World Hindi Diwas 2024 : हिन्दी के प्रति अन्याय आखिर कब तक?

Dr. Mulla Adam Ali
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World Hindi Diwas : Vishwa Hindi Diwas

How long will the injustice towards Hindi last?

विश्व हिंदी दिवस पर विशेष : हिन्दी के प्रति अन्याय आखिर कब तक?

हिन्दी का जन्म इस गौरवमयी भारत भूमि के उदर से हुआ है, इसलिए इस में भारत की आत्मा बसती है। हिन्दी की वाणी में भारत बोलता है, भारतीय संस्कृति बोलती है। भारत की राष्ट्रभाषा वही हो सकती है, जिसमें भारत की आत्मा बोलती हो, जो भारतीयता का प्रतीक हो, जिसके एक-एक शब्द में माँ के प्रति अटूट श्रद्धा हो भारत की भारतीयता हिन्दी में है, उसके एक-एक अनुच्छेद में है, एक-एक वाक्य में है, एक-एक शब्द में है। क्यों न हो वह इसी धरती से जन्मी भारत माँ की पुत्री है। इसलिए हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा बनने की सच्ची अधिकारिणी है।

हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा के 324 सदस्यों में से 312 ने हिन्दी के पक्ष में मतदान करके इस आशा को चरितार्थ भी किया। संविधान निर्माताओं ने संविधान के अनुच्छेद 343 के अंतर्गत हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। हिन्दी को यह सम्मान इसलिए नहीं मिला कि इसका साहित्य अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य से श्रेष्ठ है या यह भाषा सबसे प्राचीन भाषा है। हिन्दी को यह सम्मान इसलिए दिया गया क्योंकि भारत में इस भाषा को बोलने वाले और समझने वालों की अन्य भाषाओं की तुलना में अधिक है। मातृभाषा के रूप में इसका व्यवहार क्षेत्र सर्वाधिक है और दूसरी भाषा के रूप में भी बोलने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है।

आज भारत की आबादी की 90% जनता हिन्दी बोलते और समझते हैं, बल्कि विश्व में भाषाई दृष्टि से हिन्दी बोलने वालों की संख्या विश्व में दूसरे स्थान पर है, किन्तु अंग्रेजी टट्टुओं के खातिर सन् 1965 तक अंग्रेजी को मुख्य राजभाषा और हिन्दी को सहायक राजभाषा करदी गई और बताया गया की सन् 1965 तक हिन्दी संघ की राजभाषा हो जायेगी और अंग्रेजी सहायक भाषा के रूप में रहेगी। साथ ही संविधान में अनुच्छेद 343 खण्ड 3 अधिकरण कर दिया गया जिस के द्वारा अंग्रेजी भाषा प्रयोग जब तक होते रहेगा तब तक उसे प्रयोग करने की अवश्यकता हो, यही हमारा दुर्भाग्य है कि आज तक भी हमारी राष्ट्रभाषा बन कर भी राजकार्य के लिए नसीब न हुई।

आज 1 सौ 20 करोड़ की आबादी में केवल 5% जनता ही अंग्रेजी बोलते हैं या समझते हैं। आम जनता तो इस से कोसो दूर है। इस के बावजूद भी भारत सरकार अंग्रेजी को राजकार्य के लिए प्रयोग कर रही है। एक ओर हिन्दी विश्व के स्तर पर मानव मूल्यों को वहन करने वाली व्यापक भाषा के रूप में विश्व के पटल पर अपना स्थान बनाती जा रही है। यही नहीं बल्कि एक करोड़ बीस लाख भारतीय के लोग विश्व के 132 देशों में बिखरे हुए हैं, जो आधिकांशतः हिन्दी से परिचित ही नहीं, उसे व्यवहार में भी लाते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार आज भारत के 60 लाख लोग विदेशों में हैं।

इस प्रकार देखा तो हिन्दी जानने वालों की संख्या अंग्रेजी भाषा से कहीं अधिक संख्या में ही है। इस बात से भी आँका जा सकता है कि आज विश्व के 135 विश्वविद्यालयों में हिन्दी का पठन-पाठन और शोधकार्य भी हो रहा है। साथ ही साथ सृजनात्मक साहित्य की रचना भी हो रही है। किन्तु हमें अत्यंत खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि विश्व भर के देशों ने हिन्दी भाषा को जानकर उसे गौरव और सम्मान दे रहीं है। दूसरी ओर हमारी भारत सरकार हिन्दी को धृतराष्ट्र की नजर से देख रही है। आज हर सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के स्थान पर अंग्रेजी भाषा में पत्राचार किया जाता है। चाहे वह डाकखाना हो, चाहे बैंक चाहे रेल्वे कार्यालय हो, हर जगह अंग्रेजी का प्रयोग होता है। यह सरकार की द्वंद नीति है। एक ओर कहती है कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा है और दूसरी ओर अंग्रेजी को बढ़ावा देती है। जब तक सरकार इस विषय पर ठोस कदम नहीं उठायेगी तब तक हिन्दी भाषा का विकास नहीं हो सकेगा।

बाबू हरिश्चन्द्र जी कहते है 'निज भाषा उन्नति आहे सब उन्नति का मूल।' हम अपनी भाषा की उन्नति करने के बजाए अंग्रेजी की उन्नति कर रहे हैं। इसी बात को ही दृष्टि में रख कर एनिबेसेन्ट ने कहा 'मातृभाषा के अभाव ने भारत को निश्चय ही विश्व के सभ्य देशों में अत्यंत अज्ञानी बना दिया है' शायद उनका कहना ठीक ही है, क्योंकि हम अपनी भाषा नहीं बोलते हैं, विश्व में हर वो देश उन्नति के शिखर पर पहुँचा है जो अपनी राष्ट्रभाषा का प्रयोग किया है। विश्व भर में कोई ऐसी भाषा नहीं है, जो हिन्दी साहित्य के सामने खड़ा उतरे। इतना समृद्ध साहित्य रखने के बावजूद भी संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O) में हिन्दी भाषा को स्थान नहीं दिया गया। स्थान मिलता भी कैसे देश की सरकार ही हिन्दी भाषा के प्रति अन्याय करती हो तो, हम उनसे क्या आशा कर सकते हैं?

उसी प्रकार आज हमारे आंध्रप्रदेश में हिन्दी भाषा की स्थिति को देखते हैं तो हिन्दी प्रेमियों के आँखों से आँसू टपक ने लगते हैं। आँध्रप्रदेश का अवतरण जब हुआ हिन्दी को चौथी कक्षा से पढ़ाया जाता था और अंग्रेजी को पाँचवीं कक्षा से । फ़िर सरकार ने हिन्दी को पाँचवीं कक्षा तथा अंग्रेजी को छठवीं कक्षा से करवाया।

फ़िर सरकार ने यहाँ पर भी अपनी चाल चलदी पाँचवीं कक्षा से हिन्दी को हटाकर छठवीं कक्षा से कर दिया और अंग्रेजी को पाँचवीं कक्षा से पढ़ाना आरंभ करवाया। यहाँ पर भी हिन्दी को अन्याय सहना ही पड़ा। त्रिभाषा सूत्र के अनुसार आंध्रप्रदेश में हिन्दी को द्वितीय भाषा के रूप में और अंग्रेजी को तृतीय भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है। र्भाग्य देखिए जो विदेशी भाषा है तृतीय भाषा कहलाती है उसे दसवीं कक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए 35 अंक रखा गया। जो हमारी अपनी देश की भाषा है साथ ही हमारी राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा है उसे उत्तीर्ण होने के लिए केवल 20 अंक रखा गया है। यह कहाँ का न्याय है ? क्या वास्तव में हिन्दी, अंग्रेजी भाषा से कठिन है ? यह कहना असंभव होगा क्योंकि विश्व में सबसे सरल भाषा कोई है तो वह केवल हिन्दी भाषा ही है। फ़िर क्यों हिन्दी भाषा के प्रति ये अन्याय ? सन् 1985 में प्रादेशिक मुख्यमंत्री श्री एन.टी. रामाराव जी ने G.O.MS NO.525 जारी करके हद ही कर दी, उन्होंने हिन्दी को छठवीं कक्षा से हटाकर 8वीं कक्षा से पढ़ाने का आदेश दिया था। जिससे उस समय हिन्दी अध्यापकों को अपने मुलाजिमतों से हाथ धोना पड़ा। साथ ही बेरोजगार नवयुवकों की आशाओं पर पानी फेरा। इसके विरुद्ध में सेवानिवृत्त चीफ जस्टिस तथा हैदराबाद राज्य के प्रथम शिक्षामंत्री श्रीमान गोपालराव एकबोटे जी की अध्यक्षता में हिन्दी रक्षण समिति का निर्माण हुआ। यह समिति समय-समय पर राज्य सरकार का सामना करती रही। दिनांक 13 फरवरी 1985 में हिन्दी प्रचार सभा के रजत जयंती के अवसर पर उस समय के राज्यपाल सुश्री कुमुदबेन जोशी ने इस बात पर जमकर विरोध करते हुए कहा कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा का वास्तविक दर्जा दिलाने और इसके विकास के लिए दृढनिश्चय तथा लगन के साथ प्रयास जारी रखने को कहा। हिन्दी प्रचार सभा, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा और हिन्दी रक्षण समिति के सफलीकृत प्रयासों से पुनः प्रादेशिक मुख्यमंत्री श्री मरीं चेन्ना रेड्डी जी ने छठवीं कक्षा से हिन्दी को पढाने का आदेश जारी किया। किन्तु यहाँ पर भी हिन्दी की दुर्दशा खत्म नहीं हुई। आज सरकार की योजना के अनुसार सत्र 2012-2013 से तृतीय भाषा अंग्रेजी को प्रथम कक्षा से ही पढाने का आदेश देने वाली है क्या आन्ध्र सरकार को त्रिभाषा सूत्र का ज्ञान नहीं है या फिर हिन्दी भाषा से प्रेम नहीं है ? यदि राज्य सरकार चाहती तो द्वितीय भाषा हिन्दी को तीसरी कक्षा से पढाने का आदेश दे सकती है, लेकिन जो तीसरी भाषा है अंग्रेजी उससे इन्हें अभिमान है। लेकिन अपनी देश की तथा राजभाषा से प्रेम नहीं है?

इन सभी मुद्दों को उस्मानिया विश्वविद्यालय के छात्रों ने श्रीकृष्णा कमेटी को दिनांक 17-05-2010 को खुलासा करते हुए याचिका दी। कमेटी ने भी इस बात को स्वीकार किया और अपनी रिपोर्ट को दिनांक 07-01-2011 को प्रेषित की जिसमें हिन्दी के प्रति आंध्रप्रदेश में हो रहे अन्यायों को भी अपनी रिपोर्ट में जगह दी। इसके बावजूद भी सरकार की आँखे न खुली और इसके बदले में अंग्रेजी भाषा को प्रथम कक्षा से ही पढाने को निश्चय कर रही है। आज अंग्रेजी के समान हिन्दी को भी पढाने की अत्यधिक आवश्यकता है। क्योंकि हिन्दी जन संपर्क की बोलचाल की भाषा तथा राष्ट्रीयता को जोड़ने वाली भाषा है।

आज आंध्रप्रदेश में हिन्दी जीवित है तो केवल हिन्दी संस्थाओं से। आज सरकार की राजनीति इस प्रकार हो रही है कि हिंदी अध्यापकों तथा हिन्दी प्राध्यापकों की नियुक्ति कम करदी है। जिस के द्वारा हिन्दी अपने आप ही ख़त्म होगी। जिस के द्वारा आज परिस्थिति ऐसी हो गयी है कि हिन्दी अध्यापक प्रशिक्षण संस्थायें बन्द होने के कगार पर है। इस बात पर हिन्दी प्रेमियों को सोचना होगा। जो हिन्दी भारत को आजादी दिलायी उसी हिन्दी को बचाए रखने के लिए आज हमें ठोस कदम उठाने होंगे। फ़िर एक बार हिन्दी प्रेमियों को जागना होगा और हिन्दी को पूर्ण वैभव दिलाना ही होगा।

- शेख सादिख पाषा

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