Hindi Upanyas Sahitya Mein Kisan
हिंदी उपन्यास साहित्य में चित्रित किसान संघर्ष
(संजीव कृत - फाँस उपन्यास के संदर्भ में)
'देश को बचाना है, तो देशवासियों को बचाओ और शेतकरी को बचाना है, तो इन परजीवियों और दलालों को उखाड फेकों 1 पृ. 255 यह वाक्य है, उपन्यासकार और कहानीकार संजीव लिखित 'फाँस' उपन्यास का। इसे वाणी प्रकाशन ने सन 2015 में प्रकाशित किया है। इस उपन्यास में कुलमिलकर 255 पृष्ठ हैं। इस उपन्यास की विशेषता यह है कि महाराष्ट्र के विदर्भ में रहनेवाले किसानों की समस्याओं पर हिंदी प्रदेश के रचनाकार संजीव ने 21 वीं सदी में किसानों की दमनीय स्थिति पर प्रकाश डाला है।
उपन्यासकार संजीव के इस उपन्यास के बारे में प्रेम पाल शर्मा ने लिखा है, कि 'जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान' के भारत में समूचे भारतीय किसान विश्व की तुलना में कहाँ है? सन 2005 से 2016 तक कुल मिलकर पाँच लाख से कहीं ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। क्या सव्र्व्हेशन के आँकडे हमें बताते हैं? इसके आधार पर यह अनुमान लगा सकते हैं। भारत में और खासतौर से महाराष्ट्र के विदर्भ की सच्चाई वास्तविक स्थिति पर प्रकाश डालती है।
प्रेमचंद के 'गोदान' के बारे में कहा जाता है कि सन् 1931 में इसका लेखन कार्य आरंभ हुआ और सन 1936 में इसका प्रकाशन हुआ। 'गोदान' के प्रकाशन के बारे में डॉ. गोयल का मत उचित है। गोदान प्रेमचंद की मृत्यु के एक वर्ष बाद उर्दू में गोदान गदान नाम से मकतब नातिसा, दिल्ली से प्रकाशित हुआ। 'गोदान' प्रेमचंद का ही नहीं बल्कि हिंदी भाषा का श्रेष्ठ उपन्यास है। गोदान की आलोचना अपने-अपने ढंग से की है। उपन्यासकार प्रेमचंद का मानना है कि किसान एक सीधी सी बेजान और दुधारू गाय है। ऐसे किसानों को सब अपने-अपने तरीके से शिकार बनाते हैं। परंपरागत किसान होरी इस का शिकार हो जाता है। संक्षेप में 'गोदान' भारतीय किसानों का और ग्रामीण जीवन का दस्तावेज है। प्रेमचंद का यह उपन्यास मानवता का संदेश देता है। गांधीवादी प्रेमचंद किसानों के जीवन में परिवर्तन चाहते हैं।
सन 1936 से 2015 तक भारत देश में और विश्व के स्तर पर काफी परिवर्तन हुआ। किसानों के लिए सरकार की और कई योजनाएँ बनायी गईं। किंतु वास्तव में कितनी योजनाएँ किसानों के पास तक पहुँची इस प्रश्न का जवाब कोई भी देना नहीं चाहता। 'गोदान' के प्रेमचंद और 'फाँस' के संजीव अपने-अपने उपन्यासों के माध्यम से किसानों की शोषण कथा को देश विदेशों के सुजान पाठकों के सामने रखने में सफल हुए हैं।
'फाँस' उपन्यास की कथानक का आरंभ यवतमाल के बनगाँव से होता है। शिवु-शकुन अपनी कलावती और सरस्वती को पढाना चाहते हैं। लड़कियों को पढाने का मतलब है, वह गुनहगार है। उपन्यास के कथानक में कौतूहल है। राजनीति जंगल का वर्णन, जोशी-कुलकर्णी द्वारा औरतों का शोषण है। बौद्ध धर्म की दीक्षा डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के विचारों का उपन्यास के पात्रों पर स्पष्ट प्रभाव भी दिखाई देता है। किसानों का सरकार के खिलाफ आंदोलन, बिजली, पानी, कापूस, महाबीज, बीटी कॉटन, बाजार में किसानों का दलालों द्वारा शोषण, सरकारी बीपीएल योजना, कर्ज से मुक्ति के लिए आत्महत्या, मोहनदास, इगतदास वाघमारे की व्यथा-कथा, सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार, सन 2005 का सरकारी आदेश, पोस्टमार्टस का केंद्र, चौबीस घंटे खुला रहेगा, विवाह, राहत पैकेज की घोषणा, बाबा आमटे, अभय बंग, के कार्यों का जिक्र, ब्राम्हण आत्महत्या क्यों नहीं करता? धर्मांतर, आंतरधर्मीय विवाह, शिबु की आत्महत्या, कर्ज गले का फाँस, किसान आत्महत्या की श्रृंखला, बाप की आत्महत्या, बेटे की आत्महत्या करने से प्रश्न का जवाब नहीं मिलता बल्कि और भी कई प्रश्न निर्मित होते हैं। आंध्रा के किसान वेंकट, नरेंद्र दाभोलकर की हत्या, पश्चिम महाराष्ट्र और विदर्भ की गन्ना लॉबी का संघर्ष, कार्पोरेट की समस्या, आदि समस्यों को केंद्र में रखकर संजीव ने प्रस्तुत उपन्यास के माध्यम से प्रकाश डाला है।
इस प्रकार का प्रयत्न इसके पहले मराठी साहित्यकारों ने भी किया है। जैसे-किसानों की आत्महत्या, आर्थिक विषमता, भ्रष्टाचार आदि पर मराठी उपन्यासकार प्रा. सदानंद देशमुखजी ने अपने 'बारोमासा' और प्रा. सिताराम सावंतजी ने 'देशोधडी' उपन्यास के माध्यम से किसान संघर्ष आदि पर प्रकाश डाला है।
किसानों की आत्महत्यया पर कविता, कहानी, उपन्यास, फिल्मों के माध्यमों से प्रकाश डाला जा रहा है। दूसरी ओर किसानों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने के लिए कई संस्थाएँ किसानों के लिए वस्तु के साथ आर्थिक सहायता भी कर रही हैं। जैसे नाना पाटेकर और मकरंद आनासपुरे कृत 'नाम' संस्था।
आज का किसान कर्ज, मर्ज, सुखों के बीच में फँसा है, इसपर कोई न कोई कारगर उपाय होना चाहिए, जिससे आत्महत्या का सिलसिला खत्म हो जाएगा।
संदर्भ सूची :
1. 'फाँस' - संजीव
2. हिंदी के महाकव्यात्मक उपन्यास-डॉ. शंकर वसंत मुदगल
3. देशोधडी - प्रा. सिताराम सावंत
- प्रा. डॉ. बलवंत बी. एस.
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