My Feelings Towards Hindi : Balkavi Bairagi
हिंदी के प्रति मेरे भाव : बालकवि बैरागी
1. राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर हिंदी किसी सरकार, किसी संविधान और किसी संसद की मोहताज नहीं है। वह भारत की राष्ट्रभाषा कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी।
2. सारा संघर्ष 'राजभाषा' का है। 'राष्ट्रभाषा' का नहीं।
3. बेशक हिंदी का विकास देश विदेश में तेजी से हो रहा हैं पर हिंदी का समूचा संघर्ष हिंदी वालों की मानसिक दासता के कारण निरंतर बढ़ रहा है।
4. हिंदी वाले अपना हस्ताक्षर तक हिंदी में नहीं करते। यह शर्म की बात है। माँ के दूध का अपमान हिंदी वाले लोग इठलाते हुए करते हैं। उनके बालबच्चे तक अपना हस्ताक्षर अँग्रेजी में करके एक पाखंडी रूआब कायम करते हैं। जो कि हास्यास्पद है।
5. डॉ. लोहिया (राम मनोहर जी) ने कहीं कहा है- अंगेजी में हस्ताक्षर और अंग्रेजी की दासता वे ही लोग स्वीकार करते हैं जिनकी या तो माँ अँग्रेज है या फिर जिनके पिता अँग्रेज हैं।
6. संसार की किसी भी भाषा से हिंदी का न तो कोई संघर्ष है, न कोई विवाद है, ना कोई झगड़ा। सारा संघर्ष और विवाद अँग्रेजी भाषा से नहीं, अँग्रेजी की प्रभुता से है। अँग्रेजी और कुछ हो सकती है पर भारत की 'प्रभु 'भाषा' नहीं हो सकती है। उसके 'साहित्य' का स्वागत है पर उसकी 'सत्ता' को धिक्कार है। 'लानत' है उसकी प्रभुता पर।
7. भारत की किसी भी प्रादेशिक भाषा से हिंदी का कोई संघर्ष या विवाद नहीं है। हिंदी हमारी भारतीयता की पहली पहचान है।
8. हिंदी भारत में कहीं बाहर से नहीं आई है। हिंदी यहीं थी, यहीं है और यहीं रहेगी। जब भी भारत से बाहर कोई भाषा जायेगी तो वह अंग्रेजी होगी चूँकि वही बाहर से आई है।
9. एक कहावत और किवदंती थी कि अंग्रेज़ और अंग्रेजी के राज्य में सूरज कभी अस्त नहीं होता है। आज यह कहावत यह किवदंती उलट गई। अंग्रेज के राज्य में सूरज आराम से अस्त हो रहा है। संसार के 150 देशों के यही करीब 200 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। आज हिंदी के आभा क्षेत्र में सूरज अस्त नहीं होता। यायावरों के अनुभव हम रोज पढ़ रहे हैं।
10. 'राजभाषा' के क्षेत्र में वही हिंदी सफल होगी जो गैर हिंदी क्षेत्रों के लोग तैयार करेंगे। हिंदी क्षेत्र वालों की हिंदी हमेशा विवाद पैदा करेगी।
11. यह हिंदी की शास्त्रीयता और शुद्धता का समय नहीं है। एक नई हिंदी पूरे भारत में नया रूप ले रही है। पूरब में वह असमिया, बंगाली और उड़िया जैसी भाषाओं से शब्द सम्पदा ले रही है। पश्चिम में हिंदी गुजराती, मराठी और तटीय भाषाओं के शब्द सोल्लास लेकर अपना रूप निखार रही है। उत्तर में पंजाबी और कश्मीरी तथा डोगरी और उर्दू से शब्द लेने में उसे कोई संकोच नहीं हैं। दक्षिण में संस्कृत, कन्नड़, तमिल और मलियाली एवं तेलुगु से शब्द माँगने से हिंदी को कोई बाधा नही है। सारा मामला बीच के मध्य क्षेत्रीय हिंदी अंचलों का है। यहाँ के हिंदी भाषी लोग बड़ी शान से अंग्रेजी की गुलामी कर रहे हैं और उनके बच्चे भी इस गुलामी के दलदल में फँसते और मरते जा रहे हैं।
12. जो हाथ अपना हस्ताक्षर तक हिंदी में करने में काँपते हों, वे कॉपते हुए हाथ कभी भी हिंदी का झण्डा न तो पकड़ सकेंगे न लहरा-फहरा सकेंगे।
13. इधर उधर देखने से पहले हम हिंदीवाले स्वयं को देखें कि हम स्वयं कहाँ हैं ? हम खुद कितना 'हिंदी' में हैं ?
यदि मैं लिखता जाऊंगा तो पूर्ण विराम दाँत पीस कर मुझे देखेगा। हाँ, मेरी माँ हिंदी अवश्य मुझसे कहेगी कि "बेटा लिखता जा। बस कोई कड़वी बात मत लिखना। मैं यदि तेरी माता हूँ तो मेरी भी एक माता है जिसका नाम है 'भारत माता'। उसकी गरिमा और महिमा का ध्यान रखना।"
हिंदी का विरोध और प्रतिरोध करने वालों से मेरा बहुत विनीत निवेदन है कि
"हिंदी धैर्य की भाषा है- उत्तेजना और हिंसा की नहीं। वह प्रतीक्षा को व्रत की तरह धारण करके पाल रही है।"
हम एक 'संकल्प काल' में जी रहे हैं। हिंदी के हित में अपनी सामान्य दिनचर्या से कोई भी अत्यल्प या छोटा सा ही व्रत या संकल्प हम सभी ले लें तो भी हिंदी की सेवा ही होगी।
आशा है मेरे इस पत्र को आप इतनी व्यस्तता के बीच भी समय निकाल कर पढ़ लेंगी।
ये भी पढ़ें; World Hindi Diwas 2024 : हिन्दी के प्रति अन्याय आखिर कब तक?