Tum... Aur December Hindi Poem by Stuti Rai : Kavita Kosh
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तुम...... और दिसंबर
तुम...... और दिसंबर
तुम्हें पता है
तुम मुझे दिसम्बर की बारिश की तरह मिलें
बिल्कुल अचानक
तुम्हारे साथ हर सफ़र पर जाना
मुझे ऐसा लगता था
जैसे मानसून में पिघलती बर्फ
पहाड़ों से बारिश के साथ
नदी बन मैदान की तरफ भागती है
ठीक वैसे ही दिसम्बर आतें आतें
समा जाना चाहतीं हूं वहीं कहीं
तुम्हारे भीतर,
तुम्हें पता है
तुम मुझे दिसम्बर की
कोहरे भरी रात की तरह लगते हों
बिल्कुल शांत
उदासी से भरें हुए
मुझे लगता है
जिस दिन मैंने तुम्हें गले से लगाया
तुम अपनी सारी पीड़ाओं, सारे भटकाव से थके
फफक पड़ोगे,
तुम्हें पता है
तुम्हारी हंसी मुझे
दिसम्बर की दोपहर में गुलाबी ठंड के साथ चलतीं
हवा लगती है
धुप में गुनगुनी और छांव में गलन पैदा करती,
तुम्हें पता है
तुम्हारा यूं मुझसे मिलने, बातें करने और
देखने का इंतजार करना
बिल्कुल ऐसा लगता है
जैसे कोई जून की तपती दोपहरी में बैठकर
दिसम्बर की ठंड का इंतजार कर रहा हों,
तुम्हें पता है
तुम बिल्कुल मुझे
दिसम्बर जैसे लगते हों
जिसकी सुबह - शाम की ठंड
चेहरे पर मुस्कुराहट लातीं है
और इसकी दोपहर
तुम्हारे विश्वास की तरह
गर्माहट लातीं है,
सुनो
तुम बिल्कुल दिसम्बर की तरह हों।
- स्तुति राय
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