Sahitya aur Sanchar Madhyam : Literature and Media
साहित्य और संचार माध्यम
साहित्य एवं संचार माध्यम एक दूसरे के प्रति कारगर सिद्ध हुए हैं। आज देखा जाय तो हर किसी क्षेत्र में संचार - माध्यम का असर देखने को मिलता हैं, उसी रूप में साहित्य में भी उनका उतना ही दबदबा देखने को मिलता हैं। क्योंकि आज मीडिया जो सबसे ताकतवर के रूप में देखा जा सकता हैं। जिनका विशेष असर साहित्य में देखा जा सकता हैं।
आजादी प्राप्त होने के पश्चात 17 अगस्त 1965 में भारतीय जनसंचार संस्थान एक महत्वपूर्ण कदम था। जनकल्याण की भूमिका की वजह से उसके महत्व को लोगों ने शुरू से ही स्वीकार कर लिया था क्योंकि सामाजिक परिवर्तन की दिशा में संचार के प्रभावशाली स्वरूप का इस्तमाल होने वाला था क्योंकि उसके माध्यम से जन सामान्य में वैज्ञानिक सोच एवं तार्किक समता का विकास होता हैं। संचार माध्यम हमारे समाज की आने वाली पीढ़ी का चरित्र निर्माण भी कर सकती हैं। राष्ट्रीय रूप से भाईचारे की एकता का पाठ पढ़ा सकती हैं। ऐतिहासिक दृष्टिकोण सांस्कृतिक समझदारी को साहित्य एवं विभिन्न कलाओं की अभिव्यक्ति आदि को कम समय में ज्यादा फैलाया जा सकता हैं।
साहित्य के विकास में संचार माध्यमों का विशेष योगदान पाया जाता हैं। संचार माध्यमों की बात करें तो आज उनका दायरा भी काफी बँट गया हैं। पहले माध्यम के रूप में सिर्फ रेडियों, टेलीविजन और फिल्में ही थी, आज उसमें कम्प्युटर, इण्टरनेट और मोबाईल आदि जुड़ जाने से उनके विकास में तेजी आ गई हैं।
साहित्य के स्वरूप की बात करें या उनके प्रकारों की बात करें हर लिहाज से उनका विकास हुआ हैं क्योंकि ग्रंथालय में जाकर पढ़ने की रूचि रखनेवाले लोग कम होते जा रहे हैं, पर उसी चीज को घर बैठें देखनी हो तो यह रूचि कुछ बढ़ जाती हैं। आज मीडिया में साहित्य की हर विधा को अभिव्यक्ति मिलती हैं। कहानी हो, नवलकथा हो, कवितायें हो, या नाटक हो हर विधा का प्रकटीकरण मीडिया में होता हैं। जिनसे पाठकों की रूचि भी उस ओर कुछ विशेष बढ़ी हैं। जिनका असर भी ज्यादा देखा जा सकता हैं क्योंकि जब कोई एक ही व्यक्ति तक सीमित रहती हैं पर वह कहानी टेलीविजन पर दिखाई जाय तो उनकी संवेदना हजारों लोगों तक पहुँच जाती हैं।
साहित्य के पठन-पाठन एवं संशोधन के क्षेत्र में इन्टरनेट का विशेष उपयोग हो रहा हैं। जिनके फल स्वरूप जो कार्य करने के लिये महीनों लग जाते थे, वह मीनटों में संभव हो जाता हैं। साहित्यिक संशोधना में तो वह काफी आर्शीवाद के समान हैं, क्योंकि हर प्रकार की जानकारी पलक झपकतें ही प्राप्त हो जाती हैं। दूसरी ओर किसी भी रचनाकार को लोगों तक पहुंचने के लिये सालों तक इन्तजार करना नहीं पड़ता पर वह कुछ दिनों में ही लोगों के हृदय में बस जाते हैं। इन माध्यमों से इनका प्रचार प्रसार बढा हैं। इसलिये ही आज पहले की तुलना में ज्यादा साहित्य लिखा जाता हैं। साहित्य के विकास में मोबाईल की भूमिका भी स्मरणीय हैं क्योंकि उसमें नेट की अपनी भूमिका तो है पर परस्पर जो शॉर्ट मेसेज भेजे जाते है, उसमें उत्तम काव्यांशो, गद्यखण्डों एवं प्रख्यात सूत्र-वाक्यों का प्रयोग होता हैं, जिनसे साहित्य से कोई संपर्क न रखनेवाले लोग भी उनसे सहज जुड़ जाते हैं।
जिस रूप में संचार माध्यमों के कारण साहित्यिक स्वरूप विकसित हुए हैं। उसी प्रकार से साहित्य की भाषा एवं शैली के विकास में संचार माध्यम का विशेष योगदान रहा हैं। संचार भाषा औद्योगिक क्रान्ति के काल में प्रारंभ हुई हैं। भाषा में दिये जाने वाले संदेश भिन्न-भिन्न प्रकार के तकनीकि माध्यमों से व्यक्त किये जाते हैं। हम कह सकते हैं कि संसार के जितने माध्यम है उन सभी माध्यमों में उतने ही रूपों में भाषा का प्रयोग भी हो रहा हैं।
अतः हम कह सकते है कि संचार माध्यम के द्वारा हमारे संपूर्ण समाज को सीख मिलती हैं। साहित्य एवं सांस्कृतिक चेतना का विकास होता हैं। यह वायु तरंगों और शब्द के पारिभाषिकता के साथ श्रोता तक पहुंचता हैं। सूचनाओं, संप्रेषण, विश्लेषण एवं मानव मूल्यों को प्रसारित करने का दायित्व संचार का ही हैं। यह कहने में कोई हर्ज नहीं हैं कि किसी भी समाज के विकास का यह प्रामाणिक दस्तावेज हैं।
- डॉ. आर. सी. फिचडिया
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