सीख से रची नई लोकोक्ति : डीपी में फोटो रहे - बढ़ेगा आदर भाव

Dr. Mulla Adam Ali
0

Hindi Satire by B. L. Achha Ji

सीख से रची नई लोकोक्ति

सीख से रची नई लोकोक्ति : डीपी में फोटो रहे - बढ़ेगा आदर भाव

- बी. एल. आच्छा

     हर बार फटकार लगती है - 'अपनी हद में रहो।' पर अभिव्यक्ति के लोकतंत्र में जबान दाँतों के अन्दर कैसे रहे? सारी आजादियों में बदकार के अंदाज़ की तेजाबी भाषा ही चार कॉलम में गर्माती है। 'संयम ही जीवन है', यह तो दीवार चिपकू सूक्ति है या एक कॉलम का अनमना शाकाहारी समाचार। कई बार तो लगता है कि जबान ही खुले मुँह के बाहर लटकती हांफ रही है, पर उसका छुरी-चुभाऊ अंदाज पैना है।जब कभी कोई सवासेरिया अपने अंदाज से धो देता है, तो शक्ल छुपाते फिरते हैं।पिटाई- धुनाई के बाद सीख खुद-ब-खुद नयी लोकोक्ति रच जाती है-"डी. पी. में फोटो रहे, बढ़ेगा आदर भाव।"

      सभ्य भाषा का सृजन सेन्सेक्स को हाइट नहीं देता। लोग भी तब इकट्ठा होते हैं, जब पटियों वाले चौक बाजार में तीरंदाजी के शब्द हॉट मुद्राओं से पास बुलाते हैं। फिर न टिकट बेचने पड़ते हैं, न आमंत्रण भेजने पड़ते हैं।लोग खिंचे चले आते है। असल में मसालों के बगैर स्वाद जमता नहीं। फिल्मी दुनिया में तो ऐसे टाइटल ही टिकट ले आते हैं।जब 'बदत‌मीज 'देखने गया तो करोड़ों के वारे-न्यारे। 'तमीज' देखने गया तो फिल्म फ्लॉप! लायक' देखन मैं चला, तो 'नालायक'ही बॉक्स आफिस पर पैसे कूटती रही। जब समझदार देखने मैं चला, तो 'पगला कहीं का' ही लक्ष्मी के दरवाजे खोलती रही। 

     जब पढ़े- लिखे चतुर सुजान को चाहने गया तो 'गंवार' ही जनता को मनभाई लगी। जब सभ्यता के शिखर को छूने की चाह होती है, तो 'गंवार' सेन्सेक्स रच देती है। जब देवता का पूजन- अर्चन करने जाता हूं ,तो 'शैतान 'ही थियेटर की ओर जाने को मजबूर कर देती है।'आवारा ' तो स्थिरप्रज्ञों को भी मनचला बना जाती है। 'दबंग' और 'दंगल' के खेल तो घर- गली-मुहल्ले से लेकर छोटे परदे से बड़े परदे पर आर-पार का शोर मचाते हैं। कबीर के सबद जबान पर भले ही चिपके रहें, पर साइबर का नया 'एनीमल' पोस्ट बॉक्स पर शोर मचा जाता है। 

      राजनीति ने भी शब्दों की अनचाही कोर में चमक ला दी है। जब तक टी वी के जबानी दंगलों में गालीनुमा शोरबा और थप्पड़नुमा क्लाइमेक्स नहीं आता तब तक सुनने का मजा ही बेरंग होता है। राजनीति में तो शीर्ष भी गाली के किलोवाट की चर्चा करता है। यों लोग कहते हैं कि विरोधी पक्ष द्वारा दिए गये "गालीफूल" सत्तापक्ष के लिए देशी खाद का काम कर जाते हैं। वोटों की फसल में यह खाद ही लहलहाती है। तब लगता है कि विरोधी का तीर अपने ही खेमे को लहूलुहान कर जाता है।कभी कभी तो अनपढ़ शब्द ही इतना वोट- बटोरू हो जाता है कि विरोधी भी सन्न रह जाते हैं। कभी हाईकमान को खुश करने के लिए दरबारी कुछ ऐसा कह जाते हैं, जो मीडिया को निंदा रस से भनभना जाए, पर हाईकमान लिए गले की प्रशंसा- माला माला बन जाए।

    पर खुलते- खुलते जबान इतनी चरपरी और झन्नाट हो जाती है कि मोठे का स्वाद ही भूल जाती है।कभी सत्ता के शिखर और विपक्षी भी कंधा-भिड़ाऊ मस्ती रच जाते थे।अब कंधों में ही शब्दों के कांटे उगे रहते हैं। और छोटी- सी ज़बान सोशल मीडिया में इतनी लंबी हो जाती है कि दिनों-दिन वोटर- कंपी झटके दे जाती है।

    मगर बेलाग जबानें ही इन दिनों लीडराना कमाल दिखाती हैं। राजनीति की सभ्यता के शिखर तीखी जबानों के मल्लयुद्ध दांव रचाते हैं। कमजोर नायक माफी के फ्लैवर में आ जाता है। ऐसे में लोकतन्त्र और सोशल मीडिया का रंग ही बेरंग हो जाता है। आखिर शब्द-युद्ध का तीर-तमंचाई -बुल्लेट - युद्ध खत्म होते देख मजा ही किरकिरा हा जाता है। पर कभी न्यायालयों के कठघरों में यह शब्द माला बहसबाजी में न्याय की गुहार लगाती है, तो तो दांए-बांए झांकने के बावजूद खूँटे को छोड़ती नहीं है। 

      राजनीति के जनताई मैदान में जब जानाबूझा अनपढ शब्द सोशल मीडिया बन जाता है- "हदे छांडि बेहद भया" हो जाता है।और पसरता इतना जल्दी है कि टीवी के एन्कर की जबान इधर से उधर समन्वय और शांति के सोडावाटर में कर्कशता को घोलने की कोशिश में खप जाती है। पर जनता तो समझदार है। जिस शिखर ने गाली दी है, उसे तलहटी में ला पटकना है। राजनीति ही क्यों,घर बाहर की दहलीज पर भी यही कह जाती है -" "डीपी में फोटो रहे, बढेगा आदर भाव।" पर झन्नाट मसाला के आदी फीके-फच्च से रंजते कहां है। उन्हें तो सींग-धंसाई के मैदानी खेल ही चाहिए।

- बी. एल. आच्छा

फ्लैटनं-701 टॉवर-27

नॉर्थ टाउन अपार्टमेंट

स्टीफेंशन रोड (बिन्नी मिल्स)

पेरंबूर, चेन्नई (तमिलनाडु)

पिन-600012

मो-9425083335

ये भी पढ़ें; गणपति के मूषक, व्यंग्य की पौध और परिक्रमा में इंदौर : बी.एल. आच्छा

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top