दिल और दिमाग की जंग : Dil Aur Dimag Ki Jung - Ritu Verma

Dr. Mulla Adam Ali
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Dil Aur Dimag Ki Jung Kavita in Hindi

Dil Aur Dimag Ki Jung Kavita in Hindi

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दिल और दिमाग


दिल और दिमाग के द्वंद में 

मन विचलित हो जाता हैं,

दिमाग कहता ऐसे मत करो 

दिल बेफिक्र ही बढ़ते चला जाता हैं,

बिना कुछ प्रवाह किए ही 

बस अपनी मौज में रम जाता हैं,

नहीं समझता मन कभी सही-गलत 

बस सुकून ढूंढते रहता हैं,

जीवन के इस उधेड़-बुन में 

मन सुलझकर रहना चाहता है..

पर दिमाग को जब भी देखो तो 

सवाल-जवाब ढूंढते रहता हैं 

इधर-उधर जिधर देखो तो 

असमंजस भरी निगाहों से 

सबको देखते फिरता है,

कोई वजह नहीं सवालों के 

फिर भी देखो सवाल ढूंढते रहता हैं,

दिल सब कुछ भूल जीवन में 

बस आगे बढ़ना चाहता हैं,

खुशियाँ चाहे हो दो पल कि या 

फिर हो जीवन भर के लिए 

उस पल में वह सदियाँ 

जीना चाहता हैं और 

दिमाग को जब भी देखो तो 

अनगिनत सवालों के घेरे में 

दिल को रखना चाहता हैं। 


- रितु वर्मा

नई दिल्ली

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