Ritu Verma Poetry : Zindagi Poetry In Hindi
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जिंदगी
जिन्दगी की गुत्थी
इतनी उलझी सी क्यों हैं?
जब हम चाहते है ये सुलझ जाये
तो ये उस पल में उतनी ही
उलझी सी क्यों हैं?
जब हम सोचते कि ये काफी उलझ गई तो ये उस पल में उतनी ही सुलझी सी क्यों हैं?
जब मन को लगता है
सब कुछ बदल रहा
तभी उस पल में यूँही
इतनी हलचल सी क्यों हैं?
हम तैयार होते है उस समय को जी ले
जो अभी चल रहा पर उस समय में भी इतनी उलझन सी क्यों है?
न जाने क्यूँ बेवजह जिंदगी इतनी कशमकश में क्यों हैं?
लगता था कभी कितनी आसान है जिंदगी पर जिया तो जाना इसमें इतनी
बेचैनी सी क्यों हैं?
औरों को देख कभी-कभी लगता था ..
उनकी जिंदगी इतनी आसान सी क्यों है?
पर उनकी जिंदगी को करीब से जाना तो मालूम चला जिंदगियों में सबकी
एक ही उधेड़-बुन में हैं,
कोई कम कोई ज्यादा सभी को देखो तो जिंदगी की गुत्थियों में अपने आप ही उलझे पड़े हैं।
- रितु वर्मा
नई दिल्ली
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