Interdisciplinary International Seminar on Hindi Language and Literature on the World Forum
विश्व मंच पर हिंदी भाषा एवं साहित्य पर अंतर्विषयक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिन्दी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा; कथा (यू.के.), लंदन; अखिल विश्व हिन्दी समिति, कनाडा; हिंदी वैश्विक संस्थान, नीदरलैंड्स एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) आगरा के संयुक्त तत्त्वावधान में हाइब्रिड मोड में आयोजित अंतरविषयी अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी "विश्व पटल पर हिन्दी भाषा और साहित्य"
दिनांक : 16 एवं 17 जनवरी 2024
आयोजन स्थल : विश्वविद्यालय गोल्डन जुबली हॉल पालीवाल पार्क परिसर, आगरा
संगोष्ठी की उपलब्धियाँ :
* विभिन्न विदेशी विश्वविद्यालयों एवं संस्थाओं के साथ समझौता ज्ञापन की संभावनाएँ
* वैश्विक स्तर पर विदेशी विश्वविद्यालयों के आचार्यों को विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में आमंत्रित किया जाएगा
* वैश्विक स्तर पर हिंदी का प्रचार प्रसार होगा
* विश्व पटल पर हिंदी की दशा और दिशा का सही आकलन हो सकेगा
संरक्षक : प्रो. आशु रानी कुलपति, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा
प्रो. सुरेन्द्र दुबे उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी शिक्षण मण्डल
श्री तेजेंद्र शर्मा वरिष्ठ कथाकार, लंदन
श्री गोपाल बघेल 'मधु' वरिष्ठ आध्यात्मिक कवि, कनाडा
श्रीमती जकिया जुबेरी कहानीकार, लंदन
डॉ. पुष्पिता अवस्थी वरिष्ठ साहित्यकार, नीदरलैंड
प्रो. खेमसिंह डेहरिया, कुलपति, अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल
श्रीमती रीता कौशल साहित्यकार, आस्ट्रेलिया
डॉ. इंदिरा गाज़िएवा रशियन स्टेट विश्वविद्यालय
संगोष्ठी संयोजक प्रो. प्रदीप श्रीधर, निदेशक, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ
प्रो. सुनील बाबुराव कुलकर्णी निवेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान
श्रीमती जय वर्मा साहित्यकार, नॉटिंघम, यू.के.
संगोष्ठी के आयोजन की परिकल्पना एवं उद्देश्य
उत्तर आधुनिक युग में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में हिन्दी भाषा और साहित्य की भूमिका आज सुस्पष्ट है। वैश्वीकरण के कारण ज्ञान-विज्ञान के जो गवेषणा द्वार खुले हैं, उनमें हिन्दी भाषा आज समन्वयवादी संपर्क-सेतु का कार्य कर रही है। अंतरविषयी अवधारणाओं और बौद्धिकता के बहुआयामी वैश्विक सन्दर्भ शिक्षा, समाज विज्ञान, चिकित्साशास्त्र, प्रबंधन, अर्थशास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, न्याय संहिता, विज्ञान-प्रौद्योगिकी आदि क्षेत्रों में हिन्दी को विश्व पटल पर एक नयी अर्थवान अस्मिता प्रदान कर रहे हैं। हिन्दी का अवदान आज राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय फलक पर गुणात्मक रूप से सर्व स्वीकृत है।
'वसुधैव कुटुम्बकम्' की अवधारणा को आधार मानने वाली भारतीय संस्कृति का ज्ञान-विज्ञान, दर्शन आदि प्राचीन काल से ही विश्वविख्यात रहा है। इक्कीसवीं सदी की अनेक चुनौतियों, समस्याओं, विश्वव्यापी अंतरविरोधों और विडंबनाओं के मध्य रहते हुए भी हिन्दी की प्रवाहमान धारा अवरुद्ध नहीं हुई है। तेजी से बदलते संदर्भों एवं सूचनाओं के बाहुल्य के कारण अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में जो मूलगामी परिवर्तन हुए हैं, उन सभी को हिन्दी भाषा एवं साहित्य में पूरी गरिमा के साथ स्थान मिला है।
हिन्दी भाषा एवं साहित्य के विस्तृत होते वैश्विक फलक का श्रेय उन प्रवासी भारतीयों को भी जाता है, जो अपनी जन्मभूमि छोड़कर परदेश में निवास कर रहे हैं। उनके समक्ष उनके अपने संघर्ष हैं, जो सम्पूर्ण विश्व में फैले भारतवंशियों के अस्तित्व से संबद्ध हैं। भारतवंशियों के हर्ष-विषाद, तीज-त्यौहार, मानवीय संबंधों, चिंतन आदि की अभिव्यक्ति करने में इन रचनाकारों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, दक्षिण अमेरिका, मॉरीशस, फिजी, जापान, नेपाल आदि देशों में आज हिन्दी एक भाषा के रूप में पढ़ाई जा रही है।
बदलते वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी भाषा के साहित्य का विभिन्न अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में जो अनुवाद हुआ है, उसने हिन्दी साहित्य की परिधि को अभूतपूर्व व्यापकता दी है। भारत के सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं मानवीय मूल्यों को वैश्विक स्तर पर मान्यता दिलाने में हिन्दी भाषा एवं साहित्य की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। आवश्यकता इस बात की है कि हिन्दी भाषा एवं साहित्य की वैश्विक उपस्थिति एवं उसके प्रभावों के संदर्भ में गंभीर चर्चा की जाए। प्रस्तावित संगोष्ठी इस दिशा में सार्थक प्रयास होगी।
यह द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी विश्व पटल पर हिन्दी भाषा और साहित्य की दशा एवं दिशा को केन्द्र में रखकर आयोजित की जा रही है। इसमें देश-विदेश के लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों एवं साहित्यकारों की सहभागिता रहेगी। प्रो. विश्वनाथ प्रसाद, प्रो. माताप्रसाद गुप्त, प्रो. रामविलास शर्मा, प्रो. विद्यानिवास मिश्र एवं प्रो. गणपतिचन्द्र गुप्त जैसे स्वनामधन्य विद्वान निदेशकों की प्रेरणा और आशीर्वाद से इस विद्यापीठ की चिंतन परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है। अपनी सुदीर्घ एवं समृद्ध चिंतन परंपरा को आगे बढ़ाते हुए विद्यापीठ परिवार इस द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी को आयोजित करते हुए गौरवान्वित अनुभव कर रहा है। यह संगोष्ठी विद्यापीठ की सुदीर्घ चिंतन श्रृंखला की सार्थक कड़ी सिद्ध होगी। हमारा प्रयास रहेगा कि हम विद्वज्जनों के विचार-मंथन और उनके सुझावों से ठोस निष्कर्ष प्राप्त कर विश्व पटल पर हिन्दी भाषा एवं साहित्य के संबंध में मानवीय सरोकारों की वर्तमान उद्देश्यपरक अभिव्यक्ति एवं उनकी भविष्यगत सार्थकता पर प्रकाश डाल सकें।
संगोष्ठी की संभावित उपलब्धियाँ
1. बदलते वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप हिन्दी भाषा एवं साहित्य के उद्देश्यों का निर्धारण। 2. विश्व पटल पर हिन्दी भाषा एवं साहित्य की स्थिति के संबंध में विचार मंथन के द्वारा उनके समक्ष चुनौतियों पर चिन्तन।
3. हिन्दी भाषा एवं साहित्य की वैश्विक संभावनाओं की खोज और उन पर कार्य करने की भविष्यगत संभावनाओं पर विचार।
4. हिन्दी भाषा एवं साहित्य के अन्य विमों के साथ अंतस्संबंधों की भविष्यगत संभावनाओं का निर्धारण।
संगोष्ठी के उप-विषय
1. ब्रिटिश शासनकाल और हिन्दी भाषा का स्वरूप
2. हिन्दी के विकास में आर्य समाज एवं अन्य संस्थाओं का योगदान
3. स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दी का योगदान
4. विदेशी विद्वान और हिन्दी साहित्य
5. हिंदी: भाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण
6. संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी
7. हिन्दी भाषा का अंतरराष्ट्रीय स्वरूप
8. हिन्दी के प्रचार-प्रसार में संलग्न वैश्विक स्तर की संस्थाएँ
9. अन्य भाषाओं से हिन्दी में और हिन्दी से अन्य भाषाओं में अनुवाद की अवधारणा, भूमिका, संभावनाएँ और समस्याएँ
11. हिन्दी पत्रकारिता : वैश्विक सन्दर्भ
12. विज्ञापनों में हिन्दी
13. सोशल मीडिया और हिन्दी
14. हिन्दी सिनेमा : राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय सन्दर्भ
15. आजादी के 75 वर्ष और राजभाषा हिन्दी
16. हिन्दी भाषा और रोजगार की संभावनाएँ
17. सूचना प्रौद्योगिकी और हिन्दी का मानक स्वरूप
18. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और हिन्दी
19. हिन्दी साहित्य और समकालीन विमर्श
20. हिन्दी एवं संस्कृत- अंतःसंबंध
21. हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाएँ
22. विभिन्न शिक्षण माध्यम और हिन्दी
इन विषयों के अतिरिक्त शोधार्थी/शिक्षक अपनी विशेषज्ञता के अनुसार अन्य संबंधित उप-विषयों पर भी शोध-पत्र प्रस्तुत कर सकते हैं।
आमंत्रित विद्वज्जन
• डॉ. हेमराज सुंदर, वरिष्ठ साहित्यकार, मॉरीशस
• प्रो. नंदकिशोर पाण्डेय, अधिष्ठाता, कला संकाय, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर
• प्रो. सूर्यप्रकाश दीक्षित, लखनऊ
• प्रो. पूरनचंद टंडन, वरिष्ठ आचार्य, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
• डॉ. अलका धनपत, महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस
• प्रो. मोहन, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
• प्रो. उषा यादव, साहित्यकार, आगरा
• प्रो. अब्दुल अलीम, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़
• प्रो. उमापति दीक्षित, केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
• श्रीमती अनिता कपूर, साहित्यकार, अमेरिका
• प्रो. अश्वनी श्रीवास्तव, सेवानिवृत्त आचार्य, केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
• प्रो. रामवीर सिंह, सेवानिवृत्त आचार्य, केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
• डॉ. सुरेशचन्द्र शुक्ल, साहित्यकार एवं पत्रकार, नॉर्वे
• प्रो. विमलेश कांति वर्मा, सेवानिवृत्त प्राध्यापक, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
• प्रो अरुण चतुर्वेदी, केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
• श्रीमती अनिल प्रभा कुमार, साहित्यकार, अमेरिका
• थामस डेनहर्ट, वेनिस विश्वविद्यालय, इटली
• मिकि निशिओका, एसोसिएट प्रोफसर, ओसाका विश्वविद्यालय, जापान
• श्रीमती रमा शर्मा, हिंदी सेवी, टोक्यो, जापान
• श्रीमती अंजु पुरोहित, हिंदी सेवी, मलेशिया
• श्रीमती शैलजा सक्सैना, साहित्यकार, कनाडा
• प्रो. हरिमोहन, साहित्यकार, आगरा
• अतिला कोतलावल, श्रीलंका
• मरिओला अफ्रेदी, इटली
• डॉ. तनुजा पदारथ, मॉरीशस
• डॉ. सुरीति रघुनंदन, मॉरीशस
• प्रो. तोमियो मिजोकामी, सेवानिवृत्त आचार्य, ओसाका विश्वविद्यालय, जापान
• डॉ. अंजलि चिंतामणि, मॉरीशस
• डॉ. निर्मल जसवाल, साहित्यकार, कनाडा
• प्रो. बीना शर्मा, केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा
• डॉ. प्रगति गुप्ता, साहित्यकार, जोधपुर
• प्रो. नवीनचन्द्र लोहनी, अध्यक्ष, हिंदी विभाग,
चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ
• डॉ. मुक्ति शर्मा, साहित्यकार, कश्मीर
शोध पत्र संबंधी निर्देश :
1. प्रतिभागियों द्वारा संगोष्ठी में वाचन हेतु शोध पत्र सारांश एवं प्रकाशन हेतु संपूर्ण शोध पत्र आमंत्रित है।
2. चयनित शोध पत्रों की एक संपादित पुस्तक ISBN नंबर के साथ प्रकाशित की जाएगी।
3. शोध पत्र यूनिकोड (मंगल एवं एरियल) फॉन्ट में ही स्वीकार किए जाएंगे।
4. यदि टंकण में कोई समस्या है, तो अपने हस्तलिखित शोध पत्र की एक PDF FILE बनाकर दिए गए ई-मेल आईडी पर प्रेषित करें।
5. शोध पत्र के संबंध में किसी भी प्रकार की जिज्ञासा के समाधान हेतु डॉ. नितिन सेठी (मो. 9027422306) से संपर्क करें।
6. अपने शोध पत्र kmiseminar2024@gmail.com पर प्रेषित करें।
7. शोध पत्र सारांश वाचन करने वाले प्रतिभागी (ऑनलाइन एवं ऑफलाइन) सुश्री शिवानी चौहान (मो. 7838195100) से संपर्क करें। समय सीमा : 5 मिनट
8. चयनित शोध पत्रों की सम्पादित पुस्तक प्राप्त करने हेतु पंजीकरण के अलावा पृथक् रूप से 700/- रूपये शुल्क (डाक खर्च सहित) देय होगा। 9. शोध पत्र के अन्त में अपना पूरा नाम, घर/कॉलेज का पता (पिनकोड सहित), मोबाइल नं., ई-मेल अवश्य लिखें। इसके अभाव में यदि शोध पत्र प्रकाशन में कोई असुविधा होती है, तो आयोजकों का उत्तरदायित्व नहीं होगा।
10. शोध-पत्र प्राप्त होने की अन्तिम तिथि 31 अक्टूबर 2023 है। अंतिम तिथि तक प्राप्त शोध-पत्रों की संपादित पुस्तक का विमोचन संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में किया जाएगा।
11. पंजीकरण शुल्क शिक्षकों हेतु 1500/-, शोधार्थियों हेतु 1000/-, अन्य विद्यार्थियों हेतु 500/-, भारत से बाहर के प्रतिभागियों हेतु $100
पंजीयन प्रपत्र |
संरक्षक :
प्रो. आशु रानी
कुलपति, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा
संगोष्ठी संयोजक :
प्रो. प्रदीप श्रीधर
आचार्य, हिंदी विभाग एवं निदेशक, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ,डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, पालीवाल पार्क, आगरा, संपर्क: 9837350986
आयोजन समिति
डॉ. नीलम यादव
डॉ. रणजीत भारती
श्रीमती पल्लवी आर्य
डॉ. राजेंद्र दवे
डॉ. राजकुमार
डॉ. प्रदीप कुमार
डॉ. आदित्य प्रकाश
डॉ. अमित कुमार सिंह
श्रीमती मोहिनी दयाल
श्री अनुज गर्ग
डॉ. केशव कुमार शर्मा
श्री विशाल शर्मा
डॉ. संदीप कुमार
डॉ. वर्षा रानी
डॉ. शालिनी श्रीवास्तव
डॉ. रमा
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