Role of mass media in promotion and spread of Hindi language
हिंदी भाषा के प्रचार एवं प्रसार में जनसंचार माध्यमों की भूमिका
आधुनिक युग में जनसंचार के माध्यम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इन क्षेत्रों में हिंदी का विशिष्ट प्रयोजनमूलक रुप प्रयुक्त होता है। संचार वह विधा है जो हमें एक दूसरे से जोड़ने का काम करती है। जनसंचार शब्द भले ही नया हो लेकिन इसकी अवधारणा काफी पुरानी है। मनुष्य को जीवित रहने के लिए जिस तरह अन्न और पाणी की आवश्यकता है, उसी तरह संचार की भी आवश्यकता है। संचार एक अत्यंत व्यापक अवधारणा है। जिसमें मनुष्य द्वारा अभिव्यक्ति के सभी प्रकार के माध्यम शब्द, चित्र, संगीत, अभिनय, मुद्रण आदि समाहित किए जा सकते हैं। संपूर्ण संसार में प्रत्येक व्यक्ति तथा जीवजंतु के संचार के अपने तरीके हैं। पशु- पक्षी भी अपनी ही शैली में स्वयं की बात को अपने साथी तक प्रेषित करते हैं। अतः सृष्टि के आरंभ काल से ही संचार की विविध शैलियाँ किसी न किसी रुप में प्रचारित रही है। प्राचीन समय में लोग जब छोटे-छोटे समूहों में रहते थे, उस समय आमने-सामने के संपर्क से मानव एक दूसरे से जुड़ा था। वर्तमान समय में विभिन्न क्षेत्रों में बिखरे हुए लोगों को एक समय में एक साथ सूचनाएँ प्रेषित करनी पड़ती है। यह काम संचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा किए जाते हैं। जनसंचार के माध्यमों के अंतर्गत मुख्यतः समाचार पत्र, रेड़ियो, दूरदर्शन, फिल्म तथा कम्प्यूटर आदि आते हैं।
दो व्यक्तियों में आमने-सामने बैठकर होनेवाली गपशप, टेलीफोन पर होनेवाला वार्तालाप, पत्राचार आदि भी संचार कहलाता है। संचार के संदर्भ में प्रो. हरिमोहन कहते हैं कि- "संचार के अंतर्गत अनुभवों विचारों, संदेश, धारणाओं दृष्टिकोण, मतों, सूचना ज्ञान आदि का आदान-प्रदान निहित है। यह आदान-प्रदान या प्रेषण चाहे मौखिक हो या लिखित हो अथवा सांकेतिक वस्तुओं और व्यक्तियों के परिवहन से भिन्न है।"" जनसंचार के सभी माध्यमों ने विश्व में फैली समस्त मानव-जाति जीवन को प्रभावित किया है। शिक्षा ने विज्ञान को जन्म दिया है और विज्ञान ने जनसंचार के आधुनिक साधनों को। जनसंचार के ये साधन मनुष्य की आधुनिक शिक्षा तथा विज्ञान दोनों के प्रचार-प्रसार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका तथा दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं।
भाषा संसार के सभी विषयों तथा ज्ञानों का माध्यम है। अतः सभी से भाषा का संबंध होता है। व्यावहारिक जीवन में कोई भी ऐसा पेशा या कार्य नहीं है, जो भाषा के बिना ठीक तरह से पूर्ण हो सके। भाषा को ध्वनि-प्रतीकों की व्यवस्था कहा गया है, जो समाज में परस्पर विचार विनिमय के लिए प्रयुक्त होती है। भाषा ध्वनि, शब्द, रुप, वाक्य आदि इकाईयों से संयोजित होती है। भाषा ही वह संचार व्यवस्था है जिसके केंद्र में मनुष्य की पूरी सत्ता आ सिमटी है। मनुष्य के मन और परिवेश के सभी स्तरों पर भाषा ही मध्यस्थता करती है। एक ओर भाषा हमारे संप्रेषण का सशक्त साधन है तो दूसरी और सामाजिक नियंत्रण का समर्थ उपकरण। भाषिक आचरणों ने ही मनुष्य के व्यवहारों को समाज का दर्जा दिया है। भाषा सामाजिक वस्तु होने के कारण उसमें वह लचीलापन होता है कि सामाजिक संकल्पों के साथ आसानी से उसका तादात्म्य हो जाता है। भाषा के द्वारा ही मनुष्य अपने सामाजिक प्रयत्नों को संगठित करता है। भाषा के हथियार के माध्यम से ही समाज में परिवर्तन की प्रक्रिया तेज होती है।
जनसंचार की विशेषताएँ एवं उसके माध्यमों की उपयोगिता को स्पष्ट करते हुए डॉ. दंगल झाल्टे कहते हैं कि- "जनसंचार साधारण जनता के लिए होता है विशेषवर्ग के लिए नहीं। इसमें जनसामान्य जनता की प्रतिक्रिया का पता चलता है। जनसंचार माध्यमों की प्रतियोगिता अलग-अलग स्थितियों तथा अलग- अलग संदभों में अलग-अलग है। किंतु इसके बावजूद इन सभी माध्यमों की उपयोगिता है।"2 संचार 'भाषा के मुख्यतः तीन पत्र देखे जाते हैं-शब्द, संपदा, पदबंध, उच्चारण या प्रस्तुति इसमें शब्द की भूमिका सर्वोपरि होती है। सही संप्रेषण तभी होती है, जब सर्वोत्तम क्रम में सर्वाधिक उपयुक्त शब्द रखा जाता है। प्रत्येक शब्द के अर्थबिंब को पकड़ना और उसे भाषिक संस्कृति से जोड़ना सही संप्रेषण की अनिवार्य शर्त है। यह शब्दावली पात्रानुकूल देशानुकूल, विषयानुकूल और माध्यमानुकूल होकर भी अभीष्ट प्रभाव पैदा करती है। सफल जनसंचार हेतु आवश्यक है सहज बोध। जनसंचार की भाषा की सारी मौलिकता इस बात पर आधारित होती है कि उसमें अपने संचार माध्यम के योग्य करवटे कितनी है। निश्चय ही रेड़ियो की भाषा और सिनेमा की भाषा अलग होती है। पत्रकारिता और इंटरनेट की भाषा समान नहीं होती। इसीलिए किसी भी भाषा को जनसंचार के माध्यम के रुप में स्थापित होने, प्रयुक्त होने के लिए साधन के अनुरुप अपनी संप्रेषणीयता का निर्माण और विस्तार करना होगा।
संचार भाषा के लिए आवश्यक है कि हम शब्द से जुड़ी भाषिक संवेदना को पहचाने, विशेष रुप से भाषा में जो वक्रता, विद्धता होती है, उसको हद्यगंम करें। यह भी अपेक्षित है कि हम प्रतीकों, बिंबों, मिथक, कूट पदों का सही अर्थोद्घाटन करें। सृजन और अर्थपन में कोई अंतराल न आने पाये।
भाषा-प्रयुक्ति के एक विशिष्ट क्षेत्र के रुप में इलेक्ट्रॉनिक संचार माध्यम आज बहुत ही प्रभावकारी है। इस माध्यम ने रेड़ियो एवं दूरदर्शन के जादुई प्रभाव को रेखांकित किया है। बीसवीं शताब्दी की इस तकनीक का क्रांतिकारी प्रभाव आज एक्कीसवीं सदी में सर्वत्र देखा जा सकता है। सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक क्षेत्रों में इसका बहुत अधिक प्रभाव है। इसमें कम्प्यूटर सर्वाधिक चमत्कारी हैं। इसने जनसंचार के माध्यमों को द्रुततम बना दिया है। आज कम्प्यूटर की भूमिका मुद्रण, रेड़ियो, दूरदर्शन, टेलीप्रिंटर, इंटरनेट में देखी जा सकती है। इसीलिए अब भाषा के कोश में नये-नये अर्थ, नयी-नयी शैलियाँ जुड़ने लगी हैं। जैसे समाज का आधुनीकीकरण हो गया है, वैसे ही आधुनिकता की रचना में वास्तविक रुप में स्वतंत्र बल जनसंचार माध्यम है।
विभिन्न जनसंचार माध्यमों में प्रयुक्त मौखिक तथा लिखित हिंदी सर्वमान्य के दैनंदिन जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों से सामान्य तथा विशिष्ट शब्दावली ग्रहण करते हुए सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त करने का प्रयास करती है। इस हिंदी में आवश्यकतानुसार अंग्रेजी के हिंदी पर्याय तो प्रयुक्त होते ही है, कभी-कभी अंग्रेजी शब्द भी ग्रहण कर लिए जाते हैं। लिखित हिंदी रुप में हिंदी की बोलियों के शब्द ग्रहण करने में कोई झिझक नहीं होती।
संक्षेप में संपूर्ण विश्व में संचार माध्यमों का सभी साम्राज्य भाषिक प्रयुक्ति की क्षमता पर आधारित है। इसीलिए संसार की हर भाषा में जनसंचार के नये पुराने माध्मों के प्रयुक्ति क्षेत्र में प्रवेश करने और दक्षता अर्जित करने की अद्भुत प्रतियोगिता चल रही है। पत्रकारिता, सिनेमा, रेड़ियो, टेलीविजन, विज्ञापन और कम्प्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में भाषा की क्षमता का विस्तार बीसवीं सदी में निरंतर होता गया है। अब इक्कीसवीं शताब्दी में जनसंचार माध्यमों के बीच भाषा की भूमिका और सक्रियता को नये-नये विलक्षण आयाम मिलने की पूरी संभावना है।
1. आधुनिक जन-संचार और हिंदी - प्रो. हरिमोहन पृष्ठ - 11
2. प्रयोजनमूलक हिंदी : सिद्धांत और प्रयोग - डॉ. दंगल झाल्टे - पृष्ठ - 217
- डॉ. नवनाथ गाड़ेकर
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