Maha Shiv Yogini : Akka Mahadevi
महा शिव योगिनी : अक्का महादेवी
सर्व प्रथम स्त्रीवादी तथा स्त्री-स्वातन्त्र्य के लिए प्रयास करने वाली प्रथम महिला है, "अक्का महादेवी"। इन्होंने देव चेन्नमल्लिकार्जुन को ही अपना पति मानकर अपने आप को महाभक्तिन साबित किया है। हिन्दी साहित्य में मीरा के समान इन्होंने भी भक्ति में डूबकर भगवान की लीला में अपने आप को सम्मिलित कर लिया है। उनका जीवन स्वयं एक श्रेष्ठ काव्य है। उनका वचन साहित्य सरल, सुंदर, सुमधुर भाव तथा वैचारिक संपदा से कन्नड़ जन मन में लोकप्रिय है।
कवि विरूपाक्ष पंडित के अभिप्राय में भी अक्का महादेवी पार्वती की अंश है। 'उड़तड़ि' प्रांत के निर्मलशेट्टी और शिवदेवी की लाड़ली पुत्री ही महादेवी है। शिव पूजा में आसक्त वीरशैव दंपति के शरण के मार्ग में महादेवी आगे बढ़ती है। सदा सर्वदा शिवनाम, शिव पूजा में निरत रहती है। महादेवी के पहनावा ओढ़ावा, गले में लिंग, मस्तक पर भस्म, गंध, गले में रूद्राक्ष आदि भक्ति भाव के द्योतक थे।
महादेवी अपने माँ-बाप के साथ रोज गुरू लिंगदेव मठ प्रवचन सुनने जाती थीं और गाँव के सामने जो परदेशी मल्लय्या का मंदिर है वहाँ जाकर लिंग की पूजा करती थीं। गुरूलिंग महादेव मूलतः श्रीशैल खासामठ के थे। वे उड़तड़ि से श्रीशैल जाया करते थे, और वहाँ के ज्योतिरलिंग श्रीमल्लिकार्जुन के दर्शन करके लौटते थे। तब महादेवी गुरूसिंहदेव मठ जाकर श्रीशैल मठदर्शन के बारे में कई प्रकार के प्रश्न करती थीं। गुरू की अमृत वाणी से श्रीशैल पहाड़ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन सुनती थीं। मन में ही श्रीशैल पहाड़ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन सुनती थीं। मन में ही श्रीशैल मल्लिकार्जुन दर्शन की आकांक्षा उसमें अंकुरित हुई। महादेवी गुरू से प्रार्थना करती हैं कि उसे भी वहाँ ले जाय। गुरू समझाते है कि वहाँ जाने का मार्ग दुर्गम है, जब तुम बड़ी होगी वह मलिकार्जुन ही तुम्हें बुला लेगा, तब तक तुम परदेशी मल्लय्या की ही पूजा करती रहो। गुरू उन्हें समझाते थे कि तुम जो मल्लय्या की पूजा कर रही हो वह श्रीशैल मल्लिकार्जुन का प्रतिरूप ही है, गुरूदेव की बात सुनकर महादेवी सुबह उठते ही नहा-धोकर परिशुद्ध होकर पूजा के लिए फूल लाकर गृह-देवता तथा इष्ट-देवता (लिंग) की पूजा करके, फिर परदेशी मल्लय्या को भक्ति पूर्वक पुष्पार्पण कर, शिक्षा पाने के लिए गुरूलिंग देव मठ जाया करती थी।
छोटी उम्र में ही महादेवी के अंतरंग में अध्यात्म अंकुरित हुआ था। गुरू से शरण चरित सुनते हुए, कल्याण नगर का वर्णन सुनकर उनमें वचन लिखने की इच्छा होने लगी। अत्यंत रूपवती पुत्री की तरूणाई को देखकर माँ -बाप में बेटी की शादी के प्रति चिंतित होना स्वाभाविक है। परंतु महादेवी को तो विवाह के बारे में कोई आंसक्ति ही नहीं थी। एक दिन जब सखियों के साथ वन विहार कर महादेवी लौट रही थीं, तब उड़तड़ि के महाराजा कौशिक अश्व परीक्षा का कार्य करके पुर में प्रवेश कर रहा था। अट्टालिका में खड़ी महादेवी राजा को दिखाई पड़ी तो उनके जीवन में आंधी ही उठी। महाराजा महादेवी पर मोहित होता है। समझता है कि ऐसी सौंदर्यवती से विवाह करने में ही सार्थकता है। यह अनुपम रत्न अपने राज्य में है यही आश्चर्य की बात है। जैसे भी हो विवाह करना ही चाहिए। ऐसा निश्चय कर महादेवी को बुला लाने मंत्री सवंत को भेजता है। राजाज्ञा के अनुसार मंत्री सवंत निर्मलशेट्टी के घर आकर राजा की मनोकामना सुनाता है।
राजाज्ञा सुनकर महादेवी के माता-पिता पाताल में धँस गए। राजा जैन-दिगंबर पंथी है, हम तो शरण संप्रदाय के हैं-कैसे रिश्ता संभव है? वे चिंतग्रस्त हुए। महादेव को खबर मिली। वे दिग्भ्रांत हुई। उन्होंने सोचा कि इससे माँ-बाप को तकलीफ न हो। राजाज्ञा का परिणाम कुछ भी हो सकता है। राजा माँ-बाप को मरवा भी सकता है। मंत्री वसंत से महादेवी ने कहा, तुम्हारे राजा के पास में आकर बात करूंगी। यदि वे विवाह लिए मेरी शर्तें मानेंगे तो आगे मेरे राजा के साथ विवाह की बात सोचेंगे। ऐसा कहकर वह अपने पर जिम्मेदारी लेकर माँ- बाप को नमस्कार कर उनमें धैर्य का संभार करते हुए यह कहकर मंत्री के साथ चलीं कि चिंता मत कीजिए, देव चेन्नमल्लिकार्जुन मेरी रक्षा के लिए हैं। राजमहल जाकर महादेवी ने कहा कि मेरी शर्तें मानोगे तो विवाह के बारे में चर्चा की जा सकती है। इससे राजा आग बबूला हो उठा। एक स्त्री, राजा पर शर्ते लगाए ? यह कोई न्याय है। परंतु महादेवी के सौंदर्य के सामने उसका सारा क्रोध पिघल गया। राजा ने महादेवी से प्रश्न किया कि बताओ तुम्हारी शर्तें क्या है? महादेवी ने कहा, "सुनो राजा, यदि तुमसे विवाह करना हो तो, मेरी नित्य पूजा और ध्यान के लिए बाधा नहीं पड़नी चाहिए। किसी भी कारण से मेरे पूजा- समय में अंदर प्रवेश न करना चाहिए और बलात्कार नहीं करना चाहिए।" ये शर्तें मानोगे तो मैं राजमहल में अलग ही रहकर नित्य पूजा करूंगी और आगे विवाह करने के बारे में सोचेंगे। राजा ने शर्तें मान लीं। कामी कौशिक सोचता हैं कि राज महल के सुख विलास में इसके शरण संप्रदाय की पूजा-विधि धीरे-धीरे क्षीण हो जायेगी और सुख सागर के मोह से वह अपनी ओर आकर्षित होगी- ऐसा समझ कर राजा मंत्री को आदेश देता है कि महादेवी के रहने के लिए सारी सुख-सुविधा की व्यवस्था करें।
महादेवी रोज शिव पूजा और शिवशरण दासोह में लीन रहती थी और इष्टदेव चेन्नमल्लिकार्जुन के ध्यान में निमग्न रहती थीं। लेकिन कुछ ही दिन में राजा कौशिक, महादेवी पर विवाह के लिए दबाव डालने लगा। तब महादेव ने कहा, "राजा, तुमने अब तक दो शर्तें पूरी की है। मेरी तीसरी शर्त है कि तुम जो जैन धर्मावलंबी हो, तुम्हें मेरा वीरशैव धर्म स्वीकार करना चाहिए। तभी मैं विवाह के लिए अनुमति दे सकती हूँ। मैं तो अपना धर्म छोड़ नही सकती हूँ। तुम यह शर्त मानोगे तो मैं विवाह के लिए अनुमति दे सकती हूँ।" इसे सुनकर कौशिक धँस गया। वह आग बबूला हो उठा।
क्रोधी राजा ने कहा, "हे महादेवी, मैं पवित्र जैन धर्मी हूँ। मैं किसी भी कारण से अपना धर्म नहीं छोड़ सकता और तुम्हें भी छोड़ नहीं सकता। तुमने नहीं सुना है। 'राजा प्रत्यक्ष देवता है' वह जो चाहता है उसे पा ही लेगा यह उसका हक है।" तब महादेव ने कहा 'राजन् तुम मुझ पर बलात्कार नहीं कर सकते हो। स्त्रियों के सम्मान की रक्षा करना राजा का धर्म है और साधारण व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य है। तब भी तुम कमांध होकर ऐसा बर्ताव करोगे ? तो तुम जैसे के साथ विवाह संभव ही नहीं। इस दैहिक सौंदर्य से तुम आकर्षित हो और यह देह तो हाड़- मांस से भरी है। स्त्री-सामान्य की देह यही है न ? दूसरे के मन को मोहित करने वाली इस देह पर मुझे किंचित भी मोह नहीं।'
यह देह
मल का घड़ा
मूत्र की घड़िया
अस्थि का पिंजड़ा
पीब का मंदिर
जल जाय यह देह
यह देह विनासी
इससे प्रेम न कर
मेरे स्वामी
चेन्नमल्लिकार्जुन को जानो।
ऐसा कहकर राजा को समझाती है। परंतु राजा ने कामोन्मत्त होकर जब बलात्कार करना चाहा तो महादेवी गिड़गिड़ायी साड़ी के दामन को छोड़ो। तब भी जब राजा ने न माना तो महादेवी ने अपने वस्त्र को उतार फेंककर केश राशि को दिव्यंबर बनाकर राजमहल से बाहर निकली और इस प्रकार निर्वाण बनी विश्व में ही पहली महिला है।
महादेवी के रूप-सौंदर्य से मोहित होकर जब युवा लोग छेड़ने आते थे तब उन्होंने नीतिबोध दिया यथा
मेरी भरी जवानी को देखकर
मेरे पास आये क्या भैय्या?
भैय्या, मैं स्त्री नहीं हूँ, न वेश्या हूँ
तब मुझे कौन समझकर आये?
चेन्नमल्लिकार्जुन को छोड़कर
अन्यों से मेरा कोई संबंध नहीं भैय्या।
महादेवी स्वरूप से, नाम से स्त्री होने पर भी भाव से वे पुरुष हैं।
काम को जीता, बसव आप की दया से,
सोमघर को पाया, बसव आप की कृपा से,
नाम से स्त्री होने से क्या हुआ ?
भाव से पुरुष रूप पायी बसव आपकी दया से,
अतिकामी चन्न मल्लिकार्जुन से
दिया रहित होकर समा गयी बसव आपकी कृपा से
कल्याण में पहुँचकर अक्त महोदवी अनुभव मण्डप की शरण मंडली के साथ सुख-संतोष से रही। महादेवी ने अनुभव मंडप के निर्माता बसवेश्वर और उनकी पत्नी गंगाविका और नीलाम्बिका के दर्शन से पुनीत होकर उनकी चरण वंदना की। बसवेश्वर को देखते ही भावुक होकर उनके चरणों में गिर पडी। बसवण्णा ने उनका हृदय से स्वागत किया और अनुभव मंडप में रहने का उनसे आग्रह किया। बहुत दिन तक अनुभव मंडप में रहकर, वहाँ के शिवशरण और शरणियों के हृदय को छू लिया। फिर कुछ दिन के बाद वहाँ के सभी से मुख्य तौर पर बसवण्णा तथा अल्लम प्रभु से अनुमति लेकर चेननमल्लिकार्जुन के दर्शन हेतु 'श्रीशैल' की यात्रा की। बीच में नदी-पर्वत, पेड़-पौधे, जंगल आदि को पार करती हुई अंत में 'श्रीशैल' पहुँच गयी। श्रीशैल शिखर को देखकर आनंद विभोर हो उठी। आगे मल्लिकार्जुन के दर्शन कर पातालगंगा में नहाकर पुनः कदली यात्रा के लिए नये उत्साह चैतन्य से तैयार हुई। 'कदलीवन' पहुँचकर वहाँ का हर कण शिवमय सा अनुभव करती है। सभी सत्यं शिवं सुंदरम हैं। महादेवी कदली वन में अपना 'अंतिम लक्ष्य-प्राप्त' को पाती है।
- डॉ. सी. हेच. चंद्रय्या
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