World Hindi Day Special : Hindi Journalism
10 जनवरी 2025 अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस पर विशेष आलेख विश्व में हिंदी पत्रकारिकता का बदलता परिवेश (Hindi Journalism) Hindi Patrakarita
विश्व हिंदी दिवस पर विशेष : विश्व में हिंदी पत्रकारिता बदलता परिवेश
विश्वभर में हिंदी विस्तार भाषा की दृष्टि से यह निश्चित रूप से बहुत महत्वपूर्ण समय है। एक समय था जब विदेशों में भारत के संबंध में शोध और अध्ययन सिर्फ विद्वान किया करते थे। परन्तु आज भारत एक उभरती हुई विश्वशक्ति है। ऐसे में भारत के बारे में अधिक से अधिक जानने की अभिरुचि अधिकांश देशों के सामान्य लोगों में बढ़ रही है। लोग भारत की सभ्यता, संस्कृति, समाज, अर्थव्यवस्था और भारत की भाषा के संबंध में जानना चाहते हैं। वर्तमान समय में भारत के बाहर विश्व के लगभग एक सौ साठ विश्वविद्यालयों में हिन्दी की विधिवत शिक्षा दी जा रही है। इस प्रकार हिन्दी अब अपनी वैश्विकरण के साथ-साथ विश्वभर में विस्तृत हो रही है।
यह उल्लेखनीय है कि जापान, रूस जैसे देशों की तकनीकी प्रगति का एक कारण उनके तकनीकी साहित्य का आधार अंग्रेजी नहीं बल्कि उनकी अपनी भाषाएं क्रमशः जापानी और रूसी हैं। विश्व के अधिकांश देशों में अंग्रेजी का प्रभाव होने के बावजूद इन देशों ने अपनी भाषा के माध्यम से तकनीकी शिक्षा प्रदान कर अपना राष्ट्रधर्म निभाया है। संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आज जापान की प्रगति उसे अमेरिका जैसे शक्तिशाली राष्ट्र के समकक्ष ला खड़ा करती है। इसी प्रकार रूस ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में अपना लोहा सारे विश्व में मनवाया है। भारत को भी अपने राष्ट्र के विकास के लिए नवीनतम प्रोद्योगिकीय जनभाषा हिन्दी में उपलब्ध करानी चाहिए। हिन्दी को राजभाषा के साथ-साथ तकनीकी जानकारी की सशक्त भाषा बनाने के लिए अनुवाद एक सुगम मार्ग है। अनुवाद के द्वारा विश्व की नवीनतम जानकारी हिन्दी में उपलब्ध कराई जा सकती है।
हिन्दी की एक महत्वपूर्ण विशेषता रही है कि उसने अपना विकास स्वयं अपने बलबूते पर तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप मिलकर किया है। विभिन्न जनभाषाओं के संगम से विकसित हुई हिन्दी की पैठ देश के बड़े भाग में है। आज भी भारत के अधिकांश भाग में हिन्दी को समझा और बोला जाता है। हिन्दी की जीवंतता उसकी व्यापकता के ही कारण है। "पत्र पत्रिकाएँ, भाषा एवं साहित्य के विकास के आधार होते हैं पत्र पत्रिकाओं के व्दारा सामाजिक संचेतना जागरूक होती है ये चेतना सामाजिक परिवर्तन को ले आती है।"। भूमंडलीकरण के वर्तमान युग में भी हिन्दी की अनिवार्यता और आवश्यकता बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा महसूस की जा रही है। विदेशी सरकारें भी भारत में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने और जनसंवाद स्थापित करने के दृष्टिकोण से आज कल बहुत कुछ कर रही हैं। विभिन्न विदेशी संचार माध्यम विशुद्ध हिन्दी में प्रसारण करते हैं। रेडियो तेहरान, जापान रेडियो, चायना रेडियो इंटरनेशनल आदि अनेक विदेशी रेडियो स्टेशनों से नियमित हिन्दी के कार्यक्रम प्रसारित किए जाते हैं।
यहाँ पर देश विदेश के शब्दों में परिवर्तन और मानक रूप का चित्रण भी किया गया है। विदेशी भाषाओं के शब्द एक चुनौती भाषा की भी है। आजकल भाषा में थोड़ी लापरवाही देखने को मिल रही है। यह इसलिए है क्योंकि इसका क्षेत्र बहुत ही विस्तार है और कोई सीमा नहीं होती। तरह-तरह के उपमानक रूपों के कारण एक सही मानक रूप क्या होगा, इसकी पहचान की कठिनाई भी है और इसके प्रति जो सजगता होनी चाहिए, वह नहीं है। पर इस एक कमी को छोड़ दें तो समाचारों के प्रति, विषयों के चयन के प्रति और देश के संस्कारों के अनुकूल, देश के सामर्थ्य के अनुकूल, देश के स्रोतों के अनुकूल सजगता बहुत अधिक है।
विभिन्न देशी-विदेशी भाषाओं के वे शब्द जो हमारी भाषाओं में रच-बस गए हैं, अपनाए जाने चाहिए, लेकिन वाक्यों के क्रियापदों को हिन्दी कर देने मात्र से हिन्दी नहीं हो जाती। यह भाषिक-सरलता नहीं, भाषिक-अराजकता है। ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले समय में सूचना प्रौद्योगिकी का और अधिक विस्तार होगा। एक प्रकार से सूचना प्रौद्योगिकी भविष्य में संचालक, नियंत्रक और नियामक की भूमिका निभाएगी। सारे कार्यकलाप कम्प्यूटर आधारित विकसित प्रौद्योगिकी पर निर्भर होंगे। इस संभावित परिदृश्य में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण पक्ष विकसित प्रौद्योगिकी को आत्मसात करने का होगा।
कम्प्यूटर के माध्यम से किसी भी भाषा के प्रयोग के प्रसंग में मानकीकरण का प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भाषा में वर्णाकृति, शब्दाकृति एवं कुंजीपटल का मानकीकरण आवश्यक होगा। वर्णाकृति और शब्दाकृति में मानकीकरण के साथ कुंजीपटल में मानकीकरण आसान हो जाएगा। देवनागरी लिपि उच्च ध्वन्यात्मक क्षमता से सम्पन्न है। अतः इस मानकीकरण में को कठिनाई नहीं होनी चाहिए। विश्व हिन्दी सम्मेलनों के द्वारा आज के बदलते परिवेश में हिन्दी के विस्तार और विश्वरूपी प्रगति से संबंधित महत्वपूर्ण उपाय सुझाए गए हैं। विश्व हिन्दी सम्मेलन की एक प्रमुख मांग है कि संयुक्त राष्ट्रसंघ की अधिकारिक भाषाओं में हिन्दी को भी स्थान दिया जाना चाहिए क्योंकि हिन्दी आज विश्वव्यापी भाषा बन चुकी है और इसके बोलने वालों की संख्या अंग्रेजी बोलने वालों से भी अधिक है। बदलते हुए वैश्विक परिवेश में आज भारत के बाहर तो निश्चित रूप से हिन्दी के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण हो रहा है। इस प्रकार नई खोजों, नए आविष्कारों एवं नवीन तकनीकी की जानकारी जनसामान्य को जनभाषा हिन्दी में उपलब्ध कराई जा रही है। भूमंडलीकरण और औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप अन्य भाषाओं के शब्दों का आदान- प्रदान भाषा को शक्ति और समृद्धि प्रदान करते हैं। साथ ही इस युग में बहुभाषी होना अनिवार्यता बन चुकी है किन्तु हिन्दी भाषा की अस्मिता बचाए रखना हर भारतीय का कर्तव्य है। इस संदर्भ में महादेवी वर्मा का कथन अत्यंत महत्वपूर्ण है-"हम अक्सर राष्ट्रसंघ की बातें करते हैं। बिना अंतरराष्ट्रीय हुए हम जी नहीं सकते और राष्ट्रीय होने की हमें चिंता नहीं है। अंतरराष्ट्रीय वही हो सकता है जिसकी राष्ट्र में जड़े हों। जिसकी राष्ट्र में जड़ ही नहीं है, वह क्या अंतरराष्ट्रीय होगा।"2 इससे स्पष्ट होता है कि हिन्दी भाषा न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि साथ ही साथ अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी छाप लगाकर ऊंची स्थान प्राप्त कर चुकी है।
- डी. मौलाली
ये भी पढ़ें; हिंदी दिवस : राष्ट्रीय हिंदी दिवस और विश्व हिंदी दिवस | Hindi Diwas