पंडित राम नरेश त्रिपाठी : लूटा सुजस मार कृति लाठी

Dr. Mulla Adam Ali
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Pandit Ram Naresh Tripathi

Ram Naresh Tripathi

पंडित राम नरेश त्रिपाठी : लूटा सुजस मार कृति लाठी

हिन्दी साहित्य में जो श्रेष्ठ कवि हुए हैं, स्व. राम नरेश त्रिपाठी उनमें से एक हैं। बीसवीं शती के हिन्दी साहित्य में उनका विशिष्ट स्थान था। उनकी रचनाएं हिन्दी काव्य को जन मानस के मन पर प्रतिष्ठित करने में पूर्ण रूप से सकल थीं। त्रिपाठीजी ने द्विवेदी युग को आधुनिक बनाने में जो परिश्रम और प्रतिभा का परिचय दिया था उसमें उनका अन्वेषक और क्रियाशील रूप दिखाई देता है। उनके राष्ट्रीय खण्ड काव्य 'पथिक' ने प्रकाशित होते ही हिन्दी साहित्य के विद्वानों में उनकी धाक जमा दी थी, उनके समय के तथा त्रिपाठीजी के प्रिय मित्र प्रसिद्ध कवि पं. नाथूराम शंकर शर्मा ने उनके 'पथिक' की लोक व्यापी प्रसिद्धि से उत्प्रेरित हो मजाक में जो पंक्ति लिखी, वह हिन्दी जगत में व्यंग्य के साथ सच्चाई को भी स्पष्ट करती है पं. नाथूराम शंकर की पक्तियां हैं : 'पंडित राम नरेश त्रिपाठी । लूटा सुजस मार कृति लाठी।'

इसका सीधा सादा ग्रामीण अर्थ है कि पं. रामनरेश त्रिपाठी ने (कृति (रचना) की लाठी मार कर सुजस (कीर्ति) लूट ली है) इस सहज उक्ति से त्रिपाठीजी की प्रशंसा और अधिक बढ़ गई और उक्ति की सच्चाई जानने की दृष्टि से लोगों ने उनके काव्य ग्रन्थ पथिक, मिलन एवं स्वप्न तीनों पढ़ डाले, तब काव्य रसिकों ने अनुभव किया कि वे कितने रस सिद्ध एवं कविता कला के विधायक कवि थे।

त्रिपाठी ने कविता के क्षेत्र में तो अपना झंड़ा गाड़ा ही था, किन्तु साहित्यिक जगत में उनकी सर्वाधिक उपलब्धि ग्राम गीत के क्षेत्र उनका बेजोड़ संकलन था। जिसमें उन्होंने जीवन का बहुमूल्य समय लगाया था। उनकी कविता कौमुदी के सात भागों ने तत्कालीन साहित्य जगत में हल-चल मचा दी थी। ग्राम गीतों का संकलन करने में उन्होंने जिस निष्ठा, जिस परिश्रम, और जिस साधना से कार्य किया वह अकेला कार्य ही उन्हें शताब्दियों तक स्मरणीय बनाने के लिए पर्याप्त है। त्रिपाठीजी स्वयं अपने पथ का निर्माण करने वाले स्वच्छन्द कवि थे उन्हें किसी वाद के अन्तर्गत बांधना बड़ा ही दुःसाध्य कार्य है। जिस प्रकार प्रकृति के सभी कार्य स्वच्छन्द हैं। ऐसी ही प्रकृति का चित्रण उन्होंने अपनी रचनाओं में स्थान-स्थान पर किया है। अपने प्रसिद्ध "पथिक" काव्य में वे लिखते हैं :- तृण संकुलित हरित वसुमति गिरि लहर उदधि नभ धन को। देख हुआ कौतूहल अति आश्चर्य तुम्हारे मन को। देख रहे निस्पन्द तुम्हें तुम त्याग कर्म संगर को । हुऐ तुम्हारे लिए कभी थिर वे भी क्या पल भर को ।

कवि की पंक्तियों के यह शब्द उनकी प्रकृति निरीक्षण शक्ति का आभास देते हैं। त्रिपाठीजी चूंकि सुखी प्रतिभा के कवि थे। राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में जेल यात्रा भी की तथा राष्ट्रीय नेताओं से उनका निकट का संबंध था अतएव प्रतिभा और परिश्रम के बल पर उन्होंने हिन्दी जगत में कीर्ति अर्जित की थी उनकी कविताओं में राष्ट्रीयता के भावों का बाहुल्य हैं। उनके काव्य का यह स्वर नवयुवकों को देश के लिये उत्सर्ग का सन्देश देता रहा है।

शक्ति प्रदर्शन को जब कोई गर्वित शत्रु प्रबल दल सजकर।

 आकर घन जन पर पड़ता है निर्भय रण दुंदुभी बजाकर।

तब नव युवक देश के क्या बैठे रहते हैं घर पर।।

इस तरह क्या 'पथिक', क्या मिलन, क्या स्वप्न, उनकी सभी कविता पुस्तकों में उन्होंने राष्ट्रीय भाषा के सृजन में अपने साहित्य को प्रेरणा का स्रोत बनाया है। स्व. त्रिपाठीजी साहित्य के साथ देश भक्ति की भावना से गहराई से जुड़े थे। अतएव उन्होंने अपनी साहित्यिक जीवनी भी लिखना प्रारम्भ कर दी थी। और उस जीवनी की एक प्रति अपने अभिन्न श्री गोपाल नेवटिया के पास भेजते रहते थे। सन् 1917 में जब इन्दौर में हिन्दी के अधिवेशन में गांधीजी की अध्यक्षता में उनके भाषण पर गांधीजी प्रसन्न हुये। इसके बाद सन् 1918 में जब हिन्दी साहित्य सम्मेलन का बम्बई अधिवेशन हुआ था तब त्रिपाठी जी गांधीजी की सहमति से प्रचार मंत्री बनाये गये, और दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा का कार्य देखने के कारण गांधीजी के सम्पर्क में आये क्योंकि गांधीजी उन दिनों उसके सभापति थे। अतएव गांधीजी से उनका लगातार मिलना होता रहा। और त्रिपाठीजी होम रूल लीग के मेंम्बर भी बन गये थे। सन 1921 में अन्य बड़े नेताओं के साथ त्रिपाठी जी भी गिरफ्तार हुए और वे आगरा-लखनऊ जेलों में गांधीजी के प्राइवेट सेकेट्ररी महादेव भाई के साथ एक बैरक के एक ही कमरे में रहे थे। उन्होंने सन् 1920 में 'गांधीजी कौन हैं' नाम से एक पैम्फ़्लेट भी छपवाया था। बाद में गांधी जी से उनकी अत्यधिक धनिष्टता बढ़ गई थी।

साहित्य के क्षेत्र में स्व. त्रिपाठी ने लगभग एक सौ से अधिक पुस्तकें लिखीं। जिनमें आलोचना, कथा साहित्य, काव्य, कोश ग्राम-साहित्य, जीवनी, धर्म, नाटक, कहानी, पिंगल, राजनीति, शिक्षा, इतिहास आदि से संबंधित थी उनकी कविता केवल कविता ही नहीं थी। उसमें सरसता माधुर्य ओज आदि गुणों का समावेश था। वे हिन्दी साहित्य गगन के उज्जवल नक्षत्र थे। उन्हें पाकर हिन्दी साहित्य का इतिहास गौरवान्वित हुआ था अन्त में सुप्रसिद्ध कवि डॉ. हरिशंकर शर्मा की उन पर लिखी कविता की वो पंक्तियों के साथ-साथ उनकी प्रतिभा को शत-शत नमन

जिनकी गौरव गुण गाथा के गायक आज अपरिमित हैं। उन स्वर्गीय त्रिपाठी जी को श्रद्धा सुमन समर्पित हैं।

- रामगोपाल शर्मा 'बाल'

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