथम संस्करण संवत 1970 में खण्डवा तथा प्रयाग की हिन्दी ग्रंथ प्रसारक मण्डली द्वारा प्रकाशित कराया गया। मिश्र बन्धुओं द्वारा हिन्दी साहित्य का किया गया काल विभाजन इस प्रकार है।
पूर्वारंभिक काल :- संवत 700 से 1343 तक
उत्तरारंभिक काल :- संवत 1344 से 1444 तक
पूर्वमाध्यमिक काल :- संवत 1445 से 1560 तक
प्रौढ माध्यमिक काल :- संवत 1561 से 1680 तक
पूर्वालंकृत काल :- संवत 1681 से 1790 तक
उत्तरालंकृत काल :- संवत 1791 से 1889 तक
परिवर्तन काल :- संवत 1890 से 1925 तक
वर्तमान काल :- संवत 1926 से अबतक
अपने इतिहास लेखन की अनुभूत कठिनाइयों का उल्लेख मिश्र बंधुओं ने इस प्रकार किया है, "हमारे यहाँ यह दोष है कि कपडा बनाने के लिए, उस व्यक्ति को खेत जोतने, बोने, सींचने, रखवाली करने, काटने, रुई निकालनें, ऑटने, कातने और कपडा बीनने के काम करने पडते हैं। ऐसी दशा में यहाँ परम चतुर मनुष्य का काम भी उन्नत देशों की अपेक्षा हल्का जँचना स्वाभाविक है।"⁶
उपर्युक्त विवेचन के द्वारा हिन्दी साहित्येतिहास सम्बन्धी जिन ग्रंथों का उल्लेख हुआ है, उनमें सच्चे अर्थों में तो साहित्येतिहास नहीं आ पाया, किन्तु हिन्दी साहित्य के इतिहास की रुपरेखा अवश्य प्रस्तुत हो गई है।
हिन्दी साहित्य का इतिहास :- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास को व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक रुप प्रस्तुत करने का सफलता पूर्वक प्रयत्न किया। उनका हिन्दी साहित्य का इतिहास जुलाई 1929 में प्रकाशित हुआ। जो संस्करण आजकल उपलब्ध है, वह आचार्य शुक्ल के दिवंगत होने के पश्चात सन् 1942 ई. में सम्पादित एवं प्रकाशित हुआ।
आचार्य शुक्ल द्वारा किया गया नामकरण एवं कालविभाजन निम्नानुसार है।
1. आदिकाल (वीरगाथा काल सं. 1050 से 1375 तक)
2. पूर्वमध्यकाल (भक्तिकाल, सं. 1375 से 1700 तक)
3. उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल, सं. 1700 से 1900 तक)
4. आधुनिक काल (गद्यकाल सं. 1900 से आजतक)
निष्कर्ष रुप में कहा जा सकता है कि, आचार्य शुक्ल द्वारा प्रस्तुत काल विभाजन एवं नामकरण व्यवस्थित एवं मौलिक है। डॉ. सुमन राजे का कथन इस प्रकार है, "उन्होंने अपने आधार स्वयं खोजे, अपनी पद्धति स्वयं निर्मीत की है, यह उनकी सब से बड़ी मौलिकता है। वीरगाथा को छोड़कर उनके द्वारा स्वीकृत नाम आज भी प्रचलित है।"⁷
हिन्दी भाषा और साहित्य :- बाबू श्यामसुन्दर दास का यह ग्रंथ सन 1930 इण्डियन प्रेस, इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ। यह ग्रंथ दो भागों में विभक्त है। प्रथम भाग उनकी पूर्व लिखित पुस्तक भाषा विज्ञान का परिवर्तित रुप है। सन् 1944 ई. में 'हिन्दी साहित्य' के नाम से दूसरे भाग का पृथक प्रकाशन हुआ। बाबू श्यामसुंदर दास का काल विभाजन, नामकरण, साहित्य धाराओं तथा साहित्य प्रवृत्तियों का निरुपण आचार्य शुक्ल के साहित्येतिहास के आधार पर हैं।
हिन्दी भाषा और उसके साहित्य का विकास :- पं. अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध का यह साहित्येतिहास युनाइटेड प्रेस, भागलपुर से 1934 ई. में प्रकाशित हुआ। हरिऔध जी का काल विभाजन और नामकरण इस प्रकार है।
1. हिन्दी साहित्य का पूर्व रुप :- आरम्भिक काल
2. हिन्दी साहित्य का माध्यमिक काल
3. हिन्दी साहित्य का उत्तर काल
4. हिन्दी साहित्य का वर्तमान काल
5. हिन्दी गद्य - मीमांसा
हरीऔध जी सातवीं शताब्दी से हिन्दी साहित्य का आरम्भ मानने के पक्ष में हैं। उनके इस इतिहास में इतिहास दृष्टि की अपेक्षा राष्ट्रीय गौरव तथा जागरण की दृष्टि अधिक है। "मुलतः उनका उद्देश भाषा तथा साहित्य के विकास को स्पष्ट करना था, साहित्य का इतिहास लिखना नहीं।"⁸
हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास :- डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा लिखित यह साहित्येतिहास ग्रंथ सन 1936 में इलाहाबाद (रामनारायण बेनी माधव प्रेस) से प्रकाशित हुआ। इसमें सं. 750 से सं. 1750 तक अर्थात एक हजार वर्षों के साहित्येतिहास का विस्तृत विवेचन है। डॉ. वर्मा के मतानुसार, "साहित्य का इतिहास आलोचनात्मक शैली में अधिक स्पष्ट किया जा सकता है।"⁹
डॉ. वर्मा का नामकरण एवं काल विभाजन इस प्रकार
1. संधिकाल - सं. 750 से 1000 तक
2. चारणकाल - सं. 1000 से 1375 तक
3. भक्तिकाल सं. 1375 से 1700 तक
4. रीतिकाल सं. 1700 से 1900 तक
5. आधुनिक काल सं. 1900 से अब तक
हिन्दी साहित्य की भूमिका :- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का यह ग्रंथ सन 1940 में प्रकाशित हुआ। आचार्य द्विवेदी का साहित्येतिहास लेखन परम्परा से कुछ हटकर है। उनका काल विभाजन और नामकरण इस प्रकार है।
1. हिन्दी साहित्य का आदिकाल (सं. 1000 से सं. 1400 ई.)
2. भक्ति काल :- (सं. 1500 से सं. 1700 ई. तक)
3. रीतिकाल :- (सं. सत्रहवी शताब्दी के बाद)
4. आधुनिक काल (ई. उन्नीसवीं शती के आरम्भ से 1952 तक)
"बहुत कुछ अपभ्रंश काल का बढ़ाव के रुप में स्वीकार करते है। इस प्रकार द्विवेदी जी ने घनानंद को रीतिमुक्त काव्यधारा में न रखकर कृष्ण भक्त कवियों में स्थान दिया है। उन्होंने घनानंद के द्वारा अनेकशः प्रयुक्त सुजान शब्द को कृष्ण वाचक मानकर ऐसा किया है।"¹⁰
हिन्दी भाषा और उसके साहित्य का इतिहास :- आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखित इस साहित्येतिहास ग्रंथ में विवादास्पद विषयों को छोड दिया गया है। इसकी भूमिका मिश्र बंधुओंने लिखी है। इस इतिहास में धर्म, साहित्य, राजनीति का भाव कहा गया है। इन तीनों के सम्मिलित प्रभाव को ध्यान में रखकर इतिहास लेखन किया गया है। आचार्य चतुरसेन का काल विभाजन प्रायः पारम्पारिक है।
हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास :- बाबू गुलाब राय का यह इतिहास ग्रंथ 1998 ई. में साहित्य रत्न भंडार आग्रा से प्रकाशित हुआ। बाबू जी ने अपने इतिहास ग्रंथ में नामों की अपेक्षा प्रवृत्तियों एवं परिस्थितियों पर बल दिया है। काल विभाजन एवं नामकरण आचार्य शुक्ल के साहित्येतिहास के अनुसार ही हैं।
हिन्दी साहित्य का अतीत: आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्रकृत यह ग्रंथ दो भागों में सन् 1959 ई. तथा सन् 1960 ई. प्रकाशित हुआ। काल विभाजन और नामकरण में आचार्य मिश्र, आचार्य शुक्ल से सहमत हैं। रीतिकाल का नाम श्रृंगार काल के रुप में ग्रहण किया है। ध्यान में रहे कि, आचार्य शुक्ल ने रीतिकाल को श्रृंगार काल की भी संज्ञा तो दी है किंतु प्रमुखता नहीं प्रदान की।
हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास (सन् 1965 ई.):- डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से साहित्येतिहास को प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। डॉ. गुप्त का काल विभाजन एवं नामकरण इस प्रकार है।
1. प्रारम्भिक काल :- सन 1184 से 1350 ई. तक
2. पूर्वमध्यकाल :- सन 1350 से 1600 ई. तक
3. उत्तर मध्यकाल :- सन 1600 से 1857 ई. एक
4. आधुनिक काल :- सन 1857 से अब तक
डॉ. गुप्त ने वर्गीकृत रुप में वैज्ञानिक आधार पर हिन्दी साहित्य का इतिहास प्रस्तुत किया है। उनका अध्ययन एवं विश्लेषण बहुत व्यापक है। कहीं-कहीं कुछ उलझाव भी आ गया है किन्तु नई शैली में साहित्येतिहास लेखन का उनका प्रयास महत्वपूर्ण है।
हिन्दी साहित्य का अद्यतन इतिहास :- डॉ. मोहन अवस्थी लिखित यह साहित्येतिहास सन् 1970 ई. में इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ। डॉ. अवस्थी की इतिहास दृष्टि बहुत सुलझी हुई है। डॉ. अवस्थीने अपने पूर्ववर्ती साहित्येतिहासकारों के मतों की समीक्षा करते हुए अपनी मौलिक स्थापनाएँ की हैं। उन्होंने आदिकाल को आधार काल (सन् 700 से 1400 ई.) तथा आधुनिक काल को विद्रोह काल (सन 1857 ई. से) की संज्ञा दी है। भक्तिकाल तथा रीतिकाल नामों को यथावत स्वीकार किया।
हिन्दी साहित्य और संवेदना का विकास :- डॉ. राम स्वरुप चतुर्वेदी का यह साहित्येतिहास सन 1986 में इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ। साहित्य अकादमी से यह ग्रंथ पुरस्कृत है। डॉ. चतुर्वेदी ने आचार्य शुक्ल के काल विभाजन और नामकरण को स्वीकार किया है। इसमें हिन्दी भाषा, साहित्य संवेदना और संस्कृति का संश्लिष्ट रुप देखा जा सकता है।
हिन्दी साहित्य का इतिहास :- डॉ. विजयेन्द्र स्नातक द्वारा साहित्य अकादमी की योजना के अंतर्गत यह साहित्येतिहास लिखा गया। यह 1966 ई. में प्रकाशित हुआ । इसमें काल विभाजन एवंम नामकरण परम्परागत है, यद्यपि लेखक ने परम्परा से हटकर भूमिका में कहा है, आदिकाल, पूर्वमध्यकाल, उत्तर-मध्य काल, आधुनिक काल आदि नामकरण दिए गए हैं, जो परम्परागत ही है। कुल मिलाकर इस ग्रंथ में कोई मौलिकता दिखाई नहीं देती।
हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास :- डॉ. बच्चन सिंह का यह साहित्येतिहास वाराणसी से सन 1966 ई. में प्रकाशित हुआ। डॉ. बच्चन सिंह अन्तर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्यको ध्यान में रखकर साहित्येतिहास के लेखन के पक्ष में है। आचार्य शुक्ल से वे सहमत होते हुए अपनी नई स्थापनाएँ की हैं। डॉ. बच्चनसिंह का यह इतिहास ग्रंथ अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण है।
हिन्दी साहित्य का आधा इतिहास :- डॉ. सुमन राजे का यह ग्रंथ सन 2003 ई. में भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली से प्रकाशित हुआ। यह इतिहास ग्रंथ कई दृष्टियों से हमारा ध्यान आकृष्ट करता है।
1. यह कि, महिला द्वारा लिखित साहित्येतिहास है, इसमें पूर्व किसी महिला द्वारा लिखित साहित्येतिहास नहीं मिलता है।
2. इतिहास में महिला लेखन का स्वतंत्र मूल्यांकन किया गया है।
3. इसमें लोक साहित्य को परिनिष्ठित साहित्य के साथ साहित्येतिहास में स्थान देने की बात कही गई है। इस सन्दर्भ में लेखिका मानना है, "एक स्मृति इतिहास भी होता है, जो नाना रुपों में पीढी दर पीढी चलता रहता है। साहित्य के संदर्भ में इसकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। उनका यह भी मानना है कि महिला लेखन की एक अविछिन्नधारा रही है, आवश्यकता है कि उसे खोज निकालें और उसे एक आकार दे।"¹¹
डॉ. सुमन राजे मानती है कि, हिन्दी साहित्य में दूसरी परम्परा की खोज तो की गई, परन्तु यह तीसरी परम्परा जब तक नहीं खोज ली जाती तब तक साहित्येतिहास आधा इतिहास ही है। काल विभाजन इस प्रकार है।
1. प्रथम भारतीय नव जागरण - गाथाएँ
2. द्वितीय नव जागरण - संस्कृत और प्राकृत कवयित्रियाँ
3. तृतीय नव जागरण - भक्ति आन्दोलन
4. चतुर्थ नव जागरण - आधुनिक युग
प्रथम तथा द्वितीय जागरण में हिन्दीतर लेखिकाओं का उल्लेख है, क्योंकि इन में हिन्दी का उद्भव ही नहीं हुआ था। तृतीय और चतुर्थ नवजागरणों में हिन्दी लेखिकाओं का विवेचन है। डॉ सुमन राजे का यह प्रयास तो सराहनीय है कि हिन्दी लोक साहित्य तथा महिला लेखन को साहित्येतिहास में स्थान दिया जाए।
कुल मिलाकर संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा विकसित होती रही है। कई बार हिन्दी साहित्य के इतिहास की पुनर्रचना या लेखन की बात भी उठायी जाती है। हिन्दी अब अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर विस्तृत हो रही है। हिन्दीतर प्रदेशों तथा भारतेत्तर देशों में हिन्दी साहित्य की सर्जना हो रही है, जिसे हिन्दी के साहित्येतिहास में स्थान मिलना चाहिए।
संदर्भ - ग्रंथ :
1. हिन्दी साहित्य का अद्यतन इतिहास, पृ. 25
2. हिन्दुई साहित्य का इतिहास, डॉ. लक्ष्मीसागर वाष्र्णेय, अनुवादक की ओर से पृ. 50
3. साहित्य का इतिहास दर्शन पृ. 75
4. साहित्य का इतिहास दर्शन पृ. 77
5. हिन्दी साहित्य का अद्यतन इतिहास पृ. 25
6. मिश्र बंधु विनोद पृ. 13
7. साहित्येतिहास संरचना एवं स्वरुप पृ. 171
8. हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, डॉ. वर्मा पृ. 01
१. हिन्दी साहित्य :- उद्भव विकास, आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी पृ. 118
10. हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास भाग-2 पृ. 47
11. हिन्दी साहित्य का आधा इतिहास पृ. 18
- आबासाहेब हरिभाऊ राठौड़
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