Public mind in the clutches of mass media
जनसंचार माध्यमों के शिकंजे में जनमानस
इक्कीसवीं सदी जनसंचार माध्यमों की सदी है। इसे मीडिया की सदी भी कहा जा सकता है। आज के आधुनिक समाज पर मीडिया का ही वर्चस्व है। मीडिया दिन-ब-दिन इतना शक्तिशाली बनता जा रहा है कि सरकार भी मीडिया से डरती है। सरकार का तख्ता पलटने की ताकत आज के मीडिया में है। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा आधारस्तंभ कहा जाता है। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि हमारे देश में मीडिया की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है।
जनसंचार के दृश्य-श्रव्य माध्यम :
आज के आधुनिक युग में जनसंचार के कई माध्यम है, जिनको दो वर्गों में रखा जा सकता है। मुद्रित माध्यम और दृश्य-श्रव्य माध्यम। मुद्रित माध्यमों में समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें और दृश्य-श्रव्य माध्यमों में रेडियो, दूरदर्शन, सिनेमा आदि प्रमुख रुप में आते हैं। इनमें दृश्य-श्रव्य माध्यम अत्यंत प्रभावशाली है। लोगों के मन पर इनकी अमिट छवि है। इन माध्यमों ने लोगों को पूरी तरह से अपने वश में कर लिया है। दृश्य- श्रव्य माध्यमों का अविष्कार हुए सौ-सवा सौ वर्षों से ज्यादा समय नहीं हुआ है। लेकिन इतनी कम समयावधि में इन्होंने दुनिया पर अपना राज कायम कर लिया है।
'विश्व-ग्राम' में जनसंचार माध्यमों का शासन:
सूचना क्रांति के कारण दुनिया आज 'विश्व- ग्राम' में बदल गई है। इन नई परिस्थिति में उपजे 'विश्व- ग्राम' (Global Village) में जनसंचार माध्यमों का ही शासन चलता है। संचार माध्यमों का शासन आज हमारे घर के भीतर प्रवेश कर चुका है। उसका शासन इतना प्रभावशाली है कि, कोई भी व्यक्ति उसके 'सम्मोहन शासन' से बच नहीं सकता। वह जो चाहता है, वही लोग करते हैं। आज मीडिया के जामने में लोगों को अपना दिमाग इस्तेमाल करने की आवश्यकता नहीं है। 'देखो, सुनो और करो' वाली बात है। लोग आँखे मूंदकर इस शासन को अपना चुके है। "यह माध्यम आज नई सदी के इस नये समाज की संरचना की नई परिभाषा लिख रहे हैं। इन माध्यमों के द्वारा जो नया समाज तथा नया 'ग्लोबल संसार' एक गाँव की भाँति हमारे सामने परिलक्षित हो रहा है उसमें इन माध्यमों का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है।"¹
जनसंचार माध्यमों का जनमानस पर गहरा प्रभाव :
जनसंचार माध्यम आज लोगों के दिलों दिमाग पर पूरी तरह से हावी हो गए हैं। हमारे जीवन पर इनका प्रभाव बहुत गहरा है। जन जीवन के ये अभिन्न अंग बन गये हैं। इन माध्यमों के बिना आज मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। "आज का आधुनिक आदमी कहीं भी इनके सीधे प्रभाव से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता।"² अगर हम थोड़ी देर के लिए कल्पना करें कि आज से समाचार-पत्र, रेडियो, दूरदर्शन, सिनेमा, कम्प्यूटर, टेलिफोन, मोबाईल सब कुछ बंद हो जाएगा। हम फिर कभी जीवन में इन्हें नहीं देख सकेंगे !!! तो क्या होगा ? केवल सोचने भर से दिमाग सन्न रह जाता है। शरीर पर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हम सचमुच चैन से जी नहीं सकेंगे। कुछ तो पागल हो जाएँगे। इससे हम अंदाजा लगा सकते है कि 'मीडिया' किस तरह हमारी रग-रग में समा गया है।
हमारे देश के बारे में मीडिया के प्रभाव को अगर देखना चाहे तो हम देख सकते हैं कि बीसवीं सदी के शुरुआती दौर में इन दृश्य-श्रव्य माध्यमों से हमारी पहचान हुई है। आजादी के बाद इनका विस्तार हुआ है और पिछले दो दशकों में इन्होंने भारतीय जनमानस को अपना गुलाम-सा बना दिया है। जनसंचार के ये माध्यम देश के लोगों को 'गुमराह' कर रहे हैं।
मीडिया साम्राज्यवाद :
'मिडिया साम्राज्यवाद' ने करीब-करीब समूची दुनिया को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। और दिन-ब- दिन यह शिकंजा कसता ही जा रहा है। "नई घ विश्वव्यवस्था का पूँजीवादी तंत्र आज दुनियाभर के संचार माध्यमों पर अपनी पकड़ के जरिए एक नई भूमंडलीय संस्कृति के निर्माण का प्रयास कर रहा है। और सभी देशों के राजनीतिक, सामाजिक ढाँचों का चरित्र निर्धारित कर रहा है।"³ आगे चलकर दुनिया का हश्र क्या होगा ? इसके बारे में कोई भी अनुमान लगाना आज मुश्किल है। बारीकी से अगर देखा जाये तो जनसंचार के माध्यम पूँजीपति वर्ग के हाथ में है। ये सब पैसे का खेल है। आम आदमी के बस की यह बात नहीं है।
मीडिया द्वारा उपभोक्तावाद को बढावा :
जनसंचार माध्यम आज उपभोक्तावाद को बढावा दे रहे हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की सेवा में इन्हें लगा दिया गया है। भूमंडलीकरण और आर्थिक उदारीकरण की नीति के कारण देशी-विदेशी कंपनियों में स्पर्धा तेज हो गई। हर कोई कंपनी अपने माल की बिक्री चाहती है। और उससे ज्यादा-से-ज्यादा मुनाफा कमाना चाहती है। इसके लिए जनसंचार माध्यमों का सहारा लिया जाता है। इन माध्यमों के जरिए ही लोगों के घर-घर तक पहुँचा जा सकता है। रेडियो, विज्ञापन और दूरदर्शन के तरह-तरह के कार्यक्रमों के जरिए और फिल्मों के जरिए अपने उद्देश्य की पूर्ति की जाती है। दूरदर्शन और फिल्मों की भूमिका में इनकी सर्वोपरि है। "अब मीडिया असंबद्ध तथ्यों का संग्रह, मनोरंजन का शुद्ध व्यवसाय हो चुका है।"⁴
मीडिया का अर्थ, संस्कृति और भाषा पर अतिक्रमण :
विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ केवल अपने माल की बिक्री तक ही सीमित नहीं है। ये अपने विचार, संस्कृति और भाषा हमारे उपर थोपना चाहती है। यह देश के लिए अत्यंत विघातक है। आज हमारी अर्थव्यवस्था, संस्कृति और भाषा खतरे में है। "आज हमारा देश गंभीर राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा भाषाई संकटों से गुजर रहा है।"⁵
'मीडिया' ने देश की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और भाषा पर अतिक्रमण किया है। हम धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं, हमारे अपनेपन को भी हमसे छीना जा रहा है। आज की 'माँ' 'माँ' से 'मम्मी' और 'मम्मी' से 'मॉम' हो गई है। आगे जाकर और क्या परिवर्तन होगा पता नहीं। ये 'माँ' को 'मॉम' बोलना हमें किसने सिखाया। अगर ये जनसंचार माध्यम हमारी 'माँ' को 'मॉम' बना सकते हैं तो यह कुछ भी कर सकते हैं। "आज इस तेज-तर्रार जिंदगी में जब हम प्रसारण माध्यमों की भूमिका के बारे में सोचते हैं तो अब ये लगने लगा है कि इन माध्यमों का हस्तक्षेप आज के आदमी की जिंदगी में किस तरह और गहरा होता जा रहा है।"⁶
जनसंचार माध्यमों के शिकंजे में जनमानस :
जनसंचार माध्यमों ने आज के आधुनिक मानव की नब्ज को पूरी तरह से पकड़ रखा है। उसे पूरी तरह अपने गिरफ्त में ले लिया है। बच्चे, बूढ़े हों या जवान सबके दिलोदिमाग पर इन दृश्य-श्रव्य माध्यमों ने कब्जा कर लिया है। इनकी ही तूती आज सिर पर चढ़कर बोल रही है। एक बार अगर हम इस दृश्य-श्रव्य सम्मोहन में अटकते चले गए तो फिर इससे छुटकारा मिल पाना सम्भव नहीं है। जितना निकलने की कोशिश करेंगे उतना ही ज्यादा उसमें फँसते चले जाएँगे, यह कड़वी सच्चाई है।
दृश्य-श्रव्य माध्यम यह आधुनिक विज्ञान की देन है। 'विज्ञान' एक बहुत बडा जादूगर है, जो हमें ऐसे-ऐसे करिश्में दिखाता है कि जल्द आँखों पर विश्वास ही नहीं बैठता। सौ साल पहले मानव ने इस तरह के दृश्य-श्रव्य माध्यमों की कल्पना भी न की होगी। लेकिन आज हम देखते हैं कि ये माध्यम हमारे घर का एक अहम् हिस्सा बन गए हैं। वे हमारे घर के एक सदस्य की तरह ही हैं। इनके साथ ही हमारे दिन की शुरुआत होती है और इन्हीं के साथ हमारी रात होती है। सुबह उठने पर आप अपने दाँत साफ करने के लिए कौन सी पेस्ट इस्तेमाल करेंगे, किस साबुन से आप नहायेंगे, यहाँ से लेकर रात में आप किस गद्दे पर सोयेंगे और सोने के बाद मच्छरों से आपकी रक्षा कौन करेगा यहाँ तक सारी बातें माध्यम ही निर्धारित करते हैं। खाली समय में हमारे मनोरंजन का प्रमुख साधन है- दृश्य-श्रव्य माध्यम। या तो हम रेडियो पर गीत सुनेंगे या फिर टेलीविजन पर समाचार, कोई कार्यक्रम या फिल्म देखेंगे। आज बिना जनसंचार माध्यमों के जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती। मान लीजिए एक दिन सुबह आप सोकर उठे और अखबार हमेशा के लिए बंद हो गया, रेडियो मौन हो गया हो और दूरदर्शन तथा अन्य चैनल्स कहीं दिखाई न दें तो कैसा लगेगा? यह कल्पना भी असह्य जान पड़ती है। आज का समाज माध्यमों पर निर्भर सा हो गया है। उसी से परिचालित हो रहा है। वह वर्तमान जीवन की धड़कन बन गया है, हमारी साँसे उसके साथ जुड़ गई हैं और वह हमारी साँसों का हिसाब रखने लगा है। परिवार और मित्रों की जगह 'माध्यम' ने ले ली है। आज हम मित्रों से मिलकर उनके सुख-दुख जानने के बजाए टेलिविजन के कार्यक्रम या फिल्मों पर बहस करने लगे हैं।
गंभीरता से अगर इन सभी बातों के बारे में सोचा जाए तो यह एक बहुत बड़ा षड्यंत्र है। कहने के लिए आज हम आजाद हैं। आज हमारा देश 'मीडिया साम्राज्यवाद' का पूरी तरह से गुलाम बन चुका है। हमारा देश ही क्यों दुनिया के आधे से ज्यादा देश मीडिया साम्राज्यवाद के गुलाम बन गये हैं। इस गुलामी से आजाद होने का रास्ता आज तो दूर-दूर तक नजर नहीं आता, लेकिन अगर हम आजादी में जीना चाहते हैं तो 'मीडिया' के इस षड़यंत्र के खिलाफ हमें जंग लड़नी होगी। देश के एक नागरिक के नाते हमें गंभीरता से इसपर सोचना होगा और मीडिया की गुलामी से देश को आजाद कराना होगा। आज देश को इस मीडिया से आजाद करने के लिए कोई तिलक, गांधी नहीं पैदा होनेवाले हैं, यह काम देश के हर नागरिक को करना है। अब और ज्यादा इंतजार करना 'गुलामी की मानसिकता' का लक्षण है।
संदर्भ सूची :
1. दृश्य-श्रव्य एवं जनसंचार माध्यम-डॉ. कृष्णकुमार रत्तू, पृष्ठ 1
2. वहीं, पृष्ठ 1
3. वहीं, पृष्ठ 39
4. मीडिया माफिया - डॉ. अर्जुन तिवारी, पृष्ठ 57
5. जनमाध्यम और मास कल्चर चतुर्वेदी, पृष्ठ 165 जगदीश्वर
6. सूचना तंत्र और प्रसारण माध्यम (खण्ड-1)- डॉ. कृष्णकुमार रत्तू, पृष्ठ 9
- प्रो. रामदास नारायण तोंडे
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