दिनकर जी के रेती के फूल - सामाजिक समस्याएं एवं समाधान

Dr. Mulla Adam Ali
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Reti Ke Phool : Dinkar Granthmala

दिनकर जी के रेती के फूल - सामाजिक समस्याएं एवं समाधान

दिनकर जी के रेती के फूल - सामाजिक समस्याएं एवं समाधान

सर्वमान्य बात है कि -साहित्य समाज का दर्पण होता है। साहित्य के दूरबीन से समाज के हर विषय से हम परिचित हो सकते हैं, इस दूरबीन से कोई भी चीज या विषय बचना मुमकीन नहीं हैं। अत: हम यह कह सकते है कि साहित्य में समाज पूर्णतया प्रतिबिंबित होता है। श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' को आधुनिक हिंदी साहित्य के क्षेत्र का एक अद्वितीय शक्ति माना जाता है, रेती के फूल निबंध संग्रह के प्रत्येक निबंध दिनकर जी के विश्लेष्णात्मक दृष्टिकोण का उत्तम उदाहरण हैं। हिम्मत और जिंदगी, चालीस की उम्र, ईर्ष्या तू न गयी मेरे मन से, हृदय की राह, कर्म और वाणी, खड्ग और वीणा, विजयी के आंसू, कला-धर्म-और विज्ञान, भविष्य के लिए लिखने की बात, राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीयता, हिंदी कविता में एकता का प्रवाह, नेता नहीं नागरिक चाहिए, भगवान् बुद्धि, संस्कृति है क्या भारत एक है आदि निबंधों में सामाजिकता का और विभिन्न सामजिक समस्याओं का उल्लेख हुआ है।

उदाहरण के लिए.... हिम्मत और जिंदगी में आप लिखते हैं कि - "सुख देने वाली चीजें पहले भी थीं और अब भी है। फर्क यह है कि - जो सुखों का मूल्य पहले चुकाते हैं और उनके मजे बाद को लेते हैं, उन्हें स्वाद अधिक मिलता है। जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता है, उनके लिए आराम ही मौत है। जो लोग पाव भीगने के खौफ से पानी से बचते हैं, समुद्र में डूब जाने का खतरा उन्हीं के लिए हैं। लहरों में तैरने का जिन्हें अभ्यास है, वे मोती लेकर बाहर आयेंगे।" कहने का मतलब यह है कि मनुष्य के लिए आराम ही हराम है। जो लोग परिश्रम करने से बचते हैं उन्हें सुख पाने का कोई अधिकार नहीं है। जिन्हें परिश्रम करने के बाद सुख की प्राप्ति होती है उस सुख में उन्हें वास्तविक स्वाद मिलता है। दिनकर जी आलसी लोगों के प्रति बड़े कड़े शब्दों में कहा है कि काम से बचकर आराम करना चाहते हैं कि उनके लिए आराम ही मौत है।

इस प्रकार केवल समस्या ही नहीं बल्कि उसका समाधान भी समाज को दिनकरजी ने दिखाया।

दिनकर जी कहते हैं कि - "उपवास और संयम ये आत्महत्या के साधन नहीं हैं। परिश्रम के महत्व को न जानते हुए हमेशा सुख में डूबने वालों से यह स्पष्ट करते हैं कि भोजन का असली स्वाद उसी को मिलता है कि जो कुछ दिन बिना खाए भी रह सकता है और उनसे कहता है कि त्यक्तेन भुनजीथ :- जीवन का भोग त्याग के साथ करो, यह केवल परामर्श का ही उपदेश नहीं है क्योंकि, संयम से भोग करने पर जीवन से जो आनंद प्राप्त होता है, वह निराभोगी बनकर भोगने से नहीं मिल पाता। इस प्रकार देश की युवा पीढ़ी को त्याग और समर्पण की पवित्र भावनाओं को अपनाने का महत्वपूर्ण संदेश देता है। जो .. प्रस्तुत समाज और युवा पीढ़ी को दिशाबोध कराता है। मनुष्य के जीवन में साहस भी अत्यंत आवश्यक माना गया है। साहस के बिना मनुष्य अपने जीवन में किसी भी कार्य में सफलता पा नहीं सकता है। अतः दिनकर जी मनुष्य को साहसी बनने का उपदेश देते है और अपने आपको सिंह की भांति बनने को कहते है। जैसे -"साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता है, वह अपने विचारों में रमा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है- झुण्ड में चलना और चरना यह भैंस और भेड़ का काम है। सिंह तो बिलकुल अकेला होने पर भी मग्न रहता है।"

साहस का वास्तविक रूप को आपने अपने उक्त शब्दों में दिखाया है, देश की उन्नति एवं प्रगति के क्षेत्र में युवा पीढ़ी का योगदान अत्यंत आवश्यक भूमिका निभाती है, अगर युवा पीढ़ी निरुत्साह में डूबे रहते है तो देश की प्रगति प्रश्नार्थक में पड़ जाएगा। स्वामी विवेकानंद जी ने भी इसी बात पर बल देकर कहा था कि देश की प्रगति के लिए अत्यंत साहसिक युवता चाहिए।

- एस. मोगलय्या 'सागर'

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