Contemporary female storyteller Mrinal Pandey
समकालीन महिला कथाकार मृणाल पाण्डे
'आज हिन्दी साहित्य नई दशा-दिशा, विमर्शों को लेकर चल रहा है, इन विमर्शों में स्त्री-विमर्श, दलित- विमर्श, आदिवासी-विमर्श और अल्पसंख्यक -विमर्श के आन्दोलन को लेकर जोरों से चर्चा होती नजर आती है। साहित्य नये विचारों को लेकर समाज विकास और प्रगति के लिए सदैव तत्पर रहता है ऐसे ही परिवर्तनों में स्त्री-विमर्श ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। हिन्दी साहित्य जगत् में स्त्री-विमर्श एक ऐसी संकल्पना है, जो नारी-जीवन को समग्रता से विश्लेषित करती है। स्त्री- विमर्श यह एक प्रगतिशील विचार है, जो एक ही समय में हमारे देश, काल तथा पूरी दुनिया के साथ जुड़ा है।
'समकालीन' शब्द का सामान्य अर्थ है-एक समय में रहनेवाले, या अपने समय से संबद्धता। समकालीनता में समसामायिक बोध, ऐतिहासिक दृष्टि, सक्रियता, द्वन्द्वात्मकता आदि तत्व मुख्यतः विद्यमान रहते हैं। समकालीनता दूसरा तीसरा कुछ नहीं तो वह एक ज्वलन्त सत्य है, वर्तमान का सत्य है। समकालीनता हमारी विवशता होती है। समकालीनता में वर्तमान की पीड़ा के साथ हमारा अविरल साहचार्य होता है और उसी की अभिव्यक्ति समकालीन कहानी साहित्य में परिलक्षित होती है। 'समकालीन' शब्द 'सम' उपसर्ग तथा 'कालीन' विशेषण के योग से बना है। 'सम' उपसर्ग का प्रयोग प्रायः 'एक ही' अथवा 'एक साथ' के अर्थ में होता है। 'काल' का अर्थ है 'काल में' अथवा 'समय में' अतः 'समकालीन' का अर्थ हुआ "एक ही समय में रहने या होने वाले" के रूप में स्पष्ट होता है। समय गतिशील है और इस गतिशील समय में मानव जीवन में परिवर्तन अपरिहार्य है। इस परिवर्तन के साथ तमाम जीवन के संदर्भ बदल जाते हैं। पहले नारी मात्र पूजनीय, श्रद्धा की पात्र बनी हुई थी किंतु आज उसका रूप बदलने लगा है। आज नारी सशक्तिकरण की ओर अपना मोर्चा बढ़ाती नजर आती है।
पहाड़ी जनजीवन को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ उठानेवाली स्त्री लेखिका मृणाल पाण्डे समकालीन - हिन्दी कथा साहित्य में चर्चित नाम है। मृणाल जी का जन्म 1946 को पहाड़ी आंचल 'टिकमगढ़' में हुआ। मृणाल जी का घर परिवार सभी दृष्टि से सम्पन्न तथा उच्च विद्या विभूषित था। माता जी शिवानी जो हिन्दी साहित्य जगत् की जानी मानी हस्ती रही हैं। पिता श्री सुकदेव पंत उच्च शिक्षा विभाग में उच्च पद पर स्थानापन्न थे। शिवानी को चार संतानें थी मृणाल पहली संतान रही इसलिए लाड़-प्यार की बरसात होती रही। माता से साहित्यिक संस्कार, पिता से ज्ञान का घूंट, नाना नानी का लाड़ प्यार मृणाल को सहजता से मिलता गया। मृणाल का बचपन नाना-नानी तथा माता-पिता की गोद में सुखद स्थितियों में बीता है।
मृणाल का पैत्रिक गाँव पहाड़ी से लदा टिकमगढ़ है जिसका जिक्र मृणाल ने अपनी रचनाओं में किया है। मृणाल जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। सन् 1966 में मृणाल ने इलाहाबाद विश्व-विद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की तथा सन् 1979 में गंधर्व महाविद्यालय से स्नातक के समकक्ष 'संगीत विशारद' की उपाधि प्राप्त की। मृणाल जी ने इलाहाबाद, दिल्ली विश्वविद्यालय तथा भोपाल के मौलाना आजाद कॉलेज ऑफ टेकनालॉजी जैसे विविध जगहों पर अध्ययन-अध्यापन का कार्य किया है। मृणाल जी ने समयानुकूल अपने कामों में बदलाव करती रही। इसके बाद वे प्रसार माध्यमों से एक संवाददाता के रुप में जुड़ गयी। टाईम्स ऑफ इंडिया में संपादकीय जिम्मेदारियाँ निभाई। पिछले कई वर्षों से मृणाल जी ने प्रसार माध्यमों में अलग पहचान बनाई है। प्रसार माध्यमों से जुड़ने के बाद मृणाल जी काफी व्यस्त रहने लगीं परंतु इसका असर उन्होंने उनके सृजनात्मक लेखन पर होने नहीं दिया।
मृणाल पाण्डे पर प्रीतमगढ़ तथा अलमोड़ा शहर का प्रभाव गहरे रुप में था। उनके विविधोन्मुखी व्यक्तित्व के निर्माण में माता-पिता के संस्कार और अल्मोड़ा की खुशहालता और प्राकृतिक सौंदर्य की अहं भूमिका रही। इस बात को स्वयं लेखिका स्वीकार करती है, "मेरी बहु निंदीत स्पष्टवादिता, मेरे सोचने का ढंग, प्रतिक्रियाएँ यहाँ तक कि यह कतई गैर दुनियादारी अकड़ भी मुझसे अधिक इस शहर की है।" मृणाल के लेखन में जो स्पष्टवादिता सोचने का ढंग है वह जाहिर है कि लेखिका इसे अल्मोड़ा शहर की देन मानती है। प्रतिक्रियाएँ, स्पष्टवादिता और भी आयी, प्रसार माध्यमों से जुड़ने के पश्चात मृणाल को मातृभूमि के प्रति गहरा लगाव तथा सहानुभूति है।
मृणाल पाण्डे का कृतित्व :
मृणाल पाण्डे एक सुप्रसिद्ध साहित्य शिल्पी तथा कलाशिल्पी के रूप में जानी जाती है। मृणाल जी ने उपन्यास, कहानी, संपादन तथा नाटक के क्षेत्र में सक्षमता से लेखन किया है। मृणाल ने हिन्दी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओं में योगदान दिया है।
कहानी संग्रह :
दरम्यान -1977, शब्दवेधी - 1980, एक नीच ट्रेजिडी - 1981, यानि की एक बात थी - 1990, बचुली चौकीदारिन की कढ़ी - 1990, चार दिन की जवानी तेरी - 1995, एक स्त्री का विदा गीत - 2003, धर्मक्षेत्रे- कुरूक्षेत्रे - 1982.
हिन्दी उपन्यास साहित्य :
विरुद्ध-1977, पटरंगपुर पुराण-1983, देवी-1999, रास्ते पर भटकते हुए- 2000, हम का दियो परदेस-2001, अपनी गवाही- 2002
अंग्रेजी उपन्यास :
डॉटर्स डॉटर -1996, छेवी - 1996, माय ओन विटनेस - 2000
नाटक :
मौजूदा हालात को देखते हुए -1981, जो राम रचि राखा 1983, आदमी जो मछुआरा नहीं था 1985, चोर निकलके भागा - 1995, मुक्तिकथा।
मृणाल पाण्डे ने प्रसार माध्यमों में कार्य किया इस कारण विभिन्न प्रकार की वारदातें घटनाओं के अनुभवों का खजाना इनके पास है। प्रसार माध्यमों के जरिए तथा विविध बहसों के द्वारा मृणाल जी स्त्रियों के साथ सीधे जुड़ चुकी है। स्त्री मन की गहराई को अत्यंत संवेदनशीलता से साहित्य में उतारती है।
मृणाल जी का पहला उपन्यास 'विरुद्ध' सन 1977 में प्रकाशित हुआ। उन्हें प्रसिद्धि मिली सन 1983 में प्रकाशित 'पटरंगपुर पुराण' उपन्यास से जिसमें आठ पीढ़ियों में कुमायूँ-गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्र के जीवन में आये बदलाव का मानवीय चित्रण किया है। इस उपन्यास के बहाने पटरंगपुर के इतिहास को अत्यंत सृजनात्मक ढंग से पाठकों के सामने रखा। 'रास्तों पर भटकते हुए' उनका एक और चर्चित उपन्यास है जिसमें उपभोक्तावादी समाज के घिनौने रुप का यथार्थ चित्रांकण किया है। आज के युग में मानवीय संबंधों की हत्या, सर्वव्यापी भ्रष्टाचार, धन और सत्ता की दौड़ में मानवीय मूल्यों को पैरों तले रौंद कर क्रूर राक्षसी जीवन जीनेवाले डॉक्टरों, उद्योगपतियों, राजनेताओं और पत्रकारों का असली चेहरा लेखिका समाज के सम्मुख उपस्थित करती है। मृणाल के उपन्यासों की एक ओर महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि उपन्यासों में परिनिष्टित हिन्दी में पहाड़ी शब्दों और लहजों का सुंदर मिश्रण हुआ है जिससे उनके उपन्यासों में संजीदगी आई है।
सन्दर्भ संकेत :
1. देहरि भई विदेस, संपादक राजेंद्र यादव ।
2. हिन्दी उपन्यास का इतिहास, प्रो. गोपालराय।
3. एक स्त्री का विदा गीत, मृणाल पाण्डे।
4. आधुनिक हिन्दी उपन्यास भाग-2 संपा. नामवर सिंह - अनारो : हमारे समय की गाथा, मृणाल पाण्डे
- प्रा. प्रकाश भगवनराव शिंदे
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