Error in Bilingual Teaching – Analysis
द्विभाषी शिक्षण में त्रुटि - विश्लेषण
प्रस्तावना :- भाषा शिक्षण में त्रुटि विश्लेषण को ही अशुद्धि विश्लेषण भी कहते हैं। यह त्रुटियाँ ज्यादातर भाषा सीखने वालों में होती हैं। भाषा सीखते समय त्रुटियाँ इस लिए होती हैं क्योंकि मातृभाषा का प्रभाव सीखने वालों पर बहुत ज्यादा रहता है।
त्रुटियाँ या अशुद्धियाँ न केवल भाषा सीखने वालों में होती हैं बल्कि जो भाषा को सीख चुके होते हैं उनमें भी यह अशुद्धियाँ होती हैं।
जैसे कि कवि, कलाकार, उपन्यासकार, कहानीकार, राजकीय नेता आदि लोगों में।
यह त्रुटियाँ भी भाषा सीखते समय अभिव्यक्ति, ग्रहण संबंधी कार्यों में अधिक दिखाई देती हैं। जब की कोई व्यक्ति अन्य भाषा को सीखता है तो उसे पहले उस भाषा के त्रुटियों को वैज्ञानिक रूप से अनुशीलन करने की क्षमता को प्राप्त करें और व्याकरण को भी जानने की दक्षता प्राप्त करें, जब भी कोई व्यक्ति भाषा को सीखता है अर्थात अर्जित करता है तो साधारणतः गलतियाँ, एवं त्रुटियाँ होती हैं, लेकिन उन त्रुटियों को सुधारने की आवश्यकता बनी रहती है।
मुख्यतः यह त्रुटियाँ मातृभाषा सीखने वालों में कम, और अन्य भाषा सीखने वालों में ज्यादा होती हैं। इस प्रकार भाषा सीखने में होने वाली अशुद्धियों को सुधार करने के लिए, और यह त्रुटियाँ किन चीजों में होती हैं, इस के कारण क्या हैं?, इन सभी कारणों को मद्देनज़र रखते हुए इन त्रुटियों पर विश्लेषण किया गया, जिसे ही त्रुटि विश्लेषण या अशुद्धि विश्लेषण कहते हैं।
इस त्रुटि विश्लेषण का संक्षिप्त रूप से वर्णन निम्न रूप से किया गया है-
भाषा : 'भाषा' शब्द संस्कृत की 'भाष' धातु से बना है, जिसका अर्थ है-बोलना या कहना अर्थात् भाषा वह है जिससे बोला या कहा जाये।'
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, समाज में रहने के नाते उसे सर्वदा आपस में विचार-विनिमय करना पड़ता है। कभी वह शब्दों, वाक्यों द्वारा अपनी बात को प्रकट करता है, कभी सिर हिलाने से उसका काम चल जाता है।
इसका मतलब है कि-गन्य इन्द्रीय, स्वाद इन्द्रीय, स्पर्श इन्द्रीय, दृष्य इन्द्रीय, कर्ण इन्द्रीय, इन पाँचों ज्ञान इन्द्रियों में किसी के भी माध्यम से अपनी बात कही जा सकती है। किन्तु इन सभी में सबसे अधिक प्रयोग कर्ण इन्द्रीय का होता है। अपनी सामान्य बातचीत में हम इसी का प्रयोग करते हैं। वक्ता बोलता है, और श्रोता सुनकर विचार या भाव को ग्रहण करता है। उदाहरणार्थ
वक्ता = श्रोता
परिभाषाएँ : व्यापकतम रूप से तो भाषा वह साधन है जिस के माध्यम से हम सोचते हैं तथा अपने विचारों को व्यक्त करते हैं।
प्लेटो ने 'सोफ़िस्ट' में विचार और भाषा के संबंध में लिखते हुए कहा है कि- 'विचार और भाषा में थोड़ा ही अंतर है-विचार आत्मा की मूक या अध्वन्यात्मक बातचीत है, पर वही जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है तो उसे भाषा की संज्ञा देते हैं।'
'भोलानाथ तिवारी' के अनुसार-'भाषा उच्छरण अवयवों से उच्चरित, यादृच्चिक ध्वनि प्रतीकों की वह व्यवस्था है जिस के द्वारा समाज विशेष के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।'
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम भाषा को इस तरह परिभाषित कर सकते हैं-'भाषा मानव मुखोच्चरित, यादृच्चिक ध्वनि प्रतीकों की वह संग्रयात्मक व्यवस्था है, जिस के द्वारा समाज विशेष के लोग आपस में विचार विनिमय करते हैं।
भाषा
1. मातृ भाषा
2. द्वितीय या अन्य भाषा
मातृभाषा : 'मातृभाषा' का मूल अर्थ है वह भाषा जो बच्चे की माँ की भाषा होती है, लेकिन भाषा-शिक्षण के संबंध में 'मातृभाषा' की परिभाषा कुछ इस प्रकार है- 'मातृभाषा वह भाषा है जिसके वातावरण में बच्चा जन्म लेता है, पलता है, घर, बाहर, स्कूलों आदि में भी जिसका वातावरण रहता है, और जिसके प्रयोग और उपयोग के लिए सहज रूप उपयुक्त स्थितियाँ प्राप्त होती हैं।
अर्थात् हम अपने जीवन में हर समय हर जगह बचपन से जिस भाषा को सुनते, बोलते, लिखते-पढ़ते रहते हैं, वही हमारी मातृभाषा होती है।'
अन्य भाषा में द्वितीय भाषा : द्वितीय भाषा मतलब सीखने वाली भाषाओं में द्वितीय से नहीं लिया जा सकता। हम सामान्यतः घर में सीखने वाली भाषा के अतिरिक्त और एक भाषा का अध्ययन कुछ घर में, कुछ स्कूलों में करें और उस भाषा के उपयोग के अवसर कुछ हद तक बाहर भी होते हैं तो ऐसी भाषा को द्वितीय भाषा कह सकते हैं। 'उदाहरण के तौर पर हम दक्षिण भारत में हिन्दी और अंग्रेजी को ले सकते हैं।'
भाषा कौशल के रूप : भाषा कौशल में चार महत्वपूर्ण बाते होती हैं वो है-
1. बोलना 2. सुनना 3. पढ़ना 4. लिखना
1. जब शिक्षार्थी को मातृभाषा की शिक्षा दी जा रही हो, और उस समय वह अशुद्धि करता हो।
2. सीखने वाली की मातृ बोली एक है और उसकी मातृभाषा उससे भिन्न हो, तब उस मातृभाषा को सीखते समय होने वाली अशुद्धियाँ।
3. जब अन्य किसी को अन्य भाषा की शिक्षा दी जा रही हो, और उसमें वह अशुद्धि कर रहा हो।
उपर्युक्त 'तीनों' वर्गों की अशुद्धियाँ एक प्रकार की नहीं होतीं। गहराई से देखें तो 'पहले' वर्ग की अशुद्धियाँ मातृभाषा अर्जित करते समय होने वाली अशुद्धियाँ हैं। 'तीसरे' वर्ग की अशुद्धियाँ अन्य भाषा सीखते समय होने वाली अशुद्धियाँ हैं। 'दूसरे' वर्ग की अशुद्धियाँ प्रायः बीच की हैं।
वस्तुतः विश्व की बहुत-सी भाषाएँ मातृभाषा, अथवा अन्य भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है, किन्तु हिन्दी अधिकांश तथाकथित हिन्दी-भाषियों को मातृभाषा और अन्य भाषा के बीच की भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। इसीलिए उसे पढ़ाते समय मिलने वाली अशुद्धियाँ सर्वथा अलग प्रकार की होती हैं।
अशुद्धियाँ : किसी भाषा को सीखता व्यक्ति, जब उस भाषा को बोलने तथा लिखने में प्रयोग करता है, तो वह निम्नांकित प्रकार की अशुद्धियाँ करता है-
1. ध्वनिविषयक :- बोलने में 'मूल स्वर' (औरत- ओरत), 'मूल व्यंजन' (शहर-सहर), 'स्वरानुक्रम' (पाउडर-पौड़र), 'व्यंजनानुक्रम' (बकता-बक्ता), 'संयुक्त स्वर' (भैया-भइया), 'संयुक्त व्यंजन' (भस्म-भसम), 'अनुनासिकता' (दुनिया-दुनियाँ), अदार- विभाजन (आ-मद-नी-आम-दनी), वलाघात (बाज़ार-बजार) तथा अनुतान की गलितियाँ होती हैं।
2. लेखन विषयक :- ये अशुद्धियाँ लिखने में होती हैं, इन्हें लिपि तथा वर्तनी की अशुद्धियाँ कहते हैं। इनका संबंध लिपि के चिह्न तथा ध्वनि से होता है।
3. शब्दरचना विषयक :- जैसे वाद-विवाद, कवायेत्री, अतर्कथा, अंतर्साक्ष्य आदि।
4. रूपरचना विषयक :- जैसे 'मुझमें' के स्थान पर 'मेरे में' या 'किया' के स्थान पर 'करा' अथवा 'कीजिए' के स्थान पर 'करीए'।
5. वाक्यरचना विषयक :- इसमें क्रम (कान ही पुर जाना है।) अन्विति (लड़की ने लड़की को मारी) तथा सह-प्रयोग (बंगाली बोलता है : बीड़ी खा लो) आदि कई प्रकार की अशुद्धियाँ होती हैं।
6. अर्थ विषयक :- पंजाबी लोग हिन्दी में बोलते हैं रोटी सड़ गई। हिन्दी में 'सड़ना' का प्रयोग 'जलना' अर्थ में न होकर 'पानी' आदि में पड़कर गल जाना के लिए होता है। अतः ऐसे प्रयोगों में अर्थविषयक अशुद्धि है। इसी में शब्द प्रयोग और अर्थ की ऐसी गलतियाँ भी रखी जा सकती हैं : मैं सोते-सोते (लेटे-लेटे) सोच रहा था।
7. प्रोक्तिविषयक :- किसी प्रोक्ति के वाक्यों को गलत ढंग से रचना तथा गलत ढंग से जोड़ना। ये वाक्य-रचना के स्थर पर ठीक होते हैं, किन्तु प्रोक्ति-रचना के स्थर पर ग़लत होते हैं।
सहायक ग्रन्थ सूची :
1. भाषा शिक्षण - डॉ. भोलानाथ तिवारी
2. भाषा-विज्ञान और भाषा शिक्षण - डॉ. वै. वेंकटरमण राव
3. भाषा शिक्षण (हिन्दी) - डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
- डॉ. जी. प्रसाद
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