Kamaleshwar Ke Upanyas Mein Yug-Bodh
कमलेश्वर के उपन्यासों में युग-बोध
कमलेश्वर स्वातंत्र्योत्तर युग के प्रमुख हिन्दी उपन्यासकार हैं। कमलेश्वर ने बारह उपन्यास लिखे। वे 'एक सड़क सत्तावन गालियाँ' (1961), 'डाक बंगला' (1962), 'लौटे हुए मुसाफिर' (1963), 'तीसरा आदमी' (1976), 'समुद्र में खोया हुआ आदमी' (1965), 'काली आँधी' (1974), 'आगामी अतीत' (1976) 'वही बात' (1980) 'रेगिस्तान' (1988) 'सुबह दोपहर शाम' (1992), 'कितने पाकिस्तान (2000) एवं 'और एक चन्द्रकान्ता' आदि जिनमें विषयगत वैविध्य पाया जाता है। उन्होंने अपने उपन्यासों में युग जीवन के सार्थक प्रतिबिंब को दर्शाया है। युग-बोध की व्यंजना की दृष्टि से उनके उपन्यास अत्यंत मूल्यवान हैं। 'युग-बोध' का अर्थ है "समसामयिक परिस्थितियों का परिज्ञान।" उनके उपन्यासों की कथावस्तु निम्न मध्यवर्ग के जीवन की समस्याओं से जुड़ी हुई है। उन्होंने सदैव अपने युग की समस्याओं से जुडे मानवीय पक्ष को अपनी रचनाओं का आधार बनाया है। अपनी निजी समझ एवं प्रतिभा से युग विशेष की विभिन्न प्रवृत्तियों का उद्घाटन अपनी रचनाओं में उन्होंने किया है।
स्वतन्त्रता के बाद हर क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण जीवन मूल्यों में विघटन हुआ है। पारिवारिक संबंधों में आए इस बदलाव को कमलेश्वर ने अपने उपन्यासों में बोध के अनुरूप उद्घाटित किया है। 'तीसरा आदमी' उपन्यास में तीसरे की उपस्थिति के कारण संबंधों में विघटन का उल्लेख हुआ है। नरेश और चित्रा के बीच हुआ। नरेश के रिस्ते का भाई सुमन्त, नरेश और चित्रा के बीच के संबंध-विच्छेद का कारण बनता है। फलस्वरूप नरेश अपने पारिवारिक जीवन से पलायन कर पूर्ण रूप से टूट जाता है। आखिर हताश होकर कई बार विघटित संबंधों को फिर से जुडाने को चाहता है लेकिन वह हार जाता है। 'काली आंधी' उपन्यास में वर्णगत भेदभाव तथा पत्नी की महत्वकांक्षा के कारण दाम्पत्य संबंधों में आए अलगाव तथा पारिवारिक जीवन की विसंगतियों को दर्शाया गया है। 'आगामी अतीत' उपन्यास में वर्गगत भेदभाव से बिखरते पति-पत्नी के संबंधों को चित्रित किया गया है। 'समुद्र में खोया हुआ आदमी' में आर्थिक अभाव से बिगड़ते पारिवारिक संबंधों को, कमलेश्वर ने युगारूप यथार्थ दृष्टि से दर्शाया है। कमलेश्वर ने 'समुद्र में खोया हुआ आदमी' उपन्यास में आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिता और संतान के संबंध में उत्पन्न खोखलेपन को दर्शाया है। समकालीन परिस्थितियों में आए बदलाव के कारण माँ और संतान के संबंधों में दरारों का यथार्थ चित्र उभारने में उपन्यासकार सफल हुए।
स्वतंत्रता के बाद नारी मानसिकता में युगानुरूप आए परिवर्तनों को कमलेश्वर ने अपने उपन्यासों में खूब दर्शाया है। 'सुबह दोपहर शाम' उपन्यास में संतों को एक वीरांगना के रूप में दर्शाया है, जो अपने देश एवं ससुराल की प्रतिष्ठा के लिए तथा देवर की जान की रक्षा के लिए अंग्रेजों से और अपने पति से भी लड़ती है। वह अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तिव की धनी है। जब संतों का पति अंग्रेजों से अपने क्रांतिकारी भाई नवीन का पता बता देता है। तो संतों पति पर क्रुद्ध होकर इस प्रकार खुल्लम खुल्ला कह देती है कि "देखो.... तुम मेरा सुहाग जरूर हो, लेकिन.... देश के लिए कलंक हो ।" इस तरह एक दूसरी लक्ष्मीबाई बनकर संतों अपने देवर की, ससुराल की तथा देश की जान एवं मान बचाती है अर्थात यह निरूपण करती है कि आज की नारी, अबला नहीं सबला है। 'लौटे हुए मुसाफिर' उपन्यास की नसीबन साम्प्रदायिक भेद-भाव वालों के बीच मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए बेचैन दिखाई देती है। उसके मन में जातीय भेद-भाव नहीं, बल्कि 'मानव सब एक है' ऐसी भावना होती है।
पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कारों के अन्धानुकरण के कारण वर्तमान जीवन में नैतिक मूल्यों का पतन हो रहा है। इसका प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में स्पष्ट दिखाई पड़ता है। स्वतंत्रता के बाद पहले से कई गुना ज्यादा समाज में नारी का शोषण हो रहा है। 'आगामी अतीत' उपन्यास में आधी रात में माँ की लाश के पास पागल खाने में बैठी चाँदनी को बेटी कहकर जो सांत्वना देने का बहाना करता है, वही उस पर बलात्कार करता है। पुरुषों के अमानवीय एवं पशु से भी हीन व्यवहार को कमलेश्वर ने पर्दाफाश किया है। आज भी सामाजिक व्यवस्था इतनी गिरी हुई है कि अकेली नारी का जीना दुर्भर है। 'डाक बंगला' उपन्यास में इरा पति द्वारा परित्यक्ता हो जाने पर लाचार होकर जीने के लिए शरीर का धन्धा अपनाती है। इस तरह नारी शोषण का शिकार बनी हुई है। वर्तमान युग में मूल्यों का पतन होने लगा। अर्थ संस्कृति के प्रभाव के कारण मानवीय संबंध महत्वहीन होते जा रहे हैं।
लोग भले-बुरे की चिन्ता किए बिना अपने स्वार्थ लाभ एवं पूँजी कमाने की चिन्ता से हर तरह के काम करने लगे हैं। साधु-सन्त भी इसके अपवाद नहीं है। 'एक सड़क सत्तावन गलियाँ' उपन्यास में धर्मशाला के अन्दर 'कलंकी अवतार कृष्ण' को देखने का अवसर केवल नारियों को दिया जाता है। धर्म के नाम पर वहाँ असभ्य व्यवहार होते हैं। श्रद्धालु एवं परम भक्त गेंदा व्यभिचार एवं नारियों की बिक्री का धन्धा करता है। 'लौटे हुए मुसाफिर' का जुम्मन साई जातीय भेद-भाव एवं संकीर्ण धार्मिक विचार रखनेवाले ढोंगे संतों का सच्चा प्रतीक है। कमलेश्वर ने समकालीन राजनीतिक विसंगतियों पर तीखा व्यंग्य किया है। उनके 'सुबह दोपहर शाम' उपन्यास में स्वंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के विरुद्ध हुए क्रांतिकारी आन्दोलन का उल्लेख हुआ है। अंग्रेजों के शासन से मुक्ति पाने के लिए एक ओर देश में स्वंतत्रता संग्राम होते हैं तो दूसरी ओर क्रांतिकारी आंदोलन । 'डाक बंगला' उपन्यास की नायिका इरा के पति विमल उसे छोड़ने के बाद क्रांतिकारियों के साथ काम करता है। कई दिनों के बाद पता चलता है कि "वह आंध्र में क्रांतिकारियों के साथ है और वही कहीं पकड़ा गया है।" कई सालों बाद जेल से छूटकर वह इससे मिलता है और दोनों फिर से नई जिंदगी शुरु करते हैं। 'एक सड़क सत्तावन गलियाँ', उपन्यास में कमलेश्वर के समाजवादी स्वर मुखरित हैं। इसका उद्घाटन उन्होंने सरनाम सिंह के द्वारा किया है। इस प्रकार देश की आम जनता की उन्नति एवं खुशहाली के लिए समाजवाद की स्थापना पर उपन्यासकार बल देते हैं।
कमलेश्वर ने 'लौटे हुए मुसाफिर' उपन्यास में विभाजन के पूर्व, वर्तमान तथा भविष्य की यथार्थ स्थिति का चित्रण किया है। स्वतंत्रता के पूर्व चिक्वों की बस्ती में हिन्दु एवं मुसलमान एक परिवार के सदस्य के जैसे रहते थे। लेकिन नफरत की आग उस बस्ती को भस्म करती है। विभाजन के पश्चात बस्ती उजड़ जाती है। लेकिन खेद की बात यह है कि लोग पाकिस्तान नहीं पहुँच पाते, वे बेसहारा भटकते रहते हैं। "लाहौर-बाहौर कहीं नहीं, वे फिरोजाबाद में वक्त काट रहे हैं। वहीं है बाल-बच्चों समेत, वहीं रोजनदारी पर काम करके जैसे-जैसे पेट भर रहे हैं।" आज़ादी के कई सालों बाद भी विभाजन की विभीषिका से लोग छुटकारा नहीं पाये। आज़ादी के बाद जिन नेताओं ने शासन का बागडोर संभाला। उन्होंने वायदे तो किए, पर स्वतंत्रता का सही अर्थ जनता को नहीं दे पाए। 'लोकतंत्र' का सपना केवल सपना मात्र रह गया। राजनीतिक मूल्यों का तेजी से विघटन हुआ, गाँधीजी के रूप में जो दृष्टि मिली थी, वह धीरे-धीरे ओझल होती गई। गाँधीवादी आदर्शों के पतन की अभिव्यक्ति कमलेश्वर ने 'रेगिस्तान' उपन्यास में किया है। स्वतंत्र भारत में कई बार चुनाव हुए हैं। लेकिन साधारणतः मतदाता विभिन्न पार्टियों के हाथ की कठपुतली बनकर अपने मताधिकार का दुरुपयोग कर रहा है। कमलेश्वर ने समकालीन भ्रष्ट, अवसरवादी राजनीति पर व्यंग्य किया है। 'काली आँधी' उपन्यास में मालती के माध्यम से लोकसभा चुनाव एवं उससे संबंधित गतिविधियों का पर्दाफाश किया गया है। मालती, पदलिप्सा से ग्रस्त होती है। इसके लिए वह सब परंपरागत मान्यताओं को तोडने को तैयार होती है। चुनाव जीतने के लिए जातीय भेद-भाव पर बल देते हुए कहती है "देखिए, इस चुनाव क्षेत्र में बनियों की असलियत है। खास तौर से शहरी इलाके में। गाँव में जो इलाके हमारे क्षेत्र में हैं, उनके गरीब किसानों को भी यही बनिए जरूरत पर रुपया वगौरह कर्ज देते हैं यानी उन इलाकों में भी इनकी बाँहें फैली हुई है। इसलिए जरूरी है कि बनियों के बीच से भी कोई कैण्डीडेट इस चुनाव में खड़ा हो...।" इस प्रकार मालती जीत हासिल करने के लिए अत्यंत कुशलता से जातीय भेद-भाव पर बल देते हुए हर एक कदम बढ़ाती है।
प्रत्येक देश की प्रगति देश की आर्थिक व्यवस्था पर आधारित होती है। युद्ध, विभाजन, स्वतंत्रता और औद्योगीकरण से उत्पन्न परिस्थितियों से आर्थिक युगबोध बदलती है। स्वतंत्रता के पश्चात देश की प्रगति एवं विकास तथा लोगों की खुशहाली के लिए अनेक योजनाएँ बनाई गई लेकिन ये सब योजनाएँ मात्र रह गई। फलस्वरूप कम आय प्राप्त लोगों की स्थिति दिन-दिन बढ़ती महँगाई से दुभर हो गई है। महानगर दिल्ली में आर्थिक अभाव से दूसरा मकान न ले सकनेवाले बदकिस्मत पति का चित्रण कमलेश्वर ने 'तीसरा आदमी' उपन्यास में किया है। नरेश इलाहाबाद से तबादला होकर दिल्ली में पत्नी समेत आ जाता है तो रिश्ते का भाई सुमंत के एक कमरेवाले मकान में उसके साथ रहता है। "हम तीनों लेट जाते हैं बीच में मैं, दाहिनी ओर कुछ दूर पर सुमंत और बाई ओर पास ही सटी हुई चित्रा।" महानगर दिल्ली में एक कमरेवाले मकान में दमघुटने वाले वातावरण में रहने की दुर्भर परिस्थिति का यथार्थ चित्रण हुआ है। आर्थिक अभाव के कारण आवास की समस्या को कमलेश्वर ने 'समुद्र में खोया हुआ आदमी' में भी उभारा है। श्यामलाल का परिवार महँगाई एवं आर्थिक अभाव से टूटकर बिखर जाता है। इसमें कमलेश्वर ने विशेषकर महानगरों की आवास, मध्यवर्ग की लाचारी तथा धन के अभाव का यथार्थ चित्रण युगानुरूप उद्घाटित किया है। समाज में उच्च वर्ग के लोग, मध्यवर्ग के अकलमंद एवं कुशल नौजवानों को खरीदकर, हाथ का खिलौना बनाकर अपने स्वार्थ- लोभ के लिए इस्तेमाल करते थे। यह तो असल में उनका शोषण ही है। कमलेश्वर के 'अगामी अतीत' उपन्यास में उच्चवर्ग की आर्थिक मनोवृत्ति तथा मध्यवर्ग के प्रति उनका व्यवहार प्रकट किया गया है।
समग्रतः विवेचन करने पर विदित होता है कि कमलेश्वर ने अपने उपन्यासों में समकालीन सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक स्थितियों और समस्याओं की सटीक अभिव्यक्ति की है।
- जे. के. एन. नाथन
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