Jivan Ka Aranyabodh
जीवन का अरण्यबोध के विशेष संदर्भ में प्रेम कहानियाँ
हिंदी कहानियों में मानव जीवन से संबंधित अनेक कहानियाँ लिखी गयी हैं वैसे मानव और कहानियों का संबंध बहुत प्राचीन है। आदि मानव और मानव को लेकर कई कहानियाँ उपलब्ध हैं। हिंदी साहित्यकारों ने समय-समय पर प्रकृति के सौंदर्य बोध की कहानियाँ लिखी है। जयशंकर प्रसाद की कामायनी में और पंत की कविताओं में क्या कम सौंदर्य की अभिव्यक्ति हुई है। परंतु अरण्यबोध से संबधित मानव जीवन की कहानियाँ नहीं के बराबर है। जो इस संकलन में संकलित है। इन कहानियों में मानव के साहस और प्रेम की अद्भुत झलक दिखाई देती है।
शुभवंदा पांडे लिखित कहानी संग्रह 'जीवन का अरण्यबोध' सन 2013 में एबीएस प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ है। इस संकलन की 'सोमा और सांगा कहानी' मानव प्रेम और अदम्य साहस को उजागर करती है। जंगलों में रहनेवाली सोमा और यूनान के जंगलों में रहनेवाला सांगा एक दूसरे के प्यार में इसतरह फंस जाते हैं कि विवाह के उपरांत दोनों को बहादुर नाम का बेटा होता है।
"मैं तो माँ को जानता ही नहीं। समझ आयी तो अपने को जंगल के बीच पाया। जहाँ पानी, फल, पत्ते लकड़ी सब थी।"¹
जहाँ मानवता नष्ट हो रही है, प्रेम लुप्त हो रहा है, वहाँ जंगली जीव के प्रति अदम्य साहस और प्रेम करनेवाली सांगा केवल मानवता को जीवित नहीं रखता अपितु उसके साथ-साथ प्रेम की अमर गाथा भी सुनाता है।
इस बात को सांगा भी स्वीकार कर लेता है। देखिए उसीके शब्दों में "मैं हमेशा खतरों से खेलता हूँ।"²
यही बात सोमा की है जो अपने को व्यक्त करती हुई कहती है:-
"मेरी माँ बचपन में ही मर गयी थी। पिता दूसरी शादी कर मुझे मामी के पास छोड़ दिए। इस जंगल में लकडी बीनती हूँ, मकोय खाती हूँ। पशु पक्षियों से खेलती हूँ। एक शेर का बच्चा तो मेरे बिना रह ही नहीं पाता।"³
इस तरह से उसके कथन से एक साथ साहस और प्रेम झलकता है, जो हम सब के लिए अरण्बोध और प्रेरणा भी है। यूँ तो स्पष्ट है कि प्रेम के बदले केवल प्रेम ही मिल सकता है। इसी बात को नरेश उधरे स्पष्ट करते हुए कहते हैं।
"मानव जिस ओर गया नगर बने, तीर्थ बने, तुमसे है बड़ा गगन सिंधु मित्र बने"⁴
साहस तो उस समय दिखाई देता है। जब सांगा जंगल में शेर को घायल करता है। और सोमा उसपर आग की लकड़ी फेंककर उसे दलदल में गिरा देती है। किंतु कुछ दिनों बाद वही शेर जब अपनी दुश्मनी भूलकर सांगा के पास आकर बैठता है। वह सोमा की दी हुई मछली बडे चाव से खाता है। यूँ तो स्पष्ट है प्रत्येक मनुष्य हो या प्राणी वह प्रेम का भूखा होता है।
"कुदरत का खूंखार जीव भी प्रेम का भूखा है। प्रेम विश्वास है, जिसकी चाहत सभी को समान रूप से रहती है।"⁵
इस तरह लेखिका इसके माध्यम से प्रेम और साहस को बडी आत्मीयता से उजागर करती है।
मानव जीवन में अदम्य साहस की अनोखी बात ने अचंभित किया है। इतना ही नहीं इन घटनाओं को सुनकर शरीर पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, किंतु यहाँ तो साहस से प्रेम की अनोखी गंगा बहने लगती है, जिसमें नायक-नायिका भीगकर खून निकालकर जीने का उमंग भर देता है। इसलिए जीजिविषा को साधन बना साहस और अस्पताल खोलने की सोचते हैं।
संदर्भ सूची:
1. जीवन का अरण्बोध - शुभवंदा पांडे - पृष्ठ-17
2. जीवन का अरण्बोध - शुभवंदा पांड - पृष्ठ-16
3. जीवन का अरण्बोध - शुभवंदा पांडे - पृष्ठ-18
4. साहित्य शास्त्र - अतकर - पृष्ठ - 40
5. जीवन का अरण्बोध - शुभवंदा पांडे - पृष्ठ-21
- डी. जनार्दन
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