रामनरेश त्रिपाठी का हमारा ग्राम साहित्य

Dr. Mulla Adam Ali
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Hamara Gram Sahitya by Ram Naresh Tripathi

Hamara Gram Sahitya by Ram Naresh Tripathi

रामनरेश त्रिपाठी का "हमारा ग्राम साहित्य"

पावों में पैजनियाँ लाला ठुमक ठुमक खेलोगे"

अच्छी शुभ घडी वादिन जानूंगी

जादिन लाल मेरो दादा दादी बोलोगे

कै झूले मेरे पालनों, के दादी की गोद

अंदन चंदन को पालनों के रेशम की डोर"

उक्त पंक्तियाँ सोहर की हैं, जब हिन्दू परिवारों में पुत्र जन्म के अवसर पर जो गीत गाये जाते हैं उनको युक्तप्रांत के पूर्वी जिलों में 'सोहर' और पश्चिमी जिलों में 'सोहिलो' कहते हैं। हमने आज पश्चिमी संस्कृति को अपनाया है और हमारी अपनी विरासत को हमने गाँवों में ही छोड दिया है। वैसे आज भी असली हिन्दुस्तान शहरों में नही गांवो में है। परंतु गाँव की मूल संस्कृति और प्रकृति अभी तक उसी हालत में हैं, जिस हालत में वह चन्द्रगुप्त और अशोक के जमाने में रही होगी।

श्री रामनरेश त्रिपाठीजी द्वारा लिखित पुस्तक 'हमारा ग्राम साहित्य' में हमें गाँव की मूल संस्कृति के दर्शन होते हैं। त्रिपाठीजी क जन्म सं. 1946 में जौन पुर जिले के अंतर्गत कोहरीपुर ग्राम में हुआ। उनके पिता पं. रामदत्त त्रिपाठी सरयूपारी ब्राह्मण थे। वे गीता, रामायण व महाभारत आदि धार्मिक ग्रंथों के अत्यन्त प्रेमी होने के कारण श्री रामनरेश जी को रामायण से अनुराग हुआ था।

श्री रामनरेश त्रिपाठीजी का अध्ययन नवीं कक्षा से आगे न बढ़ सका । अपने जन्म ग्राम से अपर प्रायमरी परीक्षा उत्तीर्ण कर वे जौनपुर के हाईस्कूल में अंग्रेजी पढ़ने गये पर अंग्रेजी पढ़ने के सम्बन्ध में पिता का उनसे विरोध हो गया। त्रिपाठीजी ने कलकत्ते में रहकर बंगला का ज्ञान प्राप्त किया था और राजपूताने में रहते उन्हें अंग्रेजी सीखने का भी अवसर मिला। वैसे तो उनके साहित्यिक जीवन का प्रारंभ राजस्थान से ही होता है। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलनों में भी सक्रिय भाग लिया और उन्हें कारावास भी हुआ था।

खड़ी बोली के कवियों में श्री त्रिपाठीजी का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान था। उनकी काव्य कृतियों में मूलतः देशभक्ति ही अंकित हुई है। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के इन्दौर अधिवेशन में वे प्रचार मंत्री भी चुने गए और दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार का काम भी उन्होंने ही प्रारंभ करवाया। उन्होंने सन् 1924 ई में हिन्दी मंदिर प्रयाग और सन् 1931 में हिन्दी मंदिर प्रेस प्रयाग की स्थापना की। इसके अतिरिक्त इस वर्ण उन्होंने 'वानर' का संपादन प्रारंभ किया और कुछ समय तक सम्मेलन की पत्रिका का संपादन भी किया था।

श्री त्रिपाठी जी ने 'हमारा ग्राम साहित्य' के पहले सन् 1929 में ग्राम गीतों का एक बडा संग्रह प्रकाशित किया था। उस संग्रह में गाँव के कंठस्थ साहित्य में भी हमारे उच्च कोटी के साहित्य और समाज के लिये उपयोगी विषय की जानकारी हमें देखने मिलता है। उसी तरह 'हमारा ग्राम साहित्य' में श्री त्रिपाठीजी ने ग्राम साहित्य को अठ्ठाईस वर्गों में बाँट दिया है, जिसमें संस्कारों के गीत, व्रतों और त्यौहारों के गीत, ग्राम-गाथाएं, ग्राम कथाएं, खेत के गीत, भिखमंगों के गीत, कोलहू के गीत, गाँव के खेल तथा नीति की कहावते आदि शामिल हैं।

उन्होंने कहा है गाँव को गाँव की दृष्टि से देखिए, तभी वह सुन्दर मालूम होगा। गांव को अन्दर से देखिए, तभी उसकी सम्पूर्णता समझ में आयेगी। गाँव की प्राचीन व्यवस्था का अच्छी तरह अध्ययन किया जायेगा तो वह एक आदर्श व्यवस्था साबित होगी। किसी जमाने में गाँव में शिक्षा, न्याय, सहयोगिता, स्वास्थ, चरित्र-निर्माण और गृह प्रबन्ध आदि की स्वतंत्र और उत्तम व्यवस्था थी। विदेशी सभ्यताओं ने उसके रूप को छिन्न-भिन्न कर दिया है।

श्री रामनरेश त्रिपाठीजी हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और लेखक है तथा उन्होंने कई विषयों पर कुछ न कुछ लिखा है अतः उनकी रचनायें भिन्न-भिन्न प्रकार की हैं काव्य- 'कविता विनोद', 'मानसी', 'क्या होमरूल लोगे', 'मिलन पथिक', 'स्वप्न', 'दिमागी ऐयाशी' आदि। उपन्यास और कहानी संग्रह में 'वीरांगना, 'वीरबाला', 'लक्ष्मी', 'मारवाडी और पिशाचिनी' और 'स्वप्नों के चित्र'।

नाटक- 'सुभद्रा', 'जयंत', 'प्रेमलोक', 'बफाती चाचा', 'पैसा परमेश्वर'। आलोचना - 'तुलसीदास और उनकी कविता', 'हिन्दी का संक्षिप्त इतिहास', 'हिन्दी- हिन्दुस्तानी' और 'तुलसी और उनका काव्य'। जीवन चरित्र संस्मरण - 'अशोक', 'चन्द्रगप्त', 'महात्मा बुद्ध' और 'मालवीयजी के साथ तीस दिन' । बाल साहित्य में भी उन्होंने लेखन किया है जिनमें बाल कथा कहानी, 'हिन्दी पद्य रचना', 'हंसू की हिम्मत', बताओ तो जाने', 'बुद्धि विनोद', मोतीचूर के लड्डू आदि प्रमुख है। श्री त्रिपाठीजी ने 'कविता कौमुदी', 'रहीम', 'मारवाड के मनोहर गीत', तथा 'भूषण ग्रंथावली' का संपादन कार्य भी किया है।

हिन्दी साहित्य में अपना अमूल्य योगदान देनेवाले इस महान साहित्यकार ने पौष शुक्ल एकादशी सन् 1962 में दुनिया को अलविदा किया। ऐसे महान साहित्यकार को हमारा शत् शत् नमन।

- एन. अजीत कुमार

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